रिजॉल्यूशन

रिजॉल्यूशन

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एक बार फिर नया साल आने को था। पच्चीस तारीख की रात को एक समारोह के डिनर से लौटने के बाद आर्यन ने तय कर लिया था कि इस बार चाहे जो भी हो जाए, वो भी नए साल पर अपने दोस्तों की तरह कोई न कोई रिजॉल्यूशन ज़रूर लेगा और पूरे साल उसे पूरा भी करेगा। कई बार ऐसा हो चुका था कि उसने और लोगों की बातें सुन - सुन कर न्यू ईयर पर कोई न कोई संकल्प ले तो डाला, पर निभा न सका, दूसरे ही दिन उसे तोड़ दिया।

आर्यन एक बीस- बाईस वर्षीय युवक था जो महानगर के एक हॉस्टल में रह कर एम.बीए कर रहा था। आर्यन बहुत मेहनती लड़का था और महत्वाकांक्षी भी। इसलिए वो एक पार्ट टाइम जॉब भी कर रहा था ताकि वह कुछ पैसा बचा कर इकट्ठा कर सके। उसकी इस नौकरी के बारे में उसके घर पर कोई नहीं जानता था। यहां तक कि उसके खास दोस्त भी नहीं। वैसे आर्यन के परिवार को पैसे की कोई कमी नहीं थी। एक छोटे कस्बे में,जहां उसके माता- पिता रहते थे, उसके पिता का अच्छा खासा कारोबार था। उसकी एक छोटी बहन भी थी जो कॉलेज की पढ़ाई वहीं से कर रही थी। आर्यन के पिता चाहते थे कि पढ़ाई पूरी करके वह वापस घर आए और पिता का कारोबार संभाले। बहन की धूमधाम से शादी करे, और फिर अपना भी घर बसाकर माता - पिता की सेवा करते हुए जीवन आराम से गुजारे। लेकिन आर्यन के ख़्वाब इतने सीधे - सरल न थे।

वह आगे पढ़ने के लिए विदेश जाने का सपना देखता था, और कोई ऊंची नौकरी मिल जाने पर उसे विदेश में जाकर बस जाने में भी कोई संकोच न था।

यही कारण था कि वो आधुनिक सोच की जीवन शैली का कायल था, और खुद अपने पैरों पर खड़े होकर अपना जीवन तथा भविष्य संवारना चाहता था।

उसे ये भी अंदेशा था कि जिस दिन वो अपनी इच्छा घर वालों पर जाहिर करेगा, घरवाले उसका विरोध करेंगे। और ऐसे में अगर उसे घर वालों का सहयोग न भी मिले, तो भी वो अपना ख़्वाब पूरा कर सके, इस बात की तैयारी में वो कुछ पैसा अपने पास जोड़ कर रखना चाहता था।

वह पढ़ाई का बहाना कर के कई - कई दिनों तक अपने घर जाने से भी बचा करता था। घरवाले उसका इंतजार करते रहते, किन्तु वो कभी प्रोजेक्ट, तो कभी ट्रेनिंग आदि का बहाना बना कर घर जाना टालता रहता। आर्यन का दिमाग़ अभी से इस उधेड़बुन में लग गया कि इस बार क्या संकल्प लिया जाए।

ये अच्छा था कि उसे इस बार इस बात का ख़्याल समय रहते ही आ गया था, अभी नया साल शुरू होने में पांच- छह दिन बाक़ी थे। उसके दोस्त नए साल पर तरह तरह के प्लान बना रहे थे।

