मेरी माँ बूढ़ी हैं, लेकिन...
मेरी माँ बूढ़ी हैं, लेकिन...
मीता गौरव के लिए चाय बनाने जा रही थी कि उसकी सास ने उसे यह कहकर रोक दिया कि...
" रुक जाओ बहू! मैं तुम्हें बताती हूं कि... राघव को चाय में और क्या-क्या अच्छा लगता है। उसकी चाय में थोड़ा सा अदरक कुटकर डालना पड़ता है और इलायची जरूर डालना नहीं तो वह चाय पसंद नहीं करेगा!
सुनकर एकबारगी मीता को बुरा तो लगा।
फिर उसने सोचा कि अभी सुबह-सुबह बात को क्या ही बढ़ाना। इसलिए चुपचाप सास को कहा कि,
"मां जी! जरा आप ही चाय बना दीजिएगा तब! तक मैं थोड़ा सा अलग से दूध उबाल देती हूं!"
"यह देखो तो बहू मुझे कैसे आर्डर दे रही हो? मैंने तुम्हें यह बोला था कि मैं तुमको बताऊंगी कि राघव के लिए कैसी चाय बनानी है। मैंने यह नहीं बोला था कि तुम मुझे आदेश दो कि मैं चाय बनाऊं। पूरी जिंदगी तो मैं ही खटती रही हूं। आगे भी मैं ही करूंगी तो तुम्हें घर में ब्याह कर के लाने का फायदा ही क्या है!
कहते-कहते कौशल्या जी नाराज होकर सामने में रखी तिपाई पर बैठ गई।
मीता थोड़ी देर के लिए बिल्कुल असमंजस में पड़ गई। अब वह क्या वह क्या करे? ऐसे नाटकों की वह आदी नहीं थी। उसके घर में मम्मी पापा और उसकी छोटी बहन पुनीता ही थे। और उनकी सीधी साधी माँ ना तो ऐसे नाटक करती थी और ना ही ऐसे व्यंग बाण छोड़ती थी
पर...यहाँ सास तो सुबह से व्यंग्य वाण ही छोड़े जा रही है। वैसे भी कल का तमाशा भी कुछ कम नहीं था। कल शाम भी मुंह दिखाई के समय में बहुत तमाशे हुए थे। और सास के कई सारे ताने मीता के कान में सुनाई दिए थे।
और अब यह सुबह-सुबह फिर से चालू हो गई। पिता को समझ में नहीं आया कि इनके साथ कैसा बर्ताव करे
मीता उलझन में थी कि तभी आकर राघव ने चाय मांगी तो फटाफट साथ नहीं आगे बढ़ कर चाय बनाकर उसे दे दी।
अब तो यह रोज का क्रम हो गया कि... जब भी वह कुछ बनाती तो सास आकर कहत
" तुम रहने दो बहू! मैं बना देती हूं मुझे पता है कि... मेरे बेटे को क्या पसंद है!"
इससे वह क्षुब्ध हो जाती थी।
हर नवविवाहिता की तरह मीता का भी मन करता था कि..
वह अपने पति के लिए कुछ बनाए। तारीफ पाए।
मीता अपने मायके से सुनकर भी आई थी कि...
पति के दिल का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है। और यहां तो उसकी सास उसे उसके पति के लिए उसे कुछ बनाने ही नहीं देती थी।
ऐसे में मीता बहुत उलझन में थी कि.... वह ऐसा क्या करे कि उसकी सास यह समझ जाए कि...
उसका भी अपने पति पर अधिकार है और वह भी अपने हाथों से अपने पति के लिए कुछ बनाना चाहती है।
सिर्फ खाने की बात होती तो भी... एक बात थी।
यहां तक कि...उसकी सास, उसके पति गौरव के कपड़े से लेकर उसकी पसंद की हर चीज के बारे में अपना ज्ञान बघारती रहती थी। और मीता को यह एहसास कराती रहती थी कि...
वह तो अपने पति के बारे में कुछ नहीं जानती। और वह मां है, इसलिए उन्हें अपने बेटे के बारे में सब कुछ पता है
और कई बार तो मीता को लगता था कि..
