नादान बहू
नादान बहू
ठंडी का समय था। हलकी हलकी धूप निकली हुई थी। मैं घर से बाहर निकली। बगल मैं रोड के किनारे पुआल पड़े थे। उसपर कुछ औरतें और छोटे छोटे बच्चे बैठे थे।
मैं भी वही पर अपनी कुर्सी रखकर बैठे गई। जब औरतें बैठे बात ना हो ऐसा हो नहीं सकता। सब औरतें अपने घर का दुख सूख बतिया रही थी। उसमें कुछ दूसरों के घरों की चुगली भी कर रहीं थीं, जिसे बाकी औरतें सांस थामे सुन रही थी। मैंने भी अपनी नज़र मोबाइल पर कान उनकी तरफ रख दिया आखिर मैं भी तो औरत ही हूँ। वहाँ पर मेरे पड़ोस की एक औरत थी ऐसा लग रहा था। जैसे अपने बहू से कुछ ज्यादा ही दुखी हो। फिर मैंने कुर्सी थोड़ी और नज़दीक कर ली ताकि सारी बातें और साफ साफ सुनिए दे। अब दर्शक मैं भी बन गई। मेरी पड़ोसन अपनी बहू से परेशान थी और बोल रही थी, क्या बतायें वो बड़ी ढीठ औरत है। शर्म हया नाम की तो चीज ही नहीं है। जब देखो दांते दिखातो है। क्या मजाल जो बिना कहे कभी पाँव दबा दे। खाली हमरे बेटी के हिस्का करतो ई ना की घर का सारा काम खुद कर ले, वैसे तो बच्चा बनती है कोई बात कहो तो पट पट जवाब देती है। तभी तो मेरा बेटा पीटता है।
मैं इ सब बात सुनकर चुप थी। जो पड़ोसन की बहू थी । उसकी उम्र मुश्किल से 15 वर्ष की होगी। जिस समय लड़की बालिग़ होती है। बेचारी की उस उम्र मैं शादी हो गई। ऊपर से दो दो बच्चे जिस उम्र मैं उसके हाथों में किताब होने चाहिए, उस उम्र मैं उसके हाथों बच्चे के दूध की बोतले थी। मैं जब भी उसके घर जाती वो मुझे काम करते हुए ही दिखती। कभी पूरे घर का कपड़ा धोते तो कभी खाना बनाते। फिर भी वो सब कोई निक्कमी और कामचोर लगती। क्या लोग बेटे के शादी के बाद बहू को नहीं एक कामवाली समझते है घर की सारी जिम्मेदारी उसी पर डाल देते हैं। और बेचारी यहाँ पर तो नादान बहू थी। जिसकी हाल पर मुझे तरस आ रहा था। सरकार लड़कियों के लिए क्या क्या योजना लाती है। लोगो को जागरूक करती हैं। फिर भी कुछ लोग बेटियों की बलि चढ़ा ही देते हैं। जैसे मेरे पड़ोसन की नादान बहू।