कोई साल की आख़िरी रात किसी पार्टी में मनाने की तैयारी में था, तो कोई अपनी गर्लफ्रेंड को कहीं ले जाने के मंसूबे बांध रहा था। कोई कुछ न कुछ छोड़ने की तैयारी में था, जैसे सिगरेट, कॉफी, चाय, गुटका या फ़िर कोई तगड़ा नशा। तो किसी - किसी का मन नया कुछ शुरू करने के लिए मचल रहा था।आर्यन की कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी। इसलिए उसके पास ऐसा कोई प्लान नहीं था कि वो बदलते साल की ये सांवली रात प्रेमग्रंथ का कोई पन्ना पढ़ने में गुजारे। वो जिस खानदान से ताल्लुक़ रखता था वहां इतनी सी उम्र में लड़की को लेकर घूमना खासा जोखिम का ही काम था। वहां तो उसके लिए लड़की भी माता- पिता द्वारा उसी तरह ठोक- बजा कर लाई जाने वाली थी जिस तरह अब तक आर्यन के कपड़े, जूते या खिलौने लाए जाते रहे थे। बस, इसी से आर्यन का दिल पढ़ाई पूरी होने के बाद घर लौटने को नहीं करता था। इस न्यू ईयर रिजॉल्यूशन की भी एक अजब कहानी थी। आर्यन को एक पंडित ने ये कहा था कि उसके मन में अगर अपने जीवन के लिए कोई संकल्प है तो वो उसी दशा में पूरा होगा जब वो किसी एक पूरे वर्ष तक अपने किसी संकल्प पर कायम रह कर उसे पूरा करे।

आर्यन का अपना विश्वास ऐसी बातों पर नहीं था, लेकिन ये बात उसे उसके साथ पढ़ने वाले एक मित्र के पिता ने संयोग से ही एक दिन कही थी, और मित्र के पिता का समाज में मान व रुतबा देख कर आर्यन को अंदर ही अंदर इस बात पर यक़ीन हो चला था। चार - पांच दिन ऐसे ही गुज़र गए और साल का आख़िरी दिन आ गया। आर्यन अब तक कुछ खास सोच नहीं पाया था। हॉस्टल के कॉमन रूम में बैठे- बैठे उसने देखा कि धीरे- धीरे सन्नाटा पसरा जा रहा है और एक -एक करके सभी लड़के इधर -उधर चले गए हैं। हॉस्टल का मैस भी आज रात साढ़े बारह बजे तक खुला रहने वाला था और जो छात्र कहीं बाहर नहीं गए थे उनके लिए वहीं स्पेशल खाना बना था। आर्यन ने मैस में जाकर खाना खा लिया, और वो अकेला ही अपने कमरे में चला आया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस नववर्ष पर कौन सा संकल्प ले। वो पिछले चार - पांच दिन से इस बारे में काफ़ी सोच चुका था पर अब तक किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंचा था, जबकि अब साल बीतने में कुछ ही मिनटों का समय बाक़ी था। वो इसीलिए दोस्तों की भीड़भाड़ से अलग होकर चुपचाप अपने कमरे में अकेला ही आ बैठा था। उसका दिल कहता था कि पूरे एक साल तक किसी न किसी संकल्प का पालन कर लेने से उसके मन का ये संकल्प भी एक दिन अवश्य ही पूरा होगा कि उसे विदेश जाने और वहां अपनी मनचाही नौकरी पाने में ज़रूर कामयाबी मिलेगी। कहते हैं कि यदि इंसान का शरीर किसी कष्ट में हो तो वो ज़्यादा एकाग्र होकर सोच पाता है। अपने बदन को तकलीफ़ देने के लिए तेज़ सर्दी होते हुए भी आर्यन अपने कमरे में केवल बनियान और शॉर्ट्स पहने बैठा था। कमरे की खिड़की खुली थी जिससे जगमगाते तारों का साफ़ आसमान दिखाई दे रहा था। आर्यन बहुत ज़्यादा विलक्षण प्रतिभाशाली छात्र तो कभी नहीं रहा था किन्तु वह सामान्य से ज़्यादा होशियार ज़रूर था। उसका शरीर भी तंदुरुस्त की श्रेणी में ही आता था, यद्यपि वो और लड़कों की तरह रोज़ाना जिम जाने का अभ्यस्त नहीं था। कभी- कभी ही सुविधानुसार जाया करता था। उसने एक उड़ती सी नज़र मोबाइल पर डाल कर समय देखा। वह कुछ चिंतित सा हुआ। कुछ ही मिनट में मौजूदा साल इतिहास बन जाने वाला था। आख़िर आर्यन क्या करे?


