Charumati Ramdas

Children Stories Inspirational Others

4.3  

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मुफ़्त की रोटी

मुफ़्त की रोटी

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मुफ़्त की रोटी 

(बेलारूसी परीकथा)

अनुवाद: आ. चारुमति रामदास 

 

घास काटने वाला मैदान में घास काट रहा था, थक गया और झाड़ी के नीचे आराम करने के लिये बैठ गया. अपनी थैली निकालीउसे खोला और डबलरोटी खाने लगा.

जंगल से एक भूखा भेड़िया बाहर आया. देखा – झाड़ी के नीचे घास काटने वाला बैठा है और कुछ खा रहा है. भेड़िया उसके पास आया और पूछने लगा:

“ऐ आदमीतू क्या खा रहा है?”

“डबलरोटी” घास काटने वाले ने जवाब दिया.

“क्या वह स्वादिष्ट है?”

“आहकितनी स्वादिष्ट है!”

“थोड़ी मुझे देखने दे.”

“उसमें क्या हैले.”

घास काटने वाले ने डबलरोटी का टुकड़ा तोड़कर भेड़िये को दिया.

भेड़िये को डबलरोटी अच्छी लगी. उसने कहा:

“मैं भी रोज़ डबलरोटी खाना चाहूँगामगर वह मुझे कहाँ मिलेगीऐ आदमीबता तो सही!”

“ठीक है,” घास काटने वाले ने कहा, “मैं तुझे सिखाऊँगा कि डबलरोटी कहाँ और कैसे पाना चाहिये.”

और वह भेड़िये को सिखाने लगा:

“सबसे पहले ज़मीन जोतना होगा...”

“तब डबलरोटी मिल जायेगी?”

“नहींभाईठहर. फ़िर ज़मीन पर हेंगा चलाना पड़ता है...”

“तब डबलरोटी खा सकते हैं?” भेड़िये ने अपनी पूँछ हिलाई.

“क्या कह रहा हैरुक. पहले बीज बोना पड़ता है...”

“तब डबलरोटी मिलेगी?” भेड़िये ने अपने होंठ चाटे.

“अभी नहीं. ठहरजब तक बीज से पौधे आयेंगेठण्ड पड़ने लगेगीबसंत में ही पौधा निकलेगाफिर उसमें फूल आयेंगेबालियाँ आयेंगीफ़िर पकेंगी...”

“ओह,” भेड़िये ने गहरी साँस ली, “बहुत देर इंतज़ार करना पड़ता है! मगर उसके बाद जी भर के डबलरोटी खा सकते हैं!...” 

“अभी कहाँ से खायेगा!” घास काटने वाले ने उसे रोका. “अभी बहुत समय है. सबसे पहले पकी हुई बालियों को तोड़ना होगाफिर उनकी पूलियाँ बनानी होंगीपूलियों का ढेर बनाना होगा. हवा उनके छिलके उड़ायेगीसूरज सुखायेगातब उसे ले जायेगा...”

“और डबलरोटी खा सकूँगा?”

“ऐहकितना बेसब्रा है! पहले पूलियों को गाहना होगाअनाज के दानों को बोरों में भरना होगाबोरे चक्की पर ले जाना होगा और आटा बनवाना होगा...”

“और सब हो जायेगा?”

“नहींअभी नहीं. आटे को एक बर्तन में गूंधना होगा और इंतज़ार करना होगाजब तक खमीर न आ जाये. तब उसे गरम भट्टी में रखना होता है.”

“और डबलरोटी पक जायेगी?”

“हाँ डबलरोटी पक जायेगी. तभी तू उसे खा सकेगा,” घास काटने वाले ने अपना भाषण पूरा किया.

भेड़िया विचारमग्न हो गयाउसने पंजे से अपना सिर खुजाया और कहा:

“नहीं! यह बेहद लम्बा और मुश्किल काम है. ऐ आदमीबेहतर है कि तुम मुझे ये सलाह दो कि उसे आसानी से कैसे पा सकता हूँ.”

“ठीक है,” घास काटने वाले ने कहा, “अगर मुश्किल से मिली डबलरोटी नहीं चाहतातो मुफ़्त की खा. चरागाह में चला जावहाँ घोड़ा चर रहा है.”

भेड़िया आया चरागाह में. देखा घोड़े को.

“घोड़े,घोड़े! मैं तुझे खा जाऊँगा!”

“उसमें क्या है,” घोड़े ने कहा, “खा जा. मगर पहले मेरे पैरों से नाल निकाल देताकि उनसे टकराकर तेरे दाँत न टूट जायें.”

