प्यार को जताना भी आना चाहिए
प्यार को जताना भी आना चाहिए
सुजाता आजकल उदास रहती है। हमेशा कुछ न कुछ सोचती रहती है। पहले तो एक पल भी चुप नहीं रहती थी। परिवार के लोग उनके सोने का इंतज़ार करते थे, क्योंकि वह तब ही चुप रहतीं थी। अब उनके बोल सुनने के लिए लोग तरस गए। पूछने पर हाँ ऊँ में जवाब देती थी। सुजाता के दो बच्चे थे। एक बेटा और एक बेटी। बेटी स्नेहा अमेरिका में रहती थी। बेटा अनुज और बहू अंजलि साथ में ही रहते थे, उनके भी दो बच्चे थे पराग और पूनम। पराग इंजीनियरिंग पहले साल में था और पूनम बारहवीं कक्षा में थी। पति केशव को रिटायर हुए एक साल ही हुआ। बैंक में मैनेजर थे। पुराने ख़याल के थे। जनरेशन गेप यानी कि पत्नी से प्यार जताना भी नहीं आता। उसकी ख़्वाहिशों के बारे में सोचते भी नहीं पर प्यार बहुत करते थे। बातें करते तो ऐसा लगता कि बस टू द पॉइंट बोलना है एक्स्ट्रा कुछ भी नहीं। अब इतने सालों बाद उम्मीद भी नहीं कर सकते थे। रिश्ते नाते सब सुजाता को ही निभाना पड़ता है। पहले नौकरी का बहाना था अब आराम करने का बहाना करते हैं। सबके पास फ़ोन थे। बेटा ऑफिस जाते ही फ़ोन करके बहू को बता देता है कि मैं पहुँच गया हूँ। बच्चों को देरी हो जाती है तो माँ को फ़ोन करके बता देते हैं कि हम देर से आएँगे फ़िक्र मत करना। सब देख सुजाता को भी लगता है कि काश उसके पास भी फ़ोन हो। जब भी वह कहीं जाती है तो देखती है कि पहुँचते ही सब फ़ोन करके बताने लगते हैं हम पहुँच गए हैं और हर दो मिनट में फ़ोन पर मेसेज चेक करते हैं या खुद मेसेज करते हैं। बच्चे तो बस सेल्फ़ी लेते रहते हैं। हमारे ज़माने में कहा जाता था कि पुस्तक हाथों की शोभा बढ़ाते हैं और आज फ़ोन हाथों की शोभा बढ़ाते हैं।
हर शनिवार को स्नेहा फ़ोन करती थी वह भी लेंड लाइन पर सुजाता को लगता था कि काश मेरे पास भी मोबाइल होता तो मैं भी अपने कमरे में सोते हुए स्नेहा से बात करती। ख़ैर...... आज सुजाता ने पूरे एक घंटा स्नेहा से बात किया पर सिर्फ यही बताती रही कि किसके पास फ़ोन है वे लोग क्या- क्या करते हैं। किटी पार्टी में भी सिर्फ मेरे पास ही फ़ोन नहीं है। मेरा तो सिर शर्म से झुक जाता है। क्या करूँ ? कोई मेरी तरफ़ ध्यान भी नहीं देता। अब अपने दिल की बातें बेटी को ही बता सकती हैं, वैसे भी सुजाता और स्नेहा दोनों दोस्तों की तरह रहते हैं। इसलिए स्नेहा ने बहुत ही सब्र से पूरी बातें सुनी और माँ को सांत्वना देने लगी साथ ही मोबाइल के दुष्परिणामों के बारे में थोड़ा सा ही हिंट दिया क्योंकि उसे मालूम था कि माँ कुछ भी सुनने के मूड में नहीं है। अपने दिल की भड़ास निकाल लेने के बाद सुजाता पहले जैसी ही हो गई। पर अब परिवार के लोगों के सामने बार-बार फ़ोन के फ़ायदे और उनके कितने दोस्तों के पास फ़ोन है वे क्या करते हैं सब बताने लगी। बीच बीच में कुछ सोचने भी लगती थी क्योंकि सुजाता को एक आशा थी कि शायद बिना माँगे ही बेटा या पति उसके लिए एक फ़ोन गिफ़्ट के रूप में ख़रीद देंगे क्योंकि दो दिन बाद उसका जन्मदिन भी था।