क्या अपनी कोई पसंदीदा खाने की चीज़ छोड़ने का संकल्प ले ले?

उसे किसी नशे की आदत या लत तो थी नहीं।

या फ़िर साल भर तक अपने घर जाने का ख़्याल छोड़ दे?

कहते हैं कि इंसान को अपनी कोई न कोई ज़रूरी या बेहद पसंदीदा चीज़ ही छोड़नी चाहिए। तभी संकल्प की महत्ता कारगर होती है। इंसान के लिए जीवन में सबसे ज़रूरी और बुनियादी चीज़ तो रोटी, कपड़ा और मकान ही है।

तो क्या आर्यन साल भर तक कपड़ा पहनना छोड़ दे?

अपनी इस काल्पनिक सोच पर आर्यन को ख़ुद ही शर्म आ गई। वह झेंप कर मुस्करा के रह गया।

जब घड़ी बारह बजने में डेढ़ मिनट का समय बता रही थी, तभी आर्यन ने मन ही मन कुछ तय किया और दृढ़ता से बिस्तर पर बैठ गया।

खिड़की से चारों ओर आतिशबाज़ी, शोर, गीत - संगीत की ध्वनियां आने लगी थीं।

कुछ बच्चे और युवक पटाखे भी फोड़ने लगे थे।

हॉस्टल के इक्का- दुक्का कमरों में, जहां बत्तियां जल रही थीं, गिलासों के खनकने की आवाज़ें भी आने लगीं।

आर्यन ने अपना फोन स्विच ऑफ कर दिया।

एक पल को वो खिड़की पर खड़ा होकर बाहर का नज़ारा देखने लगा पर फ़िर जल्दी ही अपने कमरे की बत्ती गुल करके वो बिस्तर पर आ लेटा।

साल बदल गया था। दुनिया भर में नए साल का स्वागत हो रहा था। नीचे की मंज़िल के कॉमन रूम से आने वाली टी वी की आवाज़ भी तेज़ हो गई थी। कुछ छात्र हॉस्टल की छत पर भी थे। आर्यन ने एक बार अपनी मज़बूत बाहों पर उभरी हुई मछलियों को निहारा और मन ही मन कोई संकल्प ले लिया।

आख़िर उसे सुनयना मैम की याद आई। आर्यन ने एक बार उठकर दीवार पर टंगे आईने में अपनी छवि को देखकर अपने बालों में अपने हाथ की अंगुलियों को फिराया और कुछ मुस्कराते हुए वापस बिस्तर पर आ लेटा। पिछली बातें भुला कर अब एक नई ज़िन्दगी शुरू करने का आह्वान कर रहा था ये नया साल! सुनयना मैम गर्ल्स हॉस्टल की वार्डन थीं। कभी - कभी वो बाहर के शहरों में घूमने जाने के लिए पर्यटन के ट्रिप भी आयोजित करती थीं। उन्होंने हाल ही में एक संस्था का रजिस्ट्रेशन भी करवाया था। सुनयना मैम अपने इस उपक्रम को संचालित करने के लिए ईवेंट ब्वॉयज के रूप में कुछ लड़कों की भर्ती कर रही थीं। एक दिन आर्यन को जब उन्होंने बताया था कि वो उसे जॉब देना चाहती हैं तो आर्यन ने ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया था उनकी बात को। उसे ये कॉन्सेप्ट कोई ज़्यादा दमदार नहीं लगा था। पच्चीस- तीस लोगों के एक ग्रुप से कुछ पैसे लेकर उन्हें दुनिया के किसी भी हिस्से में पर्यटन पर ले जाने के काम में भला इतनी क्या आमदनी होगी कि चार- पांच लोगों को रोज़गार मिल सके? फ़िर खुद सुनयना मैम भी कुछ कम लालची तो नहीं थीं कि बिना भरपूर मार्जिन कमाए इतना झंझट भरा काम करें। उनके किस्से तो पहले से ही खूब चर्चित थे। लड़कियाँ तो ख़ैर देखती और भुगतती ही थीं, पर समीप के हॉस्टल में रहने वाले लड़के भी जानते थे कि वो अकेली महिला अपनी आय के लिए किस सीमा तक जा सकती थी। लड़कियों को रूम अलॉटमेंट में उनकी चॉइस का कमरा देने में ही उन्हें भरपूर मुनाफा होता। कॉलेज का रूल "पहले आओ, पहले पाओ" तो बस दिखाने के लिए था। किस विद्यार्थी को कौन सा कमरा मिले, ये निर्णय सुनयना मैम का ही था। वो सीनियर जो थीं।

