नीला चाकू
नीला चाकू


लेखक: विक्टर द्रागून्स्की
अनु.: आ. चारुमति रामदास
बात यूँ हुई.
हमारी क्लास चल रही थी – सृजनात्मक कार्य की. रईसा इवानोव्ना ने कहा कि हममें से हर कोई अपनी मर्जी से एक-एक टेबल-कैलेंडर बनाएगा. मैंने एक गत्ते का डिब्बा लिया, उस पर हरा कागज़ चिपकाया, बीच में एक झिरी काटी, उसमें माचिस की डिब्बी फिट की, और डिब्बी पर सफ़ेद कागज़ों की गड्डी रख दी, उन्हें ठीक से एडजस्ट किया, चिपकाया, एक से साइज़ का बनाया और पहले पन्ने पर लिखा: "पहली मई की शुभकामनाएँ!"
बड़ा ख़ूबसूरत कैलेंडर बना – छोटे बच्चों के लिए. अगर, मान लो, किसीके पास गुडिया हैं, तो इन गुड़ियों के लिए. मतलब, खिलौने वाला कैलेंडर. और रईसा इवानोव्ना ने मुझे '5' अंक दिए.
वह बोलीं:
" मुझे अच्छा लगा."
और मैं अपनी जगह पर आकर बैठ गया. इसी समय लेव्का बूरिन भी अपना कैलेंडर देने के लिए उठा, मगर रईसा इवानोव्ना ने उसके कैलेंडर को देखकर कहा:
"अच्छा नहीं है."
और उन्होंने लेव्का को '3' अंक दिए.
जब शॉर्ट-इन्टर्वल हुआ तो लेव्का अपनी जगह पर ही बैठा रहा, उसके चेहरे पर अप्रसन्नता थी. और मैं, इत्तेफ़ाक से, इस समय धब्बा सुखा रहा था, और, जब मैंने देखा कि लेव्का इतना उदास है, तो सीधे हाथ में ब्लॉटिंग-पैड लिए लेव्का के पास चला गया. मैं उसे हँसाना चाहता था, क्योंकि वो मेरा दोस्त है और उसने एक बार मुझे छेद वाला सिक्का दिया था. और उसने वादा किया है कि वो मुझे इस्तेमाल किया हुआ शिकारी-कारतूस का केस भी लाकर देगा, ताकि मैं उससे एटॉमिक टेलिस्कोप बना सकूँ.
मैं लेव्का के पास गया और बोला:
"ऐख, तू, रोतला!"
और मैंने भेंगी आँखों से उसकी ओर देखा.
मगर लेव्का ने बिना किसी वजह के मेरे सिर पर पेंसिल-बॉक्स दे मारा. तभी मैं समझा कि आँखों के सामने तारे कैसे कौंधने लगते हैं. मुझे लेव्का पर बेहद गुस्सा आया और मैं पूरी ताक़त से उसके कंधे पर ब्लॉटिंग-पैड से वार करने लगा. मगर , ज़ाहिर है, उसे कुछ महसूस ही नहीं हुआ, बल्कि उसने अपना बैग उठाया और घर चला गया. मगर लेव्का ने मुझे इतनी ज़ोर से मारा था कि मेरी आँखों से आँसू बहने लगे – आँसू सीधे टप-टप ब्लॉटिंग-पैड पर गिरने लगे और उस पर बदरंग धब्बों की तरह फ़ैलते रहे...
