पाबंदी
पाबंदी
दोनों सहेलियाँ आपस में बातें कर रही थी।"घर होता है चारदीवारी से,सारी बातें चारदीवारी के अंदर ही होनी चाहिए।"
"यह चारदीवारी ही हर पल मुझे कंट्रोल करती सी लगती है।"उसने कुछ बुदबुदाते हुए कहा। "तुम भूल रही हो एक बात, इस चारदीवारी में हम औरतें महफ़ूज भी तो रहती है।और तुम्हें आज़ादी का करना क्या है? जितनी आज़ादी की दरकार हम औरतों को होती है उतनी तुम्हें इस घर की चारदीवारी में तो हासिल है ही।" उसने कुछ तल्खी से कहा।दूसरी गहरी साँस भरते हुए कहने लगी,"तुम्हें नहीं पता,घरों में बहुत सारी पाबंदियाँ होती है।और घर में हम महफ़ूज कहाँ होती है? घर की बहुत सी बातों पर पर्दा डाला जाता है।पाबंदियों में बिटवीन द लाइन्स बहुत कुछ लिखा होता है।बिल्कुल इन झरोखों की तरह जो आपको ताज़ा हवा और रौशनी होने का अहसास तो देती है लेकिन बहुत मामूली ।
बेखौफ होकर जब चाहे दरवाज़े खोल कर बाहर जाने की आज़ादी है हमे? क्या कोई दरवाज़ा चाहते हुए खोल सकते है? कोई दरवाजा चाहते हुए हम बंद कर सकते है? हम औरतों की कोई मर्ज़ी भी पूछता है भला? और कहीं मर्ज़ी की बात होती भी है तो वह बस खानापूर्ती ही कि जाती है।महफ़ूज होने के अहसास में हम औरतें अपनी आज़ादी की बलि खुद दे देती है...
