Bhagirath Parihar

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मैंने हिन्दू से शादी क्यों की?

मैंने हिन्दू से शादी क्यों की?

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हाँ, मैं मुस्लिम लड़की हूँ और मुझे बचपन से बताया गया है कि इस्लाम में गैर मुसलमान से शादी करना हराम है।

बावजूद इसके मैंने हिन्दू पुरुष से विवाह किया और स्वयं हिन्दू धर्म अपना लिया क्योंकि मैं उससे प्यार करती हूँ।

सुधारवादी मुस्लिम मौलवी कह रहे हैं कि तीन लाख मुस्लिम महिलाएं हिंदुओं से शादी करने को तैयार बैठी है, ये हमारे लिए चिंता का सबब होना चाहिए। उनका कहना है कि हमारे स्त्री विरोधी रीति-रिवाज जैसे बहुविवाह, तीन तलाक, हलाला, बुर्का आदि उन्हें अन्य समुदायों में शादी करने के लिए प्रेरित करते हैं।    लड़कियों का मोबाईल छिन लिया जाय, उन्हें स्कूटी न दी जाय यहाँ तक की टीवी के खास चैनल ही देखने दिये जाये। लड़कियों को ज्यादा न पढ़ाया जाये। शिक्षा केवल मदरसों में इस्लाम की दी जाये, जैसे फतवे जारी करने के कारण हमारी बेटियाँ दूसरे मजहब में शादी करना पसंद करती है।

मुस्लिम लड़की के गैर मुस्लिम से शादी करने का परिणाम- उसका शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न, बलात्कार और हत्या भी हो सकती है। क्योंकि यह इज्जत का प्रश्न बन जाता है। ऐसे में बहुत कम लड़कियाँ हिम्मत कर पाती है फिर हिन्दू समाज में भी मुस्लिम से विवाह अच्छा नहीं माना जाता है और उसे वो सम्मान नहीं मिलता जो हिन्दू बहू को मिलता है। 

हिन्दू पुरुषों के प्रति आकर्षण क्यों? हिन्दू पुरुष सामान्यतः कूल होते है जबकि मुस्लिम अग्रेसीव। महिलायें कूल और फ़्रेंडली पुरुषों को पसंद करती है।

नौ दस साल के लड़के से बकरे की कुर्बानी करवाना मतलब उसे आक्रमक बनाना, खून देखकर विचलित न होना, निरीह जानवर को मारना कट्टरपन अतिवाद उग्रवाद की ओर बढ़ना है। 

मोहरर्म में जंजीरों से अपने आप को मारना काटना जैसे दृश्य मुझ में वितृष्णा पैदा करते है।

मुस्लिम महिलाओं को बुर्का पसंद नहीं उसमें उनका दम घुटता है । हिंदुओं के त्यौहार रंग बिरगे और मौज मस्ती वाले होते हैं जैसे होली, दीवाली, दुर्गा पूजा, गणपती। हिन्दू त्यौहार स्त्री पुरुष मिलकर मनाते हैं। जबकि मुस्लिम त्यौहार में ऐसा नहीं होता।    

हिंदुओं के हवन-पूजन में पति पत्नी दोनों बैठते है जबकि नमाज के लिए उन्हें मस्जिद तक में नहीं आने दिया जाता है। 

इसलिए भी मैंने हिन्दू धर्म को अपना लिया। 

 

[इसे सांप्रदायिक (हिन्दू अच्छा और मुस्लिम बुरा) के नजरिए से न देखें केवल समय के साथ देशकाल के अनुसार हर धर्म में सुधार आवश्यक है और ऐसे सुधार करने चाहिए। धर्म को इबादत तक सीमित रखना चाहिए।]

 


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