उसकी सास साथ जबरदस्ती उसकी जिंदगी में दखलअंदाजी कर रही है और उसे अपने पति के करीब नहीं आने दे रही है।
एक दिन गलती से मीता ने गौरव से कह दिया कि,
" मैं आपको इतना प्यार करती हूं और मैं चाहती हूं कभी-कभी मैं भी आपके लिए कुछ खाना बबनाऊं और आप उसकी तारीफ करें। लेकिन आप तो सिर्फ माँ जी के हाथ का खाना ही खाना पसंद करते हैं। माँ जी तो मुझे आपकी पसंद का कुछ बनाने ही नहीं देती है। मुझे लगता है कि वह मुझे आपके करीब नहीं आने देना चाहती। वैसे भी अब मां की उम्र हो गई है… वह पुराने तरीके से ही खाना बनाती हैं।मैं आपके लिए कुछ नई नई रेसिपी ट्राई करना चाहती हूं!"
मीता के मुंह से यह बात सुनकर गौरव एकदम छिटक कर अलग हो गया...और थोड़ा नाराज होकर बोला,
" यह तुम क्या कह रही हो...? मेरी मां ऐसा क्यों चाहेगी कि तुम मेरे करीब ना आओ। दरअसल वह मेरी पसंद अच्छी तरह जानती हैं। इसीलिए वह मेरे लिए खाना बनाती हैं और मेरी बाकी जरूरत का ध्यान रखती हैं!"
"ओह...आप तो नाराज हो गए गौरव!मेरा यह मतलब नहीं था… मैं तो यह कह रही थी कि...
अब मां की उम्र हो गई है। वह क्यों यह सब काम करें...?क्यों ना घर गिरस्ती का काम मेरे ऊपर छोड़ देती हैं...!"
अब जब गौरव मीता की बात से नाराज हो गया तो उसे लगा कि...
शायद उसने कुछ ज्यादा बोल दिया है। सो उसने अपनी गलती समझ कर गौरव को समझाने की कोशिश की तो गौरव थोड़ा और उखड़ गया और बोला....
"देखो मीता ! सुनीता तुम पता नहीं क्या कहना चाहती हो। उससे मुझे ज्यादा मतलब नहीं है। मैं सिर्फ तुम्हें यह कहना चाहता हूं कि...
" भले ही मेरी मां बूढ़ी हो गई हैं, लेकिन वह मेरी पसंद जानती हैं। इसलिए वह मेरे लिए खाना बनाती हैं। जी आज तक उनके हाथ का बना हुआ खाना खाने की ही आदत है। और यह कोई बड़ी बात नहीं है। हर बच्चे को अपनी मां के हाथ का खाना कुछ ज्यादा ही पसंद आता है। मगर घर में मेरे लिए खाना बनाती है तो अच्छा ही तो है। इससे तुम्हें घर के कामों में मदद भी तो मिल जाती है। इस पर तुम्हें इतना परेशान होने की जरूरत नहीं!"
मीता को गौरव की बात बहुत बुरी लगी। लेकिन उस वक्त वह कुछ नहीं कह पाई और उसकी आंखों में आंसू आ गए तो वह किसी बहाने से बाथरूम जाकर रोने लगी।
उसने सोचा भी नहीं था कि...
शादी के बाद उसे अपनी सास की इतनी दखलंदाजी बर्दाश्त करनी पड़ेगी। उसे तो लगा था कि...
शादी के बाद वह और गौरव आराम से रहेंगे और पति पत्नी से ज्यादा रोमांटिक कपल की तरह रहेंगे।
लेकिन यहां सुबह से शाम तक सास उससे काम तो खूब लेती थी। जैसे कि सब्जी कटवाना, आटा गुंथवाना और बाहर के ऊपर के सारे काम मीता ही तो करती थी। लेकिन खाना उसकी सास खुद बनाती और सारा क्रेडिट ले जाती थी।
धीरे-धीरे मीता अपनी सास बहुत चालाक लगने लगी थी। और वह सिर्फ एक ही नजरिए से अपनी सास को देख रही थी कि वह चालाक है, और गौरव को से छीन रही है।
पर वह समझ नहीं पा रही थी कि...गौरव के सामने अपनी सास का पर्दाफाश कैसे करे...? और कैसे गौरव को समझाए कि..
