Aaradhya Ark

Children Stories Fantasy Children

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पोटली से गुड़िया निकली

पोटली से गुड़िया निकली

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"आज विधि का कमरा अच्छे से जमा दूँ, आखिर पग फेरे के बाद पहली बार बेटी और दामाद दो चार दिन के लिए घर पर रहने आ रहे हैं।कल के बाद तीन चार दिन तो रमन चमन में ही गुजर जायेंगे!"


श्रद्धा ने सोचा,आज अपनी अलमारी की सफाई की जाए।वैसे भी अभिषेक दो दिन के लिए टूर पर गए हुए थे और विधि की शादी के बाद एक तरह से उसके पास दोपहर का वक्त खाली ही रहता था।अन्यथा विधि खाने पीने की बहुत शौकीन थी।वह जब ऑफिस से आती तो सबसे पहले किचन में जाकर देखती की मम्मी ने आज क्या बनाया है।

अब उसकी विदाई के बाद अभिषेक रात में ही आते तभी दोनों पति पत्नी एक साथ खाना खाते थे।दोपहर में श्रद्धा यूँ ही अपने लिए कुछ हल्का-फुल्का बना लेती लेती थी।कपड़ों को तहाते हुए तस्वीर वाली एल्बम को हाथ में उठाते ही विधि की बचपन की एक प्यारी सी फोटो निकल आई। गुलाबी स्वेटर में गुलगोथनी सी बिटिया।

उन्हें याद है यह स्वेटर उन्होंने अपने हाथ से तो बुनकर उसे पहनाया था।तब रंगीन फोटो का जमाना नहीं था नहीं तो अब तक विधि का गुलाबी स्वेटर का फोटो उसके गुलाबी गालों की तरह ही चमकदार दिखता।श्रद्धा याद करने लगी अभिषेक ज़ब यह तस्वीर ले रहे थे तब तस्वीर लेते समय विधि एकदम गुलाबी गालोंवाली गुड़िया जैसी लग रही थी। आज तक उनके मन में अपनी बिटिया की यही तस्वीर आंखों में बसी हुई थी।देर तक अपनी बिटिया की फोटो को निहारती रही श्रद्धा पता नहीं कैसे देखते देखते उनकी आंखें पनिया गई।बेटियां कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं,सयानी हो जाती हैं और माता-पिता का आंगन सूना करके किसी और घर की शोभा बन जाती हैं।मां के मन से पूछो तो बेटियां कभी विदा नहीं होती। उनकी यादें डोलती रहती हैं उनके आंगन में,उनकी यादों में,माँ के आंचल की कोर में,उनकी सोचों के छोर में।

ऐसा नहीं कि माता पिता बेटों को कम प्यार करते हैं। बल्कि बच्चे तो दोनों उनके लिए बराबर होते तो हैं।पर शायद समाज का ढांचा ऐसा है,बनावट ऐसी है,सोच ऐसी है कि बेटियां तो पराया धन होती है उन्हें एक दिन यह घर छोड़कर दूसरे घर जाकर उस घर की शोभा बढ़ानी होती है।उस घर को अपनाना पड़ता है,बसाना पड़ता है।इसमें कहीं भी बेटा बेटी से कम नहीं है।यह बस एक पुरानी सोच है बस।

वैसे बेटियाँ स्त्रीवर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं,शायद इसलिए कि स्त्री ज्यादा सक्षम है।

उनमें स्वाभावगत संवेदनसिक्त भावना उनके मन, वाणी और व्यवहार को और कोमल बनाती हैं और उनमें दूसरों को समझने की समझ को और पुख्ता करती है।तभी तो बेटियां विदा होकर दोनों घरों की लाज भी रखती हैँ और शोभा भी बढ़ाती हैं।

आज विधि की फोटो देखते देखते श्रद्धा को भी अपनी परवरिश पर नाज हो आया था। विधि बहुत समझदार थी।उसने अपने लिए एक ऐसा जीवन साथी चुना था जो बहुत ही समझदार और व्यवहारिक था। वैसे तो विधान बहुत ही भावुक और मितभाषी था लेकिन उसके विचार बहुत ही तेज और स्पष्ट थे।विधि और विधान पहले दोस्त बने फिर ज़ब दोनों ने महसूस किया कि उनके विचार आपस में काफ़ी मिलते जुलते हैं तो उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं थीं।

विधि और विधान की मुलाकातें ज़ब शाम की कॉफी से रात के डिनर तक होने लगी तब वह कभी कभी देर से आने लगी तो एक दिन उन्होंने विधि से पूछ ही लिया कि क्या वह विधान को पसंद करती है?

बदले में विधि ने कहा था,

"ज़्यादा मत सोचो माँ! मैं और विधान सिर्फ अच्छे दोस्त हैँ और आपका पीछा मैं इतनी जल्दी नहीं छोड़नेवाली। मैं शादी ही नहीं करुँगी!"

"ये क्या बात हुई विधि? शादी तो करनी ही होती है आज नहीं तो कल!"

उन्होंने उसे समझाना चाहा तब वह हँसकर टाल गई।

"आखिर तुम्हारी बेटी विधि की शादी क्यों नहीं कर देती तुम? छब्बीस की तो होने को आई, अब क्या चेहरे का पानी उतर जायेगा तब किसी दुहाजु से व्याहोगी अपनी राजकुमारी को!"