और तब मैंने तय कर लिया कि लेव्का को मार डालूँगा. स्कूल के बाद मैं पूरे दिन घर पे बैठा रहा और हथियार तैयार करता रहा. मैंने पापा की लिखने की मेज़ से उनका कागज़ काटने वाला नीला, प्लास्टिक का चाकू लिया और दिन भर उसे स्लैब पर तेज़ करता रहा. मैं उसे लगातार, बड़े धीरज से करता रहा. वह बड़े धीरे-धीरे तेज़ हो रहा था, मगर मैं उसे तेज़ करता रहा और सोच रहा था, कि कैसे मैं कल क्लास में आऊँगा और मेरा भरोसेमन्द चाकू लेव्का की आँखों के सामने चमकेगा, मैं उसे लेव्का के सिर के ऊपर ले जाऊँगा, और लेव्का घुटनों पर गिरकर मुझसे ज़िन्दगी की भीख माँगेगा, और मैं कहूँगा:
"माफ़ी माँग!"
और वो कहेगा:
"माफ़ कर दे!"
और मैं गरजते हुए ठहाका लगाऊँगा:
"हा-हा-हा-हा!"
और ये भयानक हँसी काफ़ी देर तक गूँजती रहेगी. और लड़कियाँ डर के मारे डेस्कों के नीचे छुप जाएँगी.
जब मैं सोने के लिए लेटा, तो बस, इधर से उधर करवटें ही लेता रहा, गहरी-गहरी साँसें लेता रहा, क्योंकि मुझे लेव्का पर दया आ रही थी – अच्छा इन्सान है वो, मगर जब उसने पेन्सिल-बॉक्स से मेरे सिर पर हमला किया था, तो अब - जैसा किया था वैसा भुगते. नीला चाकू मेरे तकिए के नीचे पड़ा था, और मैं उसकी मूठ दबाए क़रीब-क़रीब कराह रहा था, इसलिए मम्मा ने पूछा:
" तू ये कराह क्यों रहा है?"
मैंने कहा:
"कुछ नहीं."
मम्मा ने कहा:
"क्या पेट दुख रहा है?"
मगर मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया, सिर्फ मैं दीवार की ओर मुँह करके लेट गया और इस तरह सांस लेने लगा, जैसे मैं बड़ी देर से सो रहा हूँ.
सुबह मैं कुछ भी न खा सका. बस, ब्रेड-बटर, आलू और सॉसेज के साथ दो कप चाय पी गया. फिर स्कूल चला गया.
नीला चाकू मैंने बैग में सबसे ऊपर ही रखा, जिससे कि निकालने में आसानी हो.
क्लास में जाने से पहले मैं बड़ी देर तक दरवाज़े के पास खड़ा रहा और भीतर न जा सका - दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था! मगर फिर भी अपने आप पर काबू पाते हुए मैंने दरवाज़े को धक्का दिया और अन्दर गया. क्लास में सब कुछ हमेशा की तरह ही था, और लेव्का वालेरिक के साथ खिड़की के पास खड़ा था. जैसे ही मैंने उसे देखा मैं अपनी बैग खोलने लगा, जिससे कि चाकू निकाल सकूँ. मगर इसी समय लेव्का भागकर मेरे पास आया... मैंने सोचा कि वह फिर मुझे मारेगा पेन्सिल-बॉक्स से या किसी और चीज़ से, और मैं और भी ज़्यादा तेज़ी से अपनी बैग खोलने लगा, मगर लेव्का अचानक रुक गया और वहीं खड़े-खड़े पैर पटकने लगा, फिर अचानक मेरी ओर झुका...नीचे-नीचे और बोला:
"ले!"
और उसने मेरी ओर सुनहरी इस्तेमाल की हुई कारतूस बढ़ा दी. और उसकी आँखें ऐसी हो गईं, जैसे वो कुछ और भी कहना चाह रहा हो, मगर शर्मा रहा हो. मैं भी तो नहीं चाहता था कि वह कुछ और कहे, मैं तो बस पूरी तरह भूल गया कि मैं उसे मार डालना चाहता था, जैसे कि मैं ऐसा कभी भी नहीं चाहता था, बल्कि मुझे आश्चर्य भी हुआ.
मैंने कहा:
"बढ़िया है कारतूस."
मैंने कारतूस ले लिया और अपनी जगह पे चला गया.
....