उसकी सास अगर घर का काम अच्छे से कर सकती है, और खाना अच्छे से बना सकती है तो वह भी अच्छे से बना सकती है। लेकिन उसकी सास जानबूझकर उसे मौका नहीं देती।
एक तरह से मीता की सास मीता की उपस्थिति इस घर में गौन बनाती जा रही थी। मीता अपने ही ससुराल में अस्तित्वहीन महसूस करती थी।
हर महत्वपूर्ण निर्णय उसकी सास से पूछ कर ही लिए जाते थे।
और गौरव भी तो एकदम शादी के बाद..
एकदम ममा स बॉय निकला।
वह अपनी मां की हर बात मानता और कई बार तो मां की गलती होने के बावजूद भी वह मां का ही पक्ष लेता था। यह सब देखकर धीरे-धीरे मीता घुटती जा रही थी। और अपने आप को इस घर में पराया सा समझने लगी थी
उन्हीं दिनों मीता के मायके में छोटे भाई की सगाई निकल आई और उसे मायके वाले लेने आ गए।
एक तरह से मीता के लिए यह बहुत सुखद समय था. क्योंकि वह भी अब ससुराल में रहकर एक तरह से ऊब चुकी थी उसे भी मायके जाना बहुत अच्छा लग रहा था।
पग फेरे के बाद यह तीसरी बार मीता मायके आई थी।
इस बार मीता की मां कल्याणी जी गौर कर रही थी कि...हमेशा हंसती खिलखिलाती रहने वाली मीता थोड़ी उदास सी थी।
और मौका मिलते ही उन्होंने अपनी बिटिया से पूछ ही लिया...
" क्या बात है बेटा! जब से आई हो।उदास सी हो अपनी मां को नहीं बताओगी!"
अपनी मां की प्यार भरी बात सुनकर मीता और अपने आंसू नहीं रोक पाई और रोते रोते उसने अपने मन का दर्द बता दिया।
पूरी बात बता कर उसने एक बात और जोड़ दिया कि...
" मां मुझे लगता है कि..
मेरी सास मुझे पसंद नहीं करती। और वह बिल्कुल भी मुझे गौरव के साथ नहीं बांटना चाहती। और गौरव पर अपना एकाधिकार चाहती है!
माँ ने अपनी रानी बिटिया की बातें ध्यान से सुनी और फिर उसके सिर पर हाथ रखकर प्यार से समझाने लगी..
"देखो बेटा! तुम्हारी सास गौरव की मां है। जैसे कि मैं तुम्हारी मां हूं अगर गौरव मुझसे कहे कि.
वह तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा। तब भी मैं कुछ दिनों तक गौरव पर ध्यान रखूंगी कि वह सच में तुम्हारा ख्याल रख रहा है कि नहीं...?
इसके अलावा एक मां और बच्चा बचपन से जब साथ रहते हैं, तो मां अपने बच्चे की हर आदत से वाकिफ होती है।और उसे धीरे-धीरे ही अपने आप से अलग कर पाती है
यहां तुम्हारी सास की कोई गलती नहीं है। वह भी अपने बेटे का ध्यान रखती आई है। और एकदम से तुम्हारे हाथ में गौरव की जिम्मेदारी सौंपते हुए डरती है। जैसे जैसे उनका तुम पर विश्वास जमता जाएगा...तुम देखना उस घर में भी तुम्हारी जगह मजबूत होती जाएगी
और कल को यही सास तुम पर पूरी तरह से विश्वास करके घर गिरस्ती की पूरी बागडोर तुम्हारे हाथ में दे देगी !
"पर यह सब क्या इतना आसान है माँ...?
मीता ने थोड़ा अविश्वास जताते हुए अपनी मां से पूछा तो...कल्याणी जी ने उसे आगे समझाया..
" हाँ मीतू! बस उन्हें तुम्हें समझने में और तुम पर पूरी तरह भरोसा करने में थोड़ा समय लग रहा है। यह समय बहुत धैर्य का होता है बेटा!
किसी भी सास और बहू में अच्छा रिश्ता ऐसे ही नहीं बन जाता।सास को अगर बहू को प्यार देना होता है तो बहू को भी अपने सास को सम्मान देना होता है। और जैसे एक बेटी अपनी मां की बात मानती है, वैसे ही एक बहू को भी अगर अपनी सास की बात मानने की आदत पड़ जाए तो किसी भी घर में सास और बहू के रिश्ते में दरार ना पड़े !