ज़ब एक दिन सुमन मौसी ने श्रद्धा को झाड़ पिलाई तब श्रद्धा भी एकदम चिंतित हो गई।जब कई सालों तक विधि अपना विवाह टालती रही थी तो श्रद्धा को कुछ संदेह हुआ उन्होने विश्वास में लेकर एक बार फिर अपनी बेटी से पूछा, कि क्या उसे विधान से या किसी और से प्रेम है या फिर कोई और बात है जो वह विवाह नहीं करना चाहती।

बदले में विधि ने जो कहा वह श्रद्धा जी को और भी भावुक कर गया कि उनकी बेटी उन्हें इतना प्यार करती है

विधि ने कहा,

"माँ ! मैं इसलिए शादी नहीं करना चाहती कि मैं आप दोनों मतलब अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूँ और जब आप दोनों वृद्ध हो जाएंगे तो आपदोनों की देखभाल कौन करेगा?"

विधि की बात सुनकर सजल हुए नेत्रों से श्रद्धा ने अपनी बेटी का माथा चूमा और प्यार से कहा,

"बेटा तुम इतना सोचती हो तो सुनो, तुम्हें हमारी फिक्र करने की जरूरत नहीं। हम दोनों अपनी देखभाल कर लेंगे।तुम्हें मैंने जिंदगी के सारे रंग दिखाए हैं।बेटा "जैसी कि तुम्हें खाने में हर वह चीज खिलाई है ताकि तुम किसी भी स्वाद से वंचित ना रहो।वैसे ही मैं चाहती हूं तो विवाह जरूर करो ताकि जीवन के इस पड़ाव से इस संस्कार से इस रिश्ते से तुम वंचित ना रहो।तुम विवाह अवश्य करो कोई ना कोई अच्छा जीवन साथी होगा तो तुम्हें खुश रखेगा मैं और तुम्हारे पिताजी तुम्हारी खुशी में खुश हो लेंगे!"

श्रद्धा ने प्यार से अपनी बिटियारानी को समझाया।शायद आज श्रद्धा के मुंह से सरस्वती बोल गई या फिर उनके अच्छे कर्मों का फल था की विधि को विधान के रूप में बहुत ही समझदार और अच्छा जीवनसाथी मिला।उसने श्रद्धा का बहुत सम्मान किया।विवाह पूर्व जब विधान को विधि ने अपनी शादी के बाद माता-पिता के लिए चिंता दिखाई तो विधान ने कहा,

"मैं हूँ ना !जब तक पिताजी से उसका आशय विधि के पिताजी से था क्योंकि उसकी पिताजी को का निधन उसके बचपन में ही हो चुका था।विधान ने कहा,

" जब तक पिताजी नौकरी पर है तब तक उन्हें यही रहने देते हैं अब सेवानिवृत्ति के बाद वह दोनों और मेरी मां एक साथ रहेंगे।मेरे पिता के बगैर मेरी मां ने वर्षों अकेलेपन का जीवन काटा है।अब उन्हें एक सहेली भी मिल जाएगी और तुम्हारे और मेरे पिता के रूप में एक भाई भी।अचंभित हो गए थ

  विधि के माता-पिता श्रद्धा और अभिषेक को यकीन नहीं आया इस समय इस युग में ऐसे इंसान होते हैं क्या?

 विधान की बातों से विधि बहुत प्रभावित हुई और उसने विवाह के लिए हां कह दिया आज विधि और विधान के विवाह को एक महीने हो गए थे। श्रद्धा को लग रहा था अपनी लाडली को देखे बगैर सदियाँ गुजर गई हों। परसों दोनों हनीमून से वापस आ गए थे। दो दिन अपनी ससुराल में रहकर कल विधि और विधान यहाँ आ रहे थे। इसलिए श्रद्धा आज उनके आने की तैयारी करते हुए बहुत उत्साहित थीं।क्योंकि

विधि और विधान से ज़ब फोन पर बात हुई थी तो दोनों आपस में बहुत खुश लग रहे थे।श्रद्धा घर की सफाई करते हुए कुछ कुछ गुनगुना भी रही थी।

"बेटियाँ घर में हमेशा भले ना रहती हों

पर सबके दिलों में तो समाई होती हैं,

नाज़ों पली लाडो गुड़िया सी राजकुमारी

अपने मातापिता के लिए कब पराई होती हैँ?"

श्रद्धा और अभिषेक को अपनी बिटिया पर बहुत गर्व था और बहुत प्यार भी आ रहा था।

एक बार फिर श्रद्धा ने गुलाबी स्वेटर में अपनी प्यारी बिटिया के फोटो को प्यार किया तो लगा उस फोटोवाली विधि में कोई हलचल हुई है। और नन्हीं सी विधि उनके गले से लिपट गई है।गुलाबी रंग की फोटो का रंग और भी गुलाबी हो गया है बिल्कुल सुहानी गुलाबी शाम की तरह।

एक बेटी जब विदा होकर ससुराल जाती है और अपनी नई ज़िन्दगी में सुखी रहती है तो पिता को तो खुशी होती ही है एक माता को तो संपूर्ण जगत की खुशी मिल जाती है जो खुशी आज श्रद्धा महसूस कर रही थीं।

  बेटियां हमेशा घर महकाती हैं।जिस घर जाती हैं सच में घर को घर बना देती हैं।

श्रद्धा ने एक बार फिर विधि की फोटो को प्यार से चूमा और दुगने उत्साह से अपनी बेटी और दामाद के आने की तैयारी करने लगी। उन्होंने अपनी यादों की पोटली से निकली हुई गुड़िया मतलब विधि की फोटो को अपने एलबम में फिर से सजाकर रख दिया।


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