Aaradhya Ark

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4.5  

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मेरी सौतन

मेरी सौतन

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रक्षित आज पूरे पंद्रह दिनों बाद ऑफिशियल टूर से वापस लौटा था। आते ही सबसे पहले माँ क़े कमरे में गया उनके पैर छुए और देर तक उनका हालचाल पूछता रहा। इधर उसकी पत्नी तब तक चिढ़ रही थी।


ज़ब बाद में वह अपनी पत्नी आरती क़े पास आया तब उसने थोड़े गुस्से और थोड़ी नाराज़गी से उसे उलाहना देते हुए कहा,...


"जाओ ना अपनी पूज्य माताश्री क़े पास। रात दिन उनके कदमों में ही बैठे रहो। अब मेरे पास क्यों आए हो। जाओ मैं तुमसे बात ही नहीं करुँगी!"


अपनी नई नवली पत्नी की नाराज़गी वाली बात सुनकर

रक्षित थोड़ा मुस्कुराया फिर उसे आरती की ऐसी नादानी

और मासूमियत पर बहुत प्यार आया।


उसने आरती को प्यार से अपने पास बैठाते हुए कहा,


"आ तो गया हूँ अब अपनी पत्नी क़े पास। अब अपने पति को थोड़ा प्यार करो ना। थोड़ो बोलो बतियाओ ना। ऐसे रूठी रूठी रहोगी तो कहे देता हूँ फिर से टूर पर चला जाऊँगा और बहुत दिनों बाद आऊँगा!"


"ना... ना... ना ऐसा मत कीजिए, मैं तो आपके बिना मर ही जाऊँगी!"


कहकर आरती जिस मासूमियत से अपने पति क़े गले लगी वह देखकर रक्षित को अपनी प्यारी सी बीवी पर बहुत सारा प्यार आया।


कुछ देर बाद रक्षित ने आरती से चाय बनाने कहा और माँ क़े पास जाकर बैठ गया।

आरती माँ बेटे को फिर से एक साथ बैठे हुए देखकर चिढ़ने लगी और रसोई में चाय में डालने क़े लिए इतनी ज़ोर ज़ोर से अदरख कूटने लगी कि लग रहा था कि किचन का स्लैब ही टूट जायेगा।


तभी अचानक उसका गुस्सा शांत हो गया ज़ब उसने अपनी सास को रक्षित को समझाकर कहते हुए सुना,


"बेटा! तुम्हाऊ अभईं नयो नयो ब्याह हुओ है। तुमदोनो को एक दूसरे क़े लाने ज़्यादा पियार दुलार होवे क़े चाही। जाओ, हमारी बहुरिया क़े तनिक बाहिर घुमाए फिराए लावो "


सुनकर आरती का मन ख़ुश हो गया। फिर उसने बड़े मन से चाय बनाया और साथ में अम्मा जी क़े लिए दो पापड़ भी सेंक दिए। उसे इतने दिनों में इतना तो पता चल ही गया था कि अम्मा जी को चाय क़े साथ पापड़ बहुत पसंद हैं। अम्मा ने भी आरती से खूब लाड़ जताया और उसे तैयार होकर अपने पति क़े साथ घूम आने को कहा।


आरती रक्षित क़े साथ बाहर कुछ रोमंटिक पल बिताने क़े नाम से बहुत खुश हो गई और सास के गले लगकर उन्हें बच्चों की तरह चूमते हुए बोली,


"अम्मा जी! आप बहुत अच्छी हो। आप तो सास नहीं, माँ की तरह लगती हो!"


अम्मा जी यह सुनकर गदगद हो गई और रक्षित क़े चेहरे पर सास बहू का ऐसा प्यार देखकर एक सुकून सा आ गया।


इधर बेटा बहू दोनों घूमने गए उधर अम्मा जी अपनी सफलता पर खुश हो रही थीं कि अच्छा हुआ जो उन्होंने बहू की नाराज़गी वाली बात सुन ली थी और जान गई थी कि अभी बहू में बचपना है इसलिए उसे माँ बेटे का आपस का प्यार भी खटक रहा है। पर वह कोई बुरी सास नहीं बनेगी और ना ही बेटे बहू में झगड़ा होता देख खुश होगी। वह तो एक अच्छी माँ बनेगी।

अपने बेटे की माँ तो वह पहले से ही हैं अब अपनी बहू की भी माँ बनेंगी और अपने परिवार को परस्पर प्रेम और सौहार्द से जोड़े रखेंगी।


यह सोचकर अम्मा जी रसोई में रात क़े खाने की तैयारी करने चली गईं। अखिर बहू घूमफिर कर ज़ब वापस आएगी तब उसे खाना बनाना थोड़े ना अच्छा लगेगा। अम्मा जी भी तो कभी नई नौतर बहुरिया थी सो वह अपने बहू क़े मन की बात अच्छी तरह समझती थी।


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