"लेकिन मां! मैं तो अब अपनी सास थ की बातों में कोई दखलंदाजी नहीं करती।उल्टा मैंने उन्हें पूरी तरह से आप फ्री कर दिया है कि उनकी मर्जी.....!!
और गौरव का जैसा भी ध्यान रखें सो रखें।
मैंने तो अपने आप को गौरव से और उसकी मां से बिल्कुल काटकर अलग कर लिया है।जब उन्हें मैं उनकी जिंदगी में चाहिए ही नहीं तो मैं खामखा क्यों नहीं इंटरफेयर करूं?
यह सब कहते हुए...
मीता के स्वर में अभी भी नाराजगी साफ झलक रही थी। जिसे उसकी अनुभवी मां अच्छी तरह समझ गई और उन्हें लगा कि.... उन्हें मीता को यह बताना भी जरूरी है कि...
"" बेटा! यहीं पर तो तुम गलती कर रहे हो!
याद रखो जब घर में कोई नया सदस्य आता है...
तो उसे भी उस घर में एडजस्ट करने में थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है। और घर वालों को भी उसे प्यार से अपनाना पड़ता है। अगर तुम किसी के घर जाओगे और हाथ बांधकर खड़े रहोगे तो लोग तुम तक कम आएंगे। अगर हाथ फैला कर रिश्तो को आगे बढ़ कर अपनाओगे तो लोग तुम्हारे खुले हुए बाहों में आकर समा जाएंगे। और तुम्हारे पास रिश्तो का एक बड़ा आसमान होगा और तुम्हारी जिंदगी खुशियों से भरी पूरी रहेगी!"
हर बहू को अपने ससुराल में घर वालों का दिल जीतने की कोशिश करनी पड़ती है।
याद रखना....
जो इंसान अपना हाथ आगे बढ़ाता है लोग उसी का हाथ थामकर रिश्ते की डोर आगे बढ़ा कर ले जाते हैं। अगर हाथ बांधकर खड़े रहोगे तो कोई भी तुम्हारा हाथ नहीं थामेगा। घर परिवार में भी एक दूसरे का हाथ थाम कर ही गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ती है।
" तुम अपनी सास से दूर मत भागो। बल्कि धीरे-धीरे उनके साथ अपना रिश्ता आगे बढ़ाओ। उनको भरपूर सम्मान दो। और अगर वह गौरव की पसंद का खाना बनाती है तो तुम भी वह सीख लो।
अपने आप में इगो में लेकर मत रहो। बड़ों से सीखना हो तो इसमें संकोच मत करो।क्योंकि बड़ों के पास अनुभवों का ऐसा खजाना होता है, जो छोटों की जिंदगी को पहले से बहुत बेहतर बना देता है। बस जरूरत है थोड़ा सा बड़ों को सम्मान देने की और उनकी बातों को अहमियत देने
उसके बाद तो बुजुर्ग सिर्फ देना ही जानते हैं। याद रखना जिस घर में बुजुर्गों का सम्मान होता है,उस घर में लक्ष्मी और खुशियां जरूर ठहर जाती हैं!"
तुम्हारी सास गौरव की पसंद जानती है ना... अब तुम यह पता करने की कोशिश करना कि तुम्हारे तुम्हारी सास को क्या पसंद है? धीरे-धीरे तुम दोनों में एक बहुत ही अच्छा बांड बन जाएगा!
इधर मां समझाती जा रही थी और..
उधर मीता के मन में सारी बातें खुलकर सामने आती जा रही थी। वह समझ पा रही थी कि...
उसकी सास गौरव का इतना ध्यान क्यों रखती है?
और जैसे वह अपने मां से इतनी जुड़ी हुई है वैसे ही गौरव भी तो अपनी मां से जुड़ा हुआ है।
और.....
