सम्मान
सम्मान
"जेठ माह की भरी दोपहरी। गर्मी से सबकी जान निकली जा रही है। सब पसीने से तर-बदर हो रहें हैं। बिजली वालों की तो......। इतनी गर्मी में भी बिजली काटने से बाज नहीं आते।" पसीना पोंछते हुए मनोज ने कहा।
"धीरे बोल। नीरज की नींद खुल जाएगी। गर्मी में सुबह से लिखाई-पढ़ाई कर रहा था। बेचारा थक कर अभी सोया है। बड़ी मेहनत करता है। पता नहीं इसे मेहनत का फल कब मिलेगा। कब इसका सपना पूरा होगा।" चाची ने मनोज से कहा।
"मिलेगा चाची। जरूर मिलेगा। तुम देखना। एक दिन इसकी मेहनत रंग लाएगी और इसका सपना भी पूरा होगा।" मनोज ने चाची का हौंसला बढ़ाते हुए कहा।
टर्न-टर्न, टर्न-टर्न, टर्न-टर्न। जोर-जोर से बज रही मोबाइल की घंटी से नीरज की नींद टूट गई। वह अचानक से उठा और मेज पर रखा मोबाइल फोन ऑन करके उसने हैलो बोला।
नीरज इतनी गहरी नींद से उठा था कि उसकी न तो ठीक से आँखें खुल रही थीं और न ही आवाज निकल रही थी। दो मिनट तक बात करने के बाद उसनें फोन दोबारा से मेज पर रख दिया और एक गिलास पानी पिया।
"किसका फोन था? क्या कह रहा था? गर्मी में चैन से सोने भी नहीं देते कमबख्त़।" चाची ने नाराजगी दिखाते हुए कहा।
"न्यौता था चाची न्यौता। तुम्हारे आशीर्वाद से मेरा सपना पूरा हो गया।" नीरज ने खुशी से उछलते हुए कहा।
''न्यौता! कैसा न्यौता?" चाची ने हैरानी से पूछा।
"हाँ चाची। मुझे लेखक सम्मान समारोह में बुलाया है। वहाँ मुझे मेरे लेखन कार्य के लिए सम्मानित किया जाएगा।" नीरज ने बताया।
" कब जाना है भाई? कौन-कौन जाएगा?" पंखे की हवा खाते हुए मनोज भी पास आ गया।
"मैं तो पहले ही कहती थी, हमारा नीरज बहुत मेहनती है। सचमुच सरस्वती माँ की इस पर अपार कृपा है।" चाची ने नीरज के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
