रत्नाचाची
रत्नाचाची
"चलो, सब बच्चे आ जाओ ! रत्नाचाची आई है।मुंबईकी छोटीसी चोल मैं एक बुज़ुर्ग आदमी ने सब बच्चों को बुलाते हुए कहा।
सुनते ही सारे बच्चे दौड़ कर चाची के पास इक्कठे हो गए सबके चेहरे खिल उठे थे मानो सांता क्लोज आया हो! चाची सांता क्लोजकी तरह ही अपनी जोली मै से बच्चोके लिए किताबे निकाल कर सबको देने लगी।
पाँच या छह किताबे दी थी तब तक तो वहां बड़ा सा टेंपो आया,सब बच्चे उसके पास डॉड लगाने लगे। "अरे देती हूं सभिको थोड़ा सब्र करो,हस्ते हुए चाची बोली ओर टेंपो की ओर बढ़ी। सब बच्चोको कपड़े, खिलौने,पढ़ने के समान, इत्यादि की एक एक करके आगे से बनाई हुई पैकिंग दी।सारे बच्चे रत्ना चाचीको प्यार से लिपट गए।
दरअसल रत्नाचाची हर साल दीवालीके समय आती थी ओर यह सब देके जाती थी,सब कुछ टेंपोमै आता हर साल पहले आके कोई एक चीज वोह खुद देती थी।
बात यह थी कि रत्ना चाची के दो बच्चे थे गरबी के कारण उनको वोह कपड़े हो या खिलौने कुछ दिलवा नहीं पाई थी पर चाची ने परिश्रम करके दोनो को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया था,अब चाची के दोनो बेटे खूब कमाते थे एक बड़ी कंपनी मै उची पोस्ट पर था और दूसरा खुद का छोटा सा बिजनेस चला रहा था पर रत्ना चाची के दिल मै अफसोस रह गया था कि मेरे दोनो बेटो ने बचपन को खो दिया इसलिए वोह अपने बेटे गरीब थे वैसे बच्चो को वोह सब दिलवाते थे जो चाची गरीबी के कारण अपने बेटों को नहीं दिलवा पाई थी।
काश रत्ना चाची जैसे ओर चाची - चाचा होते तो कई गरीब बच्चो का बचपन खो नहीं जाता।