रोज मरती हुई
रोज मरती हुई
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उफ्फ! जरूरी काम तो ढंग से कर लिया करो, बोल कर संजय ऑफ़िस चला गया। स्वाति के दिमाग में यही चल रहा था की हाँ मुझे बुरा नहीं लगता मुझसे उम्मीद है तभी तो शिकायत है पर हर कोई हर बात में परफेक्ट नहीं हो सकता ना, मेरे सपनों और हकीक़त में काफ़ी फर्क़ रह गया है। मैं दोबारा जन्म लेकर दुनिया में आना चाहूँगी और कोशिश करूंगी अबकी बार सपने नहीं देखूँ, टूटे हुए सपनों का बोझ उठाना बहुत मुश्किल है संजय.. देखना फिर मैं, तुम सब खुश रहेंगे।
संजय के कटाक्ष स्वाति को रोज मारते और उसे पता भी ना चला।