“ये भी सही है,” भेड़िया राज़ी हो गया. वह नालें उखाड़ने के लिये झुकाऔर घोड़े ने अपने खुर से उसके दांतों पर ज़ोर से की लात मारी... भेड़िया कुँलाटें खा गया - और भाग गया.

भागकर नदी के पास आया. देखा – किनारे पर कलहंस चर रहे हैं. “क्या मैं इन्हें खा जाऊँ?” उसने सोचा. फिर कहा:

“कलहंसोंकलहंसों! मैं तुम्हें खा जाऊँगा.”

“उसमें क्या है,” कलहंसों ने जवाब दिया, “खा ले. मगर मरने से पहले हम पर एक मेहरबानी कर दे.”

“कौन सी??”

“हमारे लिये गाना गाऔर हम सुनेंगे.”

“ये तो हो सकता है. मैं तो गाने में उस्ताद हूँ.”

भेड़िया एक ठूंठ पर बैठ गयाउसने सिर ऊपर उठाया और लगा बिसूरने. और कलहंसों ने अपने पंख फड़फड़ाए – ऊपर उठे और उड़ गये.

भेड़िया ठूंठ से उतराउड़ते हुए कलहंसों को देखता रहा और खाली हाथ चला गया.

चलते-चलते अपने-आपको खूब गालियाँ दे रहा था : “बेवकूफ़ हूँ मैं! गाने के लिये क्यों तैयार हो गयाख़ैरअब जो भी मिलेगा – उसे खा जाऊँगा!”

जैसे ही उसने ये सोचादेखा कि रास्ते पर एक बूढ़ा दद्दू जा रहा है. भेड़िया उसके पास भागा:

दद्दूदद्दूमैं तुझे खा जाऊँगा!”

“ऐसी भी क्या जल्दी है?” दद्दू ने कहा, “चलपहले तमाखू सूंघते हैं.”

“क्या वह स्वादिष्ट है?”

“कोशिश कर लो – पता चल जायेगा.”

“ला.”

दद्दू ने जेब से तमाखू की डिबिया निकालीख़ुद सूंघी और भेड़िये को दी. जैसे ही भेड़िये ने पूरी ताकत से सूंघापूरी की पूरी डिबिया ही सूंघ गया. और फिर लगा ज़ोर-ज़ोर से छींकने...आँसुओं के मारे कुछ देख भी नहीं पा रहा थाबसछींकता ही जा रहा था. इस तरह करीब घंटे भर छींकता रहाजब तक कि पूरी तमाखू नहीं छींक दी. चारों ओर देखामगर दद्दू का तो नामो-निशान तक खो गया था.

भेड़िता आगे चला. जा रहा हैजा रहा है – देखा कि एक खेत में भेड़ों का झुण्ड चर रहा हैऔर चरवाहा सो रहा है. भेड़िये ने झुँड में सबसे बढ़िया मेंढे को देखाउसे पकड़ लिया और कहा:

“मेंढेमेंढ़ेमैं तुझे खा जाऊँगा!

“कोई बात नहीं,” मेंढे ने कहा, “मेरी किस्मत ही ऐसी है. मगर मेरी बूढ़ी हड्डियों से तुझे तकलीफ़ न होऔर तेरे दांत न टूट जायेंइसलिये वहाँ, उस गढ़े में खड़ा हो जा और अपना मुँह खोलऔर मैं भागकर टीले पर जाता हूँतेज़ी से भागूँगा और ख़ुद ही सीधे तेरे मुँह में घुस जाऊँगा.”

“सलाह के लिये शुक्रिया,” भेड़िये ने कहा. “हम ऐसा ही करेंगे.”

वह गढ़े में खड़ा हो गयामुँह खोला और इंतज़ार करने लगा. और मेंढ़ा भागकर टीले पर गया तेज़ी से कूदा और अपने सींगों से भेड़िये के सिर से टकराया. भूरे भेड़िये की आँखों से इतने सितारे निकलकर बिखरने लगेउसके सामने पूरी दुनिया गोल-गोल घूमने लगी!

भेड़िया होश में आयाउसने सिर को टेढ़ा किया और ख़ुद ही सोचने लगा:

“मैंने उसे खाया या नहीं?”

इस बीच घास काटने वाले ने भी अपना काम ख़तम कर लिया था और वह वापस घर जा रहा था. उसने भेड़िये के शब्दों को सुना और बोला:

“तूने उसे खाया तो नहींमगर यह देख लिया कि मुफ़्त की डबलरोटी क्या होती है.” 

 



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