Mukta Sahay

Children Stories

5.0  

Mukta Sahay

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फटी लेकिन मालामाल जेब

फटी लेकिन मालामाल जेब

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पाँच साल के पूरब की तबियत लगातार बिगड़ती ही जा रही थी। पेट दर्द और उलटी सारे उपाय के बाद भी रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। माया और राज बहुत ही घबराहट में थे । उन्हें लग रहा था की सुबह का इंतज़ार करना सही नहीं होगा। जल्दी जल्दी दोनो पूरब को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए तैयार हो गए। राज ने अपने कुर्ते की जेब में बटुआ डाला और गाड़ी की चाबी उठाई। डॉक्टर को फ़ोन मिलता हुआ वह गाड़ी निकालने के लिए भाग। माया पानी, तौलिया आदि सामान बैग में डाल कर पूरब को गोद में उठाई और बाहर निकल गई । अब तक राज भी गाड़ी निकल कर दरवाज़े तक ले आया था। माया पूरब के साथ गाड़ी में बैठ गई और राज घर में ताला लगा तेज़ी से डॉक्टर के घर की तरफ़ गाड़ी को भगाया।डॉक्टर ने जब पूरब की हालत देखी तो उसे तुरंत पास के अस्पताल ले जानो को बोला और वहाँ के डॉक्टर को भी फ़ोन कर दिया। माया और राज पूरब को ले कर अस्पताल पहुँचे। अस्पताल के आकस्मिक चिकित्सा विभाग में पूरब का इलाज शुरू हो गया। नर्स ने राज से काग़ज़ और पैसे भरने को कहा। राज ने सारे काग़ज़ जल्दी जल्दी भरे और काउंटर पर पैसे जमा करने के लिए कुर्ते की जेब में हाथ डाला। ये क्या हाथ में कुछ नहीं आया । राज ने फिर हाथ डाला और हाथ नीचे से बाहर आ गया। कुर्ते की जेब फटी थी और शायद पर्स भी लगता है कहीं गिर गया है। राज के पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई। एक तो जान से प्यारे बच्चे की हालत इतनी गम्भीर और दूसरा ये मुसीबत। परेशानी के कारण राज के सर पर पसीने की बूँदे चमकने लगी थी। वह बेबस वहीं काउंटर पर चहलक़दमी करने लगा।

तभी पीछे से आवाज़ आई "राज भाई इस समय यहाँ कैसे?" राज पलटा तो देखा दिनेश खड़ा था सफ़ेद एपर्न पहने गले में आला टाँगे । किसी पहचान वाले को देख कर राज ने अपनी परेशानी उससे कह डाली। दिनेश ने कहा बस इतनी से बात है । मैं आपकी गारंटी लेता हूँ , आप परेशान ना हों। दिनेश ने काउंटर से राज के काग़ज़ ले कर उसपर अपने हस्ताक्षर कर इलाज जारी रखने के निर्देश लिख दिए। राज जब उसे धन्यवाद करने लगा तब दिनेश ने कहा "क्या भाई आप मुझे शर्मिंदा कर रहे है।शायद आपको याद भी नहीं होगा की आपने मुझे पाँच रुपए दिए थे ,मेरे सर्टिफ़िकेट फ़ोटोकॉपी करने के लिए। उस दिन मेरे मेडिकल का कन्सीलिंग था और मेरे फ़ोटोकॉपी वाले पेपर घर पर हाई छूट गए थे।उन्हें लाना मेरे लिए सम्भव भी नहीं था और मेरे पास पैसे भी नहीं थे। आप मधु को ले कर आए थे कन्सीलिंग के लिए। फिर आपने मुझे पैसे दिए थे। कहीं ना कहीं आपका भी योगदान है मेरे डॉक्टर बन पाने में तो क्या मैं इंसानियत के नाते पूरब के लिए इतना भी नहीं कर सकता।" दिनेश की बातें सुन कर राज ने उसे गले से लगा लिया और सोचने लगा कब कौन कहाँ फ़रिश्ता बन कर आ जाता है पता ही नहीं चलता।आज राज की फटी जेब ने उसे अहसास करा दिया की भले इंसान की जेब फटी हो कर भी मालामाल होती है ।


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