फिर कभी
फिर कभी
जिंदगी में जाने-अनजाने अनेक लोगों से मुलाकात होती रहती है, मिलते हैं और अपने रास्ते चल देते हैं, ऐसे में कुछ लोग अच्छा सबक दे जाते हैं तो कुछ लोग अच्छे संबंध बना लेते हैं।
अरे यार, मैंने क्या पूछा, तू क्या बोले जा रही है ?
तू पहले मेरी पूरी बात सुन, बाद में तेरे सवाल।
ठीक है बोल,
याद है तुम्हें - चार साल पहले की बात है, जोरों की बारिश के कारण लोकल ट्रेन बंद हो गई थी, काफी देर ट्रेन कहीं बीच में रुकी रही तो पता नहीं क्या सोचकर वहीं रास्ते में उतर गई पैदल चलने के चक्कर में भटक गई, समझ में आ रहा था क्या करूँ ? बारिश बढ़ती जा रही थी, रास्ता भी नहीं सूझ रहा था, ना आगे जा पा रही थी और ना पीछे। अभी असमंजस में डूबी एक खंभे के सहारे खड़ी बारिश रुकने का इंतजार करने लगी लेकिन कम होने या रुकने के बजाय तौबा-तौबा, कुछ थोड़ी सी दूरी पर तो कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था। काफी वक्त गुज़र गया मैं परेशान कि अचानक काला लबादा ओढ़े एक बंदा मेरे सामने आकर खड़ा हो गया, मैं घबरा गई। उसके कहा डरिये मत, वो देखिए - मेरा घर सामने ही है मैं भी उसी ट्रेन से उतर कर आया हूं जिससे आप उतरी। वैसे आप रहती कहां हैं ?
बदलापुर।
ओह, तब तो आप किसी भी हालत में जा नहीं सकती, भायखला के आसपास है, ट्रेन का भरोसा नहीं और किसी साधन का भी ठिकाना नहीं, आप चलिए मेरे साथ। कोई चारा नहीं था डरते-डरते उसके साथ चली गई सोचा परिवार वाला होगा, मैंने पूछा भी उसकी बिल्डिंग के पास पहुंच कर।
जी, मैं अकेला हूं पर इत्मीनान रखिए, घबराने की कोई बात नहीं, मुझे अपना दोस्त ही समझिए। डर तो फिर भी बरकरार था पर दिखाने की यही कोशिश थी कि डर नहीं रही हूं। खैर उसने हर तरह से ख्याल रखा अपनी बीवी के कपड़े दिए जो अब इस दुनिया में थी। मुझे पूरा दिन उसके यहां रुकना पड़ा, घर पर फोन भी नहीं कर पा रही थी मोबाइल काम नहीं कर रहे थे, उसका लेंडलाइन भी बंद। इन सबके बावजूद उस अनजान अजनबी ने एक बड़े भाई की तरह व्यवहार किया। उस अनजान से मैं इतनी अभिभूत हुई कि अपने बड़े भाई के रूप में महसूस करने लगी।
बरसात थमी, लोकल चली मैं भी अपने घर पहुंच गई लेकिन वो अजनबी दोबारा न मिला परेशानी में फोन नंबर वगैरह लेना तो कुछ सूझा नहीं। पंद्रह दिन बाद जब वहां गई तो नहीं था पड़ोसियों से भी कुछ पता नहीं चला। महीने, पंद्रह दिन में चक्कर लगाती रही मगर वो नहीं मिला तो नहीं मिला और आज चार सालों बाद मिला मैं टैक्सी के लिए खड़ी थी कि अचानक टैक्सी रुकी, मैं बैठ गई चर्च गेट चलने को कहा। कुछ देर की चुप्पी के बाद बाद बोला - पहचाना नहीं ?
क्यों, कौन हो तुम ? कहते-कहते उसकी तरफ गौर से देखा, घोर आश्चर्य, यह तो वही बंदा था, अनायास ही मेरे मुंह से निकला - भैया।
हां बहना। फिर हम दोनों में बहुत बातें हुई, कैसे और कहां था ? फिर मिला क्यों नहीं ? सुनकर मन द्रवित हो गया।
आगे क्या हुआ ?
बहुत लंबी कहानी है, अभी रवि आते होंगे, आते ही उन्हें खाना चाहिए सो अब खाने की तैयारी करती हूं, बाकी का फिर कभी।