प्यार की परिभाषा क्या है?
प्यार की परिभाषा क्या है?
"चाय बनी क्या? "
"लगता है उठ गए जनाब।" एक लजीली मुस्कान उठी सवि के होठों
पर और मन गुदगुदा उठा।
ट्रे में चाय बिस्कुट सजाकर सवि ठुमकती चली अपने पति रोहन की ओर। पायल की रुनझुन मधुर लय में सुनी रही थी अपने प्रियतम से नेह की पाती..
मगर बैरी पिया सुनता ही कहाँ ...
जनाब औंधे मुँह पड़े हैं उनींदे से।
"चाय हाज़िर है जनाब। उठिएगा नहीं क्या? आज छुट्टी पर रहिएगा क्या ?"
सवि ने मन टटोला।
छुट्टी की बात सुनते ही उछल पड़ा रोहन।
"अरे क्या बात करती हो। आज और छुट्टी? न बाबा। मरवाओगी क्या?
मन बुझ-सा गया सवि का....
वैसे उसके कान तो यही सुनने की उम्मीद कर रहे थे।
"मेरा बैग लाओ सवि जल्दी।" रोहन लगभग चीखते हुए बोला और लगभग हाथ से बैग झपट कर ये गया वो गया।
धम्म....
कालीन पर बैठ कर रह गयी थी वो....
अँखिंयाँ सावन-भादों और मुखड़ा एक मुरझाया खूबसूरत गुलाब।
सवि हिचकियाँ ले रही थी।
दिन भर बहुत से फोन आए। मायके से भी और ससुराल से भी।
" ओए होए... मेरी जानू... बहुत बहुत मुबारक आज का खूबसूरत दिन.... कहाँ है हनीमून मेरी हनी..."
उधर नेहा चहक रही थी। प्यारी गुड़िया-सी नयी नवेली भाभी सवि की इकलौती चुलबुली ननद नेहा।
अब तक रुका सैलाब सारे तटबंध तोड़ बह निकला था पलकों की कोरे लांघ कर। सुबक उठी सवि।
अरररररे !! मेरी लाडो रो क्यों रही है ?
नेहू ....
"मुझे सुबह से विश तो क्या दो बात भी ठीक से नहीं की।"
"सुबह को ब्रेक फास्ट को हाथ भी नहीं लगाया। "
"आज शाम को देर से आने की कह कर गये हैं। "
ओह्ह..ना रो। मैं बात करूं भैया से ?
ना.. ना.. नेहू कभी ग़लती न करना तू वर्ना घर आकर मेरी क्लास... बाकी शब्द मुंह में ही रह गये सवि के।
दिमाग चकर घिन्नी बन घूम गया। परसों रात की ही तो बात है। मिस्टर एण्ड मिसेज सान्याल की मैरिज एनीवर्सरी पार्टी थी। मिसेज़ सान्याल इस बात से नाराज़ दिख रही थीं कि पति देव ने सुबह विश नहीं किया तो नहीं किया बल्कि आँफिस तक में भी याद न आया। अब रात को विश किया। यह कोई तरीका है क्या।
खैर। हम सबने हँसी मज़ाक कर सुलह कर माहौल को खुशगवार बनाया।
घर आने पर रोहन ने इस घटना पर बड़ा अजीब - सा रिएक्ट किया।
कहने लगे - "बड़ी अजीबोगरीब हरकत मिसेज सान्याल की तो यार। उसे समझ में नहीं आता कि घर चलाने के लिए पैसा चाहिए और पैसा कमाना कोई बच्चों का खेल नहीं। इन औरतों को बर्थ-डे, शादी की सालगिरह यह बचकानी और फिजूल बातें क्यों सूझती हैं ?"
"आई डोन्ट लाइक दिस टाइप ऑफ़ स्टुपिट थिंग्स।" और करवट बदलने के कुछ मिनटों बाद वह रोहन के खर्राटों से रूबरू थी।
रात के साढ़े दस बज चुके हैं....
सवि की आशाओं की एक भी किरण शेष न बची जो उसके दिल दिमाग को धैर्य की रौशनी दे सके।
वह फूट फूट कर बोल पड़ी-" रोहन क्या यही है प्यार तुम्हारा। "
बाहर गाड़ी का हाॅर्न बजा। सवि वाॅश रूम की तरफ भागी और मुंह धोकर टाॅवेल से पोंछ तुरंत दरवाज़ा खोला।
सामने रोहन थे थके-हारे। उसने तुरंत उनके हाथ से बैग लेकर पानी का ग्लास दिया। वे सोफे पर जा धंसे।
खाने की टेबल पर उसका उतरा चेहरा देख रोहन कह रहे थे -" क्यों तबियत ठीक नहीं है क्या सवि?
" नहीं तो। ठीक है जी" सवि नीची नज़रें कर मोतियों को सहेजने की असफल कोशिश कर रही थी।