शुक्रिया अल्लाह मियाँ
शुक्रिया अल्लाह मियाँ
निदा रोज बरफ वाले को सायकिल पर काठ के बक्से के साथ आता देखती तो उसके मुँह से लार टपकती। बरफ वाले से उसने कितनी बार बरफ मांगी मगर हर बार वह उसे झिड़क कर भगा देता या जलील कर देता।
पिछले बरस निदा की सहेली शाहाना,( हाफिज साहब की बेटी ) ने निदा की ख्वाहिश जान ,अपने घर से एक डब्बा अनाज चुरा कर उसे गुलाबी बरफ खिलाई थी।लेकिन इस बार शाहाना अपने ननिहाल चली गयी थी। निदा ने देहरी पर खड़े-खड़े अन्दर झांका।अब्बा बिस्तर पर बुखार में लेटे पड़े थे,नाज़िया बाज़ी उनके सर पर गीली पट्टी रख रहीं थीं और अम्मी सिर पर हाथ धरे उनको पंखा झल रही थीं।
"आपको भी अभी बीमार करना था अल्लाह ने, फसल पकी खड़ी है ,मौसम के आसार सही नहीं लग रहे ।कहें तो हम और नाज़िया मुह अंधरे रोज फसल..... "। बात पूरी होती इस से पहले अब्बा तैशमें आ गये
" बेशर्म!!! खबरदार !!! जो पैर भी बाहर निकाला, मरा नही हूँ, दो चार रोजमें ठीक हो जाऊंगा। और बशारत को बुलावा भेजा है मैने ।"
" हाँ, अपनी फसल छोड़ कर आएंगे वो, कम्बख्त ,पर्दे में भूखा मार दो हम सब को ,खुद तो मर ही रहे हो"
हिकारत से पंखा जमीन पर पटक कर अब्बा की ओर देखते हुए निदा की अम्मी चूल्हे के पास जा कनस्तर खंगालने लगी। अब्बा , "या अल्लाह" कह कर बिस्तर पर मुँह फेर, करवट बदल लिये ।अम्मी को कनस्तर झाड़ कर दो मुट्ठी आटा मिला। उसे कंडे-लकड़ियां सुलगा कर कड़ाही में नमक-पानी डाल पकाने लगी। निदा ने फिर बाहर देखा।बरफ वाला काफी दूर चला गया था। निदा ने गहरी साँस भरते मन ही मन कहा
"अल्लाह मियाँ कभी आप ढेर बरफ गिरवा देते तो कितना मज़ा आता, सारा दिन खाती ।"
शाम को अचानक ही निदा की अम्मी को झोपड़ी में समय से पहले अन्धेरा मालूम होने लगा तो वह बाहर आई । "या अल्लाह रहम!!" वो सर के उपर काले बादलों के जमावाड़े को देख कर बुदबुदाने लगी। निदा झोपड़ी में ही चूल्हे के पास दरी पर सोयी हुई थी। निदा की बड़ी बहन नाज़िया भी बाहर निकल आई।"अम्मी इस बार भी फसल बर्बाद...." । तड़ाक से अम्मी ने एक चाँटा नाज़िया के रसीद कर दिया " मनहूस कम बोला कर, दुआ पढ़ की ये बादल फिर जाय ।" नाज़िया गाल सह्लाती अन्दर चली आई और ढिबरि जला दी।
जोर की अन्धड़ शुरु हो गई। बादलों ने गड़गड़ाहट शुरु कर दी। झोपड़ी के पास ही जोर की बिज़ली कड़की।उसकी कड़कड़ाहट से निदा की नींद खुल गई । निदा ने आंख मलते हुए बाहर देखा "अम्मी क्या हो रहा है?" , अम्मी ने कहा " बचिया ,अल्लाह नाराज हैं हमसे।", अम्मी आप ही कहा करती हैं की अल्लाह मियाँ कभी नाराज नही होते फिर ऐसा कुफ्र क्यूं कहती हो?" अम्मी ने निदा की बात पर कान नहीं दिया।
अचानक तेज बारिश शुरु हो गई और मोटे-मोटे ओले पड़ने लगे। निदा कूद के खड़ी हो गई " अम्मी अल्लाह मिया नाराज नही खुश हैं।" नाज़िया ये सुन हैरत में आ गयी। निदा ने पास पड़ा खली कनस्तर उठाया और बाहर आंगन की ओर भाग गई। अम्मी ,अब्बा और नाज़िया उसके पीछे-पीछे बाहर निकले।देखा निदा ने कनस्तर आंगन के बीचों-बीच रखा है , ओले धडाधड़ गिर रहे थे, कुछ कनस्तर में जा रहे थे कुछ आंगन में बिछ रहे थे। निदा खुशी के आँसू लिये सजदे में बैठी थी ।
"शुक्रिया अल्लाह मियाँ,इतनी सारी बरफ भेजने का।"
अम्मी,अब्बू और नाज़िया उसे खड़े ताक रहे थे,और ओले थे की रुकने का नाम ही नही ले रहे थे।