मैं अब कठपुतली ना बनूगी
मैं अब कठपुतली ना बनूगी
तुमने सोचा मुझे कठपुतली,
नचाया मुझे अपनी अंगुलियों पर,
डोरियों से बांध कर रखा,
कभी संस्कार के नाम पर,
तो कभी रिवाज़ो के नाम पर।
मेरा अस्तित्व भी न समझा,
मेरा वजूद भी न माना।
मैँने तुन्हें बनाया,
मैंने तुन्हें सवांरा,
लेकिन हे, मानव,
तुम हो अभिमानी,
तुम हो महा ज्ञानी।
अपनी महिमा गाते हो,
मुझे न पहचानते हो।
मैं हूँ वो औरत,
जो बेटी है,
जो माँ है,
जो पत्नी है,
जिसके हर रूप से,
तेरा वजूद है फिर भी।
मुझे कठपुतली बना कर नचाता रहा,
ज़माने को दिखाया तूने अपना असली रूप।
मैं अब कठपुतली नहीं बनूंगी,
तेरी डोर अब न पकड़ूंगी।
मुझे चलना आता है,
गिरकर संभालना भी आता है,
तेरा साथ मुझे मंजूर नहीं,
अब तेरा मेरा रिश्ता नहीं।
अब देख तू मेरा रंग,
तू बनेगा अब मेरे हाथों
कठपुतली।
तमाशा भी तेरा होगा,
तमाशबीन भी तू होगा,
मैं अब कठपुतली ना बनूंगी।