Bhagirath Parihar

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साठ साल का सफर

साठ साल का सफर

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मेरे दादा-दादी की शादी उनकी किशोर अवस्था में हो गई थी। बाल विवाह समय सामान्य सी बात थी। उस समय बाल विवाह के विरोध में कोई कानून नहीं था। गौना हुआ तब दादा 20 के व दादी 16 की थी। आज वे 82 और 78 वर्ष के हैं। 

मेरे बहुत आग्रह के बाद वे हमारे साथ मुंबई में कुछ समय रहने आए। मुंबई और हरियाणा की भाषा संस्कृति सब कुछ अलग। हम सब तो अपने कामों में व्यस्त रहते तो कोई उनसे बातचीत करनेवाला भी नहीं था। ऐसे में उनका बोर होना स्वाभाविक था लेकिन वे कभी बोर नहीं होते।

वो साथ-साथ घूमने जाते हैं। दादी को लेमन टॉफी काफी प्रिय है अतः दादा- दादी के लिए टॉफी लेते है और दोनों चूसते-चूसते टहलते हैं। फिर पार्क में बैठे फूलों और तितलियों को निहारते रहते या पास में खेल रहे बच्चों को देखते देखते घंटे दो घंटे निकल जाते। 

मेड खाना बनाकर जाती है जिसे वे दोनों साथ में खाना खाते हैं। फिर वे दोनों मिलकर लूडो खेलते हैं और हर बार दादी ही जीत जाती है क्योंकि दादी तो कभी हार ही नहीं सकती। दादी को खुश करने का दादा का यह अंदाज भी निराला है । 

वे बालकनी में साथ बैठकर रोज सूर्योदय और सूर्यास्त का सुंदर दृश्य निहारते रहते हैं चुपचाप। यह भी उनकी दिन चर्या का हिस्सा है। बालकनी में चाय पीते वक्त दादा-दादी को अखबार की हेड लाइन पढ़कर सुनाते हैं। कभी-कभी अखबार से कहानी पढ़कर भी सुनाते हैं। क्योंकि मेरी दादी निरक्षर है लेकिन ध्यान से सुनती है।  

वे टीवी भी साथ-साथ देखते हैं और खलनायिका की खूब बुराई करते हैं। सीरियल पूरी संजीदगी से देखते हैं, जैसे घटनाएं वास्तव में घट रही हो। हरियाणवी संगीत का भी शौक है इसलिए हरियाणवी चैनल भी सबस्क्राइब कर रखा है। दादी अक्सर गाने के साथ गुनगुनाती है, शादी-ब्याह के गाने उसे विशेष प्रिय है। 

रात में दोनों सोते वक्त तेजी से हरियाणवी में पुरानी बातें करते है और उनको याद कर खूब हँसते।   

मेरे दादा जरा जिद्दी किस्म के हैं। वे अपनी बात पर अड़े रहते हैं सो उनकी बात केवल दादी सुनती है और हाँ हूँ करती है, विरोध नहीं करती। मेरे सामने खूब डींग हाँकते, मैं मन ही मन हँसता लेकिन प्रतिवाद नहीं करता।

कितना फाइन एडजस्टमेंट में इन दोनों में, इनका जीवन सफर कितने प्रेम से गुजर गया । जब से मेरे दादा को पार्किनशन की बीमारी हुई उन्होंने अपने बेटे यानी हमारे पिताजी से कहा अगर मैं चला जाऊँ तो अपनी माँ की ठीक से देखभाल करना। जाते समय उन्हें चिंता थी तो दादी की और किसी की नहीं।  


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