साहेब सायराना-4
साहेब सायराना-4
एक कहावत है- घर की मुर्गी, दाल बराबर! अर्थात जब तक बच्चे अपने माता- पिता के साथ रहते हैं तब तक न तो बड़े उनकी कद्र करते हैं और न ही वे अपने बड़ों की। बच्चों को अनुशासन के प्रवचन मिलते रहते हैं और बड़ों को उनकी अनदेखी की बेपरवाही।
लेकिन जब वही बच्चे बाहर चले जाते हैं तो उनकी हर छोटी - बड़ी मांग को तवज्जो मिलने लगती है। वो भी मां- बाप का मोल समझने लगते हैं।
देश के विभाजन के बाद सायरा के पिता पाकिस्तान में जा बसे और ख़ुद बेटी पढ़ने के लिए लंदन में रहने लगी। ऐसे में जहां मां नसीम बानो को कभी फ़िल्मों में काम करने की अनुमति तक नहीं मिली थी वहीं छुट्टियों में घर आई सायरा को शूटिंग दिखाने के लिए तो ख़ुद उनकी माताश्री ले ही गईं, बल्कि कुछ निर्माताओं ने इस खूबसूरत गुड़िया को फ़िल्मों में काम करने की पेशकश भी कर डाली।
आख़िर सायरा के शौक़ और मां नसीम की इच्छा ने रंग लाना शुरू किया और स्कूली पढ़ाई पूरी होते - होते ही सायरा को फ़िल्मों में उतारने के बारे में भी गंभीरता से सोचा जाने लगा। अभी सोलह साल की उम्र भी पूरी नहीं हुई थी कि "जंगली" फ़िल्म से सायरा को फ़िल्म जगत का सुनहरा आमंत्रण मिल गया।
लेकिन राजकपूर का वो छोटा भाई शम्मी कपूर रूपसी सायरा बानो को पसंद नहीं था। वो चाहती थीं कि अगर उन्हें दिलीप कुमार जैसे गंभीर और संजीदा अभिनेता के साथ काम करने का अवसर मिले तो मज़ा आ जाए।
लेकिन चुलबुली सायरा की मम्मी "परी चेहरा" ही नहीं बल्कि अभिनय में बड़ी स्टार का दर्जा भी पा चुकी थीं और इस बेमुरव्वत ज़माने से लोहा लेने में खासी अनुभवी भी हो चली थीं। वो अच्छी तरह जानती थीं कि पृथ्वीराज कपूर के बेटे और राजकपूर के भाई के साथ जोड़ी बना कर लॉन्च होना क्या अहमियत रखता है। ख़ास कर ऐसे में जबकि ख़ुद बिटिया सायरा के पिता पाकिस्तान जा बसे हों और पत्नी नसीम बानो की फ़िल्मों को घटिया कह कर पाकिस्तान में रिलीज़ होने से रोक रहे हों।
याहू! सायरा फ़िल्मों में आ गईं।