इस बार जब मीता अपने ससुराल जा रही थी तो उसके मन में गौरव से मिलने की उत्सुकता के साथ-साथ अपने साथ से मिलने की भी एक ललक थी।
उसके मन पर कोई दबाव नहीं था। उल्टा वह अपने साथ से मिलने के लिए उत्सुक थी और वह अपने मन में सोच चुकी थी कि वह अपना रिश्ता अपने पति के साथ अपने सास के साथ भी अच्छा बनाएगी।
इधर...
मीता की सास भी मीता के जाने के बाद उसकी कमी को महसूस कर रही थी। और उन्हें लग रहा था कि जैसे घर की बेटी चली गई हो।
इसलिए जब मीता आई ए तो उन्होंने उसे आगे बढ़कर गले लगाया।
और आज....मीता को अपने सास से कोई शिकायत नहीं थी।l
क्योंकि उसके सास के आंचल में से मां जैसी खुशबू जो आ रही थी।
अब तो मीता ने सोच लिया था कि वह अपनी मां की बात याद रखेगी और रिश्ते में अपने हाथ बांधकर नहीं बल्कि अपना हाथ फैला कर सामने वाले को अपनाएगी।
और जब.......मीता ने सकारात्मक सोचना शुरू कर दिया तब उसे उस सास का उसे गौरव के लिए सास की दखलअंदाजी बुरी नहीं लगती थी बल्कि उसे माँ बेटे का प्यार लगता था। एक माँ मका प्यार अपने बेटे के लिए कभी गलत नहीं हो सकता....यह बात अब मीता समझ गई थी।
और उसकी समझदारी से कुछ ही महीनों बाद उस घर की गृहस्थी का बिरवा लहलहाने लगा था।
और अब तो कई बार गौरव भी कह देता था कि...
" अरे मीता! तुम भी अब मेरी पसंद अच्छी तरह से जान गई हो।!"
कई बार तो मीता अपने सास से सीखकर इतना अच्छा खाना बनाती थी कि गौरव पकड़ ही नहीं पाता था कि...
आज मीता ने खाना बनाया है या फिर उसकी मां ने बनाया है।
यह सब इसलिए संभव हो पाया कि...मीता ने अपना ईगो साइड रख दिया था। और वह सास से सीखने लगी थी।
और....
जो इंसान सीखना चाहता है।उसके लिए सफलता का आसमान उसका इंतजार कर रहा होता है। और जो अपने आप को ही सर्वश्रेष्ठ मान कर सामने वाले को अपने से कमतर समझता है, और उसे कुछ सीखना नहीं चाहता।और सीखने में अपनी हेठी समझता है,वह अकेला पड़ जाता है और जिंदगी में आगे नहीं बढ़ पाता ।
अब मीता ने जब अपनी सास से सीखना शुरू कर दिया था तो...
उसके पास उसके सास के दिए हुए इतने अच्छे अच्छे टिप्स थे और उनके अनुभव के खजाने से मीता को इतना ज्यादा फायदा हुआ कि....
उसकी जिंदगी पहले से बहुत आसान हो गई।
सच....बुजुर्ग को सम्मान दो और उनके कहे हुए रास्ते पर चलो तो जिंदगी की मुश्किलें कम होती है और उनके अनुभवों से हमें काफी फायदा भी होता है।
सबसे बड़ी बात यह कि...
बड़ों का सम्मान किया जाए और बड़ों से सीखा जाए तो जिंदगी की कई परेशानियों का हल चुटकियों में मिल जाता है।
जो गुरुमन्त्र मीता अपनी मां से सीख कर आई थी। और अब अपनी सास से सीख रही थी।
और... आज मीता के पास अपनी सास के अनुभवों का ऐसा खज़ाना था, जिससे उसकी जिंदगी का सफर बहुत आसान हो गया था। और अब तो पति का प्यार भी उसे भरपूर मिलने लगा था।
अब... मीता को अपनी जिंदगी से और अपनी सास से शिकायतें खत्म होती जा रही थी।
मीता की शिकायतें जैसे-जैसे कम होती जा रही थी, वैसे वैसे उसकी जिंदगी में खुशियां बढ़ती जा रही थी
ऐसा ही होता है... जो हम जिंदगी में सकारात्मक रुख अख्तियार कर लेते हैं। और चीजों को बिल्कुल सकारात्मक तरीके से देखना शुरू करते हैं तो... खुशियों का दरवाजा अपने आप खुल जाता है।
