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Rupa Bhattacharya

Children Stories Inspirational

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Rupa Bhattacharya

Children Stories Inspirational

मंगरी

मंगरी

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आज फिर से मेरे पर्स से छूट्टे गायब थे।

"मंगरी ! कल से काम पर मत आना, तुने फिर मेरे पर्स से छूट्टे चुराये हैं।"

मंगरी सर झुकाये खड़ी रही।

"मंगरी तुम पैसे क्यों लेती हो ? मैंने तो तुम्हें खाना, कपड़ा किसी चीज का अभाव नहीं होने दिया है !" मंगरी चुप।

"मंगरी, जवाब दो।"

"मेम साहब हाकी स्टिक खरीदनी है।"

"तो तुमने मुझे क्यों न बोला ? ठीक है ,मैं तुम्हें हाकी सिट्क खरीद दूँगी पर मन लगा कर काम करना।"

मगर मंगरी गायब हो गई। उसकी माँ का फोन आया था, कहा, उसे काम में मन नहीं है। मैं गुस्से से आग बबुला हो गई। उसकी माँ को खरी-खोटी सुनाई। एक साल बीत गया। एक सुबह अखबार में हॉकी खेलते हुए मंगरी का फोटो देखकर मैं हैरान रह गई। स्टेट लेवेल में खेलते हुए उसने कप जीत लिया था। उसके दो दिनों के बाद वह अपनी माँ के साथ मुझसे मिलने आई थी।

मैंने उसे गले से लगाते हुए कहा- "मुझे क्षमा करना, मैं तुम्हारा जुनून उस समय समझ नहीं पायी थी।"

उसकी माँ ने बताया कि मेरे द्वारा दिये गये हॉकी स्टिक से ही वह पहला मैच जीती थी इसलिए उस स्टिक को पूजा घर में रख दिया है।

एक साल और बीत गया, इस बार मंगरी नेशनल लेवल पर खेलेगी।

मैं उसे टीवी पर विशाल स्टेडियम में खेलते हुए देखूंगी। मेरे साथ आप भी दुआ करे की "मंगरी" मैच जीत जाए।


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