मोबाइल की आत्मकथा
मोबाइल की आत्मकथा




मैं मोबाइल, आज मुझे कौन नही जानता!!!
ये सवाल नही है, अपने आप में जवाब है कि मुझे सब जानते है। बताओ कौन नही जानता। अब तो छोटे बच्चे बोलना सिखने से पहले मेरे साथ खेलना सिख जाते है। मुझे बड़े चाव से बड़े ध्यान से देखते है।
ये तो है आज की बात, अब देखते है शुरु से। मेरे जन्म के पहले भी इन्सान अच्छे से जी रहा था पर इनका दिमाग बहुत दौडता है एक चीज़ मिली नही की दुसरी के पिछे। हर बार कुछ नया चाहिये इसे। पहले जैसे बच्चे सालभर एक खिलौने से खेल लेते थे पर आजकल हर दुसरे दिन नया खिलौना चाहिये। बस वैसे ही हमारी हालत है, हमे लिया नही की कुछ नया मार्केट मे आ गया, फिर अब बदलो।
मेरे जन्म से पहले ये दुर के लोगो के लिये फोन का इस्तमाल करते थे। उस वक़्त फोन की घंटी बजते ही सब खुश होते थे और बेवक़्त घंटी बज जाये तो, तो घबरा जाते थे। बेवक़्त अपने भी याद करते तो कोई दुख की खबर देने के लिये। मुझे कैसे पता ये सब, यही सोच रहे है न आप? अरे मेरे दादा दादी ने मुझे बताया। मेरे दादा तो बताते थे उनके पिता के पास तो कोई नम्बर ही नही होते थे, बस फोन उठा कर बोलते मुझे इस नम्बर से बात करनी है और बात कर लेते थे। कभी कभी तो लोग उस ओपरेटर से ही बात करने के लिये फोन उठा लेते थे। बड़े प्यार से बात करती थी वो सबसे कि हमारे परदादा भी उसकी आवाज सुन खुश होते थे। पर दादा के पास नम्बर थे तो लोग खुद ही नम्बर लगाते और बात करते। मेरे दादा को लोग बहुत मानते थे क्युकी उन्हे पाने के लिये कई महिने इन्तज़ार करना पडता था। फिर धीरे धीरे वो इन्तज़ार कम होने लगा घर घर मे दादा और उनके साथियों की आवाज गूँजने लगी।
अब जानिए, मेरे माता पिता के बारे मे। जब वो आये तो लोग उनके साथ खुश थे। उनका ज्यादा इस्तमाल होता था अपनो को अपने ठिक होने की खबर देते रहने के लिये। पर अब लोग परायो के तो छोड अपनो के नम्बर भुलने लगे, क्युकि सब नम्बर उस छोटे से सेल फोन मे रहते थे। वो छोटी सी डायरियां मेरे माता पिता को कोसने लगी कि तुम्हारी वजह से अब इन्सान हमे कम इस्तमाल करते है।
फिर जब मेरे बड़े भाई बहन आये तो लोग उन्हे पा कर खुश थे अब फोन करने के अलावा वो अपने मनपसंद गाने भी सुन सकते थे सेल फोन पर, रेडिओ जो साथ था। लोग अब जब चाहे संगीत सुनते तो मन भी शांत रहने लगा। धीरे धीरे उस बड़े से रेडिओ को और टेपरिकॉर्डर को छूटी मिलने लगी। फिर साथ आये जो फोटो भी खीचने लगे तो फिर क्या था, जहां जाते ढेर सारी फोटो लेते सब। फिर होने लगी कैमरो की छूटी। मेरे बड़ो को बहुत सुननी पड़ी सबकी रेडिओ, टेप रिकॉर्डर कैमरों और तो और वो गोल मटोल घड़ी भी नाराज थी उनसे। सुबह सुबह उसी के सहारे तो उठते थे लोग। अब उसे भी भुलने लगे थे सब।
अब आती है मेरी बारी। मुझे लगता था सब तो पहले ही नाराज है मेरे बड़ो से अब मुझसे कोई और नया तो नही होगा नाराज इन सबका तो मुझे पता था। पर ये क्या इन्सान खुद की मानसिक तरक्की करे ना करे मेरी इतनी तरक्की कर दी कि मुझे तो सुननी पड़ी कंप्यूटर की, लैपटॉप की, टेलीविजन की। इन सबकी क्षमताएं मुझ मे डाल इन्सान ने मुझ पर कितना बोझ डाल दिया है। मुझे किसी पल आराम नही करने देते। दिन मे तो दिन मे मुझसे काम लेते रहते है, रात को भी खुद सो जायेंगे पर मुझे लगाते है काम पर, रात भर डाउनलोड करने के लिये, बैकअप, अपडेट करने के लिये। मैं इतना थक जाने का, पर फिर भी लगे रहो काम पर। मेरी शक्ती जैसे ही खत्म होने वाली होती है मुझे लगता है चलो अब तो मुझे आराम मिलेगा पर ऐसा कभी नही होता, ये इन्सान खुद खाना खाना भुल जायेंगे पर मुझे खिला पिला कर इतना चार्ज कर देते है कि मैं भी तैयार उनके सारे काम करने के लिये फिर।
मेरे बड़े भी खुश थे मेरी तरक्की देख कर, अब भला कौन माता पिता अपने बच्चो को आगे बढ़ता नही देखना चाहते! वो हमेशा चाहते है हमसे ज्यादा ईज्जत हमारे बच्चो की हो, वही हो रहा था।