लड़कों के हॉस्टल के वार्डन तो ज़्यादातर नए - नए होते और आते- जाते रहते।

यदि किसी करोड़पति खानदान की लाड़ली बेटी उनसे अकेले में संपर्क करके उनकी हथेली की खाज मिटा देती तो अप्रैल के महीने में ही वो उसकी पसंद के कमरे में ताला लगवा कर उसे "स्टोर रूम" में तब्दील करवा देती थीं। फ़िर वो कमरा किसी को नहीं दिया जाता और तीन महीने बाद जब लड़की आती तो स्टोर रूम शिफ़्ट हो जाता। सुनयना मैम के बैंक खाते में सैलरी से ज़्यादा रकम ऐसे ही जमा हो जाती।

हॉस्टल के कमरे में जो चीज़ें रखना प्रतिबंधित होता, उन्हें चोरी छिपे रखना सुनयना मैम पर खूब पैसा बरसाता।

हां, अगर कोई सुनयना मैम की फ़ीस देने में आनाकानी करे तो उसे बाकायदा रसीद कटवा कर उससे दोगुणा पैसा हॉस्टल फण्ड में जमा कराना पड़ता।

अब उच्च शिक्षा पा रहे विद्यार्थी इतनी समझ तो रखते ही थे कि कॉलेज को बीस हज़ार देना अच्छा या सुनयना मैम को दस हज़ार!

ये सब सोचते - सोचते आर्यन को न जाने कब नींद आ गई।

रात के साथ सर्दी बढ़ती जा रही थी। आर्यन अपने बिस्तर पर बिल्कुल सिकुड़ा हुआ पड़ा था, उसने घुटनों को समेटकर पेट से चिपकाया हुआ था। रजाई उसी तरह तह की हुई पैरों के नज़दीक रखी थी, उसे फैला कर उसने ओढ़ा न था।


एकाएक आर्यन का ध्यान घड़ी पर गया। बारह बजने में अब पूरा एक मिनट भी बाक़ी नहीं था।

नहीं नहीं, खाने की कोई चीज़ वो नहीं छोड़ेगा। वो अकेला रहता है, कभी मैस में, कभी बाज़ार में, कभी किसी दोस्त के यहां...ऐसे में उसे मनपसंद खाने की चॉइस होती ही कहां है? जो मिल जाए, जो बना हो वही तो खाना होगा। मकान की बात भी वह अभी तो नहीं छोड़ सकता, उसे बीच - बीच में घर जाना ही होगा। जब विदेश चला जाएगा तब की तब देखी जाएगी, अभी तो घर जाना ही होगा। हां, कपड़ों से उसे वैसे भी ज़्यादा लगाव नहीं है। उसे नए नए कपड़े खरीदने का शौक़ कभी नहीं रहा। अभी दो महीने तो सर्दी के हैं, उसके बाद मौसम गर्म हो जाएगा। फ़िर तो बिना कपड़ों के आराम से रहा जा सकता है। बारिश के मौसम में तो वो वैसे भी कपड़े उतार कर बूंदों में भीगना पसंद करता ही है। और सर्दी में कपड़े न पहनना ही तो काया को कष्ट देना है। संकल्प लेने में कुछ कष्ट न सहा जाए तो संकल्प का लाभ ही क्या...