सुजाता जन्मदिन के दिन बड़े सबेरे उठ गई नहा धोकर पूजा करके सबके उठने का इंतज़ार करने लगी। सब लोग उठे सबने उसे जन्मदिन की बधाई भी दी पर किसी ने भी उपहार के बारे में बात नहीं किया और अपने अपने काम पर चले गए।
शाम को एक पार्सल आया तभी परिवार के सब लोग अपने कामों से वापस भी आ गए थे। पोते ने कहा वाह दादी यह तो बुआ ने भेजा है। सबसे पहले मैं इसे खोलकर देखूँगा कि क्या भेजा है ? जैसे ही पराग ने पार्सल खोला सुजाता का मुँह सौ वाल्ट्स के बल्ब के समान चमकने लगा क्योंकि उसमें एक स्मार्ट फ़ोन था। सुजाता को लगा दुनिया भर की सारी ख़ुशियाँ उसकी झोली में आ गिरी। पति ने कहा यह स्नेहा भी दिमाग़ नहीं है उसे तुम्हें आख़िर जाना कहाँ है जो इतना महँगा फ़ोन भेज दिया। सब अपनी -अपनी रॉय देने लगे। सुजाता के कानों में किसी की भी बातें नहीं जा रही थी। उनका पूरा ध्यान फ़ोन पर था। पराग ने कहा दादी मैं पूरे फ़ोन को सेट करके आपके लिए नया नंबर भी ले लेता हूँ फिर आपको दे दूँगा। एक दो दिन सब्र कर लीजिए। वादे के मुताबिक़ पराग फ़ोन लेकर आता है और सुजाता को सब समझाता है। सुजाता फ़ोन हाथ में लेकर इधर-उधर घूमती है और स्नेहा को फ़ोन करके धन्यवाद कहती है।
दूसरे ही दिन उसे ससुराल की तरफ़ के एक फ़ंक्शन में जाने का मौक़ा मिलता है। पति तो आने से रहे इसलिए अकेले ही जाने का प्लान बनाती है और पूरा खाना बनाकर तैयार होकर बैग में फ़ोन रखती है और जाने से पहले पति को अपना फ़ोन नंबर देना नहीं भूलती है। फ़ंक्शन में पहुँचते ही पति को फ़ोन करती है केशव फोन उठाते हैं कहती सुनिए मैं ठीक से पहुँच गई हूँ आने के पहले फिर फ़ोन करूँगी कहकर रख देती है और सबकी तरफ़ देख ऐसे मुस्कुराती है जैसे उसने जीत हासिल कर ली है।
खाना खाने के बाद सबके बीच बैठ कर बातें करती रहती है पर ध्यान फ़ोन पर ही था कि कोई फ़ोन कर दे। उसकी मुराद पूरी करते हुए फ़ोन की घंटी बजी सुनकर भी अनसुना किया तभी किसी ने कहा सुजाता आपका फ़ोन बज रहा है। ओह कहते हुए बड़े ही नज़ाकत से उसने फ़ोन उठाया और सबकी तरफ़ देखते हुए हेलो कहा। उधर से केशव ज़ोर -ज़ोर से चिल्लाते हुए कह रहे थे ....दस मिनिट से दही ढूँढ रहा हूँ नहीं मिल रहा है। कहाँ रख दिया है। जाने की ख़ुशी में पति के लिए सब रखा है या नहीं यह भी ध्यान नहीं रहता। सब चुपचाप केशव की बातें सुन रहे थे। सुजाता शर्म से पानी -पानी हो जाती है। दही कहाँ है बता देती है और सोचती है .. आ बैल मुझे मार जैसा पहले तो एक बार घर छोड़ा तो फिर जाने के बाद ही घर की फ़िक्र होती थी। फ़ोन के कारण सबके सामने शर्मिंदा होना पड़ा। ख़ैर घर पहुँच जाती है पर उदास मन से। जैसे ही घर पहुँचती है। केशव चाय बनाते हैं एक टेबलेट भी लाकर देते हैं और कहते हैं तुम्हें सिर में दर्द आया तो सहन करना मुश्किल हो जाएगा इसलिए दवाई लेकर सो जाओ कल बातें करेंगे। कहते हुए टेबलेट और पानी लाकर देते हैं जब वह बिस्तर पर लेटती है चद्दर उड़ाते हैं और लाइट बंद कर कमरे का दरवाज़ा भी हौले से बंद करते हैं।
आँखें बंद कर सुजाता सोचती है प्यार तो बहुत करते हैं पर जताना ही नहीं आता है।