मेरा डर से सामना
मेरा डर से सामना
जज्बात एक एहसास है कभी डर कभी खुशी कभी गुस्सा कभी आनंद कभी प्यार आज मैं अपने डर के एहसास को आपके जज्बात शिक्षक के अंतर्गत लिख रही हूं यह एक सच्ची घटना है जो हमारे साथ में घटित हुई हमारी बचपन में जिसको कहानी रूप में मैं आपको बता रही हूं सन् 1965 की बात है भारत पर पाकिस्तान वार हुआ था।
तब मेरे नाना जी का जोधपुर में स्वर्गवास हो गया था। अचानक ही समाचार आए, उस समय ब्लैकआउट भी चल रहा था।मेरी मम्मी जी बाबू साहब ने सोचा अब तो जोधपुर में जाना ही पड़ेगा ,हम दोनों भाई बहन जो उस समय सातवीं में और नवमी में पढ़ रहे थे काफी छोटे थे ।
और कभी अकेले नहीं रहे थे ।हमारे पड़ोसियों के भरोसे हम लोगों को छोड़कर , और हमें बहुत सारी हिदायतें देकर हमारे माता पिता जोधपुर के लिए निकल गए।
उस समय तो हम दोनों भाई बहन बहुत ही बहादुर बन गए, हां आप जाओ चिंता मत करना हम सब संभाल लेंगे । पड़ोस वाले काका साहब के यहां से किसी को बुला लेंगे सोने को। हम तो आपके बहादुर बच्चे हैं रह लेंगे, आप हमारी बिल्कुल चिंता ना करें ।तो वह लोग भी निश्चिंत हो गए और चले गए ।
जयपुर में हमारा बहुत बड़ा घर है ।उसके चारों तरफ बहुत सारा गार्डन था, बीच में मकान था। अब दिन तो जैसे तैसे निकल गया रात को ब्लैकआउट था । तो लाइट भी नहीं चलानी थी ।पड़ोस में से हमने किसी को बुलाया ही नहीं ,उन्होंने कहा तो हमने सोचा, हमने कहा हम सो जाएंगे ,और जरूरत पड़ी तो आपको बुला लेंगे ।रात के करीब 10,:11 बजे होंगे ,पूरा तो मुझे याद नहीं है ।
घर में पूरब साइड का जो दरवाजा था छोटा सा जो हमेशा लॉक रहता था ,किसी कारणवश खुला होगा ,वापस बंद करना भूल गए। हमको तो ध्यान नहीं था ,कि वह दरवाजा भी खुला रह सकता है । जोर से हवा चलने लगी और उसके दरवाजे फटाफट होने लगे ,आवाज करने लगे ,हमको ऐसा लगा कोई आ गया।
अभी तो अंधेरा, लाइट भी नहीं जलानी थी ।इतना डर लगे कि किसी ना कह पाए ना सह पाएं उस समय तो फोन भी नहीं होते थे । डर के मारे गले में से आवाज भी नहीं निकले, पड़ोस में जाने का तो सवाल ही नहीं उठता। किसको बुलाए। दोनों जने एक दूसरे का हाथ पकड़ कर के नवकार मंत्र बोलते हुए उस दरवाजे की तरफ गए , हाथ में बेलन लिए ,लकड़ी थी भाई साहब के पास धीरे-धीरे चुपचाप वहां गए ,और भाई साहब ने मेरे को अपने पीछे छिपा लिया ।
अब खुद जैसे बहुत बड़े योद्धा हो वैसे आगे खड़े हुए है और बोले कोई माई का लाल है, मेरे सामने आ कैसा मारता हूं देख ।कोई हो तो आए ना ।
जब किसी की आवाज नहीं सुनाई दी कोई नजर नहीं आया। दीपक लेकर उसकी रोशनी में देखा कोई नहीं था ।फिर हमने वापस उस दरवाजे चेक किया वह पटपट कर रहा था। वहां पे लॉक मारा ।फिर दोनों भाई बहन वापस नवकार मंत्र बोलते हुए जब तक नींद नहीं आई तब तक बिस्तर में गठरी बनके सोए। और सुबह उठे ।और दूसरे दिन सबसे पहला काम हमने काका साहब के वहां से किसी को बुलाकर अपने पास सुलाने का किया ।
हमारी सारी है हैंकड़ी धरी की धरी रह गई। सारी हिम्मत दुम दबा दबा कर भाग गई ,इतना डर लगा जिंदगी में कभी इतना डर नहीं लगा। उसके बाद अब तो मुझे डर लगता ही नहीं है। मैं तो इस हादसे को भूल चुकी थी। मगर आपने जो जज्बात बोले उससे मुझे यह वापस याद आया ।और मुझे स्वर्गीय उत्तम भाई साहब की याद आई उन्होंने मुझे कितने प्यार से और हिम्मत से संभाला था। वोजहाँ भी होंगे मेरी श्रद्धांजलि हमेशा उनके साथ है।