तभी ज़ोर से घंटा बजने की आवाज़ आई। लो, बारह तो बज गए, साल बीत गया। नया साल आ गया।

आर्यन ने ये कैसा संकल्प ले डाला? आज तो ख़ैर छुट्टी है। दिन भर कमरे से बाहर नहीं निकले, तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला। वह बिना कपड़ों के रह सकता है। लेकिन अभी नाश्ता करने और खाना खाने तो मैस में जाना ही पड़ेगा। तब क्या नंगा जाएगा?

चलो कोई बात नहीं, एक दिन नाश्ता न करने से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। खाने की भूख भी अभी तो नहीं है। लगेगी तब देखा जाएगा।

ज़्यादा ही भूख लगी तो कुछ देर से, सब लड़कों के खाना खाकर चले जाने के बाद जल्दी से मैस में जाकर खाना उठा लाएगा। यहीं कमरे में लाकर खा लेगा। कौन देखेगा उसे? ज़्यादा से ज़्यादा मैस में काम करने वाले लड़के!

क्या फ़र्क पड़ता है। बरामदे में सुबह का पौंछा लगाने वाली औरतें तो तब तक काम निपटा कर जा ही चुकी होंगी।

आर्यन ने उठकर खिड़की का पर्दा गिरा लिया। वैसे तो खिड़की से इतना साफ़ सब कुछ दिखाई नहीं देता, हां, कोई आँखें गढ़ा कर ध्यान से उधर लगातार देखता रहे तो ही उसे दिखेगा कि कमरे के भीतर कोई नंगा जवान लड़का खड़ा है। पर ऐसे कौन देखेगा?

गर्ल्स हॉस्टल से तो इतनी दूर की खिड़की दिखने का सवाल ही नहीं।

तभी आर्यन के कमरे की डोर बैल बजी। वो सकपका गया। इस समय कौन होगा?

ओह, याद आया। कल वो धोबी से कह आया था कि उसकी एक शर्ट और पैंट अर्जेंट है, वो प्रेस करके कमरे पर ही दे जाना, शायद वही होगा।

अब? क्या करे आर्यन? क्या धोबी के सामने कमरे से नंगा ही बाहर निकल आए?

नहीं - नहीं, ठीक नहीं लगेगा, कहीं धोबी ने जाकर वार्डन से कह दिया तो?

अरे हां, याद आया, उसने कपड़े ही न पहनने का तो संकल्प लिया है, काग़ज़ से तो कोई संकल्प नहीं टूटेगा, वह क्यों न अख़बार हाथ में लेकर दरवाज़ा खोल दे। कम से कम ढका तो रहेगा बदन।

उसने पुराना अख़बार हाथ में उठाया और उसे जांघों पर इस तरह रख कर पकड़ा जिससे ऐसा न लगे कि उसने शॉर्ट्स नहीं पहना है।

हां, धोबी को पैसे अभी नहीं देने हैं। कहीं कपड़े लेकर आर्यन पैसे निकालने के लिए वापस पलटा, तो धोबी पीछे से तो देख ही लेगा न? वहां थोड़े ही अख़बार होगा।

आर्यन ने अख़बार एक हाथ में पकड़कर दरवाज़ा खोलने के लिए दूसरा हाथ बढ़ाया और धीरे से चिटकनी खोल दी।

- भैया कपड़े ! सामने धोबी की लड़की खड़ी थी।

- धड़ाक!

आर्यन ने ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर दिया।

आवाज़ इतनी ज़ोर की थी कि आर्यन एकाएक अपने बिस्तर पर उठ बैठा। इतनी सर्दी में भी उसके माथे पर पसीना था। नींद खुलते ही उसे सारा माजरा समझ में आया।

सपना टूटा था, कोई संकल्प नहीं।

उसने इत्मीनान की सांस ली। फ़िर उठकर खिड़की बंद की। रजाई को फ़ैला कर अच्छी तरह से ओढ़ा और आराम से फ़िर से सो गया।



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