सम्मान के हकदार
सम्मान के हकदार
मम्मी! आप पापा को समझाती क्यों नहीं?
अच्छा लगता है इस तरह सुबह सुबह झाड़ू, बेलचा और बाल्टी लेकर
निकल जाना और गली कूचों में में
सफाई करते रहना। सब लोग मजाक
बनाते हैं।इतनी बड़ी पोस्ट से रिटायर
हुए हैं पापा और.....
क्या कहे सुरभि, वह तो सदा ही सतीश को समझाने का
प्रयास करती रहती है ।बेटों की शिकायत भी उन तक पहुँचा देती
है पर वह मानें तब न।सतीश का
कहना है कि वो अब स्वेच्छा से
जनहित में कुछ करना चाहते हैं।
वे जानते हैं सब पीठ पीछे उन्हें
सनकी समझते हैं पर अब वह पीछे हटे से रहे।
सतीश जी पिछले कई सालों से
सफाई अभियान में लगे हुए हुए हैं।
पहले तो कोई साथ नहीं देता था
पर कुछ लड़कों ने चाय, बिस्कुट
और समोसों के लालच में उनका
साथ देना शुरू किया फिर कुछ और
लोगों ने भी साथ देना शुरू कर दिया
धीरे धीरे नतीजा सामने आया आसपास का परिवेश साफ सुथरा
दिखने लगा।पर्यावरण भी सुधरा।
अब सर्वत्र उनकी प्रशंसा होने लगी।
घर वालों का भी लहजा बदला।
सतीश जी चुपचाप अपने कार्य में लगे
रहते।
अच्छे कामों की कदर होती ही है
भले देर से ही सही। आस पास के
सभी लोगों ने यह तय किया कि वे
सब सार्वजनिक रूप से उनका
सम्मान करेंगे और पूरी तरह से उनका
साथ देंगे।
एक छोटी सी सनक सम्मान
की हकदार हो गई।