मुझे खुशी भी होती है जब वो मुझे बड़े प्यार से सजाते है जैसे मुझे किसी से मिलाने के लिये ले जाने वाले हो। हर वक़्त मैं तो चाहिये ही। मेरे बिना कही नही जाते आज कल। यहां तक कि अपनी दिनचर्या के वो काम करते हुए भी मुझे साथ ले जाते है!! कभी तो मुझे छोड दिया करो।
मुझे कभी कोई ओर हाथ जो लगाये उनकी हालत देखने जैसी होती है। मुझमे सबकी जान बसी है। बच्चो से लेकर बूढ़ों तक, अमीर हो या गरिब सब मेरे दिवाने। लोग अपना ज्यादा से ज्यादा वक़्त मेरे साथ बिताने लगे। मैं बहुत खुश हू। पर ये क्या कभी कभी ये लोग मेरा इस्तेमाल करते है इतने गंदे वीडियो देखने के लिये, किसी को धमकाने के लिये। कुछ लोग तो गंदे वीडियो बनाने के लिये, तो कुछ मैसेज भेज दूसरो को परेशान करने के लिये। जब कोई ऐसा करता है मुझे बहुत तकलिफ होती है। मुझे लगता है मैं चुल्लू भर पानी मे ठुब मरू। टेबल से गिर कर खुद हो चोट पहुचाऊ शायद तब इन्हे कुछ समझ आये। पर ऐसा कुछ नही होता ये मुझे बदल देते है पर खुद को नही बदलते।
इसका मतलब ये नही कि अच्छे लोग नही है। बहोत लोग अच्छे भी है। वो मेरे साथ अपने परिवार की कुछ यादे जोड़ देते है। अपने बच्चो के मस्त वीडियो बनाते है। प्यारे प्यारे गाने सुनते है। जब इनकी पार्टी होती है तो हम भी खुश होते है ये सब हमे एक जगह रख डांस करते है गप्पे मारते है। हमे थोडा आराम तो देते है और तो और हमे हमारी बिरादरी वालो से बाकी खबरे भी मिलती है। बाकियों का क्या हाल है पता चलता है। कौन उन्हे कैसे इस्तमाल करता है, कौन कितना ध्यान रखता है। कोई तो इतना प्यार करते है दो तीन साल तक छोड़ते ही नही और कुछ छह महिने भी मानो मुश्किल से, फिर बदल देते है।
एक बार मन्दिर गये थे, तो मुझे रख दिया मन्दिर के लॉकर मे और मुझे बन्द करने की बजाय मेरी आवाज बन्द कर दी। अब इन्हे क्या पता हमे अपने साथियों से बात करने के लिये बस चालू रहना जरुरी है। हम सब जो भी उस लॉकर मे थे शुरु हो गये। हम जब साथ होते है तो खुब बाते भी होती है। हमारी ही बिरादरी के कुछ बड़े बुजुर्ग भी मिले हमे। पहले तो हमारी तारिफ करने लगे, हम खुश पर उसके बाद जो उन्होने हमे बताया , हम भी परेशान ••••
उन्होने हमे बताया, या फिर ये कहो हमे समझाने की कोशिश की। पर हमे समझाने से क्या होगा हम तो अपने आपको बन्द तक नही कर पाते। थोड़ी जो खराबी आयी हममे, बदल दिये जाते है। तो वो बता रहे थे कि अब जब हम हर सुविधा दे रहे है इस इन्सान को, वो आलसी होता जा रहा है। पहले सिर्फ नम्बर भुलता था, अब तो इनके सारे काम हमे याद रखने पडते है। किसी को फोन करना है, किसका जन्मदिन आने वाला है, कब मीटिंग है, कब उठना है सब कुछ हमे ही बताना पडता है। बच्चे थोडा रोने लगे तो दे देते है उनके हाथ मे! अब तो छोटे बच्चे खाना ना खाए तो भी बस हमे पेश कर देते है बच्चो के आगे। बच्चे खेलना भुल गये है। पढाई के बाद थोडा सा समय मिलता है इन्हे पर वो भी हमारे साथ बिताते है खेलने नही जाते। घर से निकलते ही नही। अब इन्हे कौन समझायें पूरी उम्र पड़ी है हमारे साथ बिताने के लिये अभी तो अपना बचपना जियो।
ये सब क्या अच्छा हो रहा है। तो हमे ये बताया जा रहा था कि खुद की तरक्की करना अच्छा है पर अगर हमारी तरक्की से किसी और का नुक्सान होता है तो क्या ये वाकई मे तरक्की है हमारी?
तो अब तक हमारे बड़े जो खुश थे तरक्की से, अब उन्हे अच्छा नही लग रहा था। उन्हे हमसे शिकायत नही थी पर ये जो इन्सान हमारा उपयोग करते वक़्त सोचते ही नही कि कितनी, कहाँ, कैसे और क्यूँ हमारी इतनी लत लगा रखी है? उन्हे लगता है मानो हमारे बिना जीना कितना मुश्किल है। कभी अगर हमे कहीं भुल जायें ये, सब काम छोड पहले हमे ढूँढने लगते है। और आजकल के बच्चे मानो उन्हे तो पता ही नही कि मोबाईल के बिना भी इन्सान मजे से जी सकते है। ये तो पैदा ही हाथ मे मोबाइल लेकर हुए है। काश हम सब एकसाथ कुछ दिन छुट्टी पर चले जाये, तो इस इन्सान और छोटे बच्चो को पता चलेगा की हमारे बिना भी ये दुनिया बहुत सुंदर है और मजे से जिया जा सकता है।
इन्सान इन्सानो की ना सुने शायद इस मोबाइल की ही सुन ले।