पापा जी और रेडियो।
पापा जी और रेडियो।
मेरा नाम अथर्व हैं और मैं दस साल का हूँ। मैं कक्षा सातवीं में पढ़ता हूँ। मैं पढ़ाई-लिखाई में बहुत ही होशियार छात्र हूँ। मैं हर साल कक्षा में अव्वल आता हूँ। हर रोज़ स्कूल से घर जाकर अपना गृहकार्य ख़त्म करके रेडियो पर गाने सुना करता हूँ। ये रेडियो का मुझसे बहुत ही गहरा नाता है।मेरे मम्मी-पापा की जब शादी हुई थी तो सब बहुत ही खुश थे। मेरी मम्मी जी का नाम सुनीता था और पापा जी का नाम राम था। मम्मी-पापा जी की अरेंज मैरिज हुई थी।
पापा जी का एक जुड़वां भाई था और उनका नाम बलराम था। दोनों भाई बिल्कुल हमशक्ल होने के कारण एक जैसे लगते थे।मम्मी जी और पापा जी के माता-पिता आस-पड़ोस में रहते थे। राम बलराम के पिता जी और सुनीता के पिता जी सेना में अफसर थे।
राम बलराम कॉलेज जाते थे और सुनीता भी कॉलेज जाती थी। तीनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। राम बलराम को सुनीता से प्यार हो गया था। सुनीता भी राम से प्यार करती थी। सुनीता ने बलराम को सब बता दिया था कि वो राम से प्यार करती है और बलराम ने अपने प्यार की कुर्बानी देकर राम और सुनीता की शादी करवा दी।दोनों हनीमून मनाने के लिए शिमला गए और अपना हनीमून मनाकर वापिस आएं।
दोनों भाई सेना में भर्ती हो गए और एक ही जगह दोनों की पोस्टिंग हुई थी। दोनों भाई एक-दूसरे के लिए पूरी तरह समर्पित थे। दोनों एक साथ खाते-पीते उठते-बैठते चलते-फिरते सोते-जागते थे।
एक दिन रात के समय दोनों भाइयों की ड्यूटी लगाई गई थी और कुछ आतंकवादियों ने हमला कर दिया और दोनों वीरता से उनका सामना करने लगे।
आतंकवादियों ने चारों तरफ से घेर लिया था और एक-एक करके जवान शहीद हो रहे थे। अँधेरे में भी जब कुछ नज़र नहीं आ रहा था तो दोनों भाइयों ने डटकर उन आतंकवादियों का सामना किया और उनका सफ़ाया कर दिया।लेकिन एक आतंकवादी ने मरते हुए उन पर बम फेंक दिया और दोनों भाई भी शहीद हो गए। पापा जी और चाचा जी को मरणोपरांत परमवीर चक्र वीरता पुरस्कार दिया गया।
मम्मी जी उस समय गर्भ से थे और मम्मी जी और नाना-नानी और दादा-दादी बहुत रोए थे।एक दिन दादा-दादी नाना-नानी बस में किसी काम से बाहर जा रहे थे और बस दुघर्टना में उन सबका निधन हो गया।अब मम्मी जी और मैं ही परिवार में रह गए थे। मम्मी जी ने एक निजी स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया था। स्कूल के प्रधानाचार्य मम्मी जी को अपनी मुंहबोली बेटी मानते थे। मैं उनको नाना जी कहकर बुलाता था।
कुछ दिन बाद उनके एक छात्र के चाचा जी जो सेना में थे और जिनका नाम पंकज था और उनकी मम्मी जी से स्कूल में मुलाकात हुई और धीरे-धीरे दोनों में प्यार हो गया।और फ़िर मेरी मम्मी जी की दूसरी शादी हुई थी। मेरे पापा जी सेना में थे और पापा जी को रेडियो बहुत पसंद था और वो आखिरी समय तक वो साथ रखते थे। वो पुराने गाने सुनते और देश-विदेश के समाचार सुनते रहते थे।अब वो रेडियो मेरे को मिला था और पापा जी चाहते थे कि उनके मरने के बाद वो रेडियो मुझे दिया जाएं। पापा जी छुट्टियों में जब घर आते थे तो वो और मम्मी जी मिलकर गाने सुनते थे।
उस समय बिजली बहुत जाती थी। मम्मी-पापा जी सोने चले गए और मैं जो नाना जी ने नये पापा जी को शादी में वैस्टन कंपनी का टीवी दिया था।बिजली चली गई और मैं टीवी और रेडियो दोनों चलते छोड़ सो गया और बिजली जाने पर मैंने मोमबत्ती जलाकर टीवी के ऊपर रखें हुए रेडियो पर रख दी।
अचानक मेरी शोर-शराबे से नींद खुल गई और मैंने देखा कि कमरे में रेडियो और टीवी जल चुके थे और आग परदों में भी लग गई थी। कमरा अंदर से बंद था और दरवाजे पर आग पहुंच चुकी थी।तब मेरे नये पापा जी जो कि मेरे पापा जी के साथ ही सेना में थे और नाम पंकज था और उन्होंने दरवाजा तोड़ कर मुझे बाहर निकाला। कमरे में लगभग सारा सामान जल गया था। अब मैं परेशान रहने लगा क्योंकि पापा जी की आखिरी निशानी रेडियो जल चुका था और मैं बस रोता रहता था।
मम्मी जी और नये पापा जी बहुत परेशान थे और मुझे हंसाने के सारे प्रयास किए पर मैं बस गुमसुम सा रहता। फिर जल्दी मेरा जन्मदिन आया और मैं उदास बैठा था और नये पापा जी पंकज जी ने मुझे एक रेडियो दिया और उस समय उस पर वही गाना आ रहा था "रोते-रोते हंसना सीखो हंसते-हंसते रोना" ये गाना पापा जी बहुत गाया करते थे और मम्मी जी भी सोते समय सुनाकर सुलाया करती थी।
जैसे ही मैंने ये गाना सुना और मेरे होंठों से पापा जी निकला और मैं बहुत बहुत रोया। अगले दिन सुबह मम्मी जी ने मुझे उठाया तो मैं बिल्कुल बदला सा था और वो पापा जी के मनपसंद गाने और रेडियो ने मुझे बदल डाला और फिर हम सभी खुशी-खुशी रहने लगे।