माँ कसम: बाल मनोविज्ञान
माँ कसम: बाल मनोविज्ञान
"अरे पिंकू! अभी यहाँ मेरा पेन रखा था, तूने देखा क्या!" बालू ने गुस्से से साथ बैठे पिंकू से पूछा ।
"नहीं तो!"
सपाट स्वर में पिंकू ने टका सा जवाब दिया ।
"कल ही मेरे मामा ने शहर से भेज था ! ज़रुर तूने ही लिया होगा! तू ही टुकुर टुकुर देखे जा रहा था तब से !" कहते हुए बालू रुआंसा हो आया ।
"माँ कसम! मैंने नहीं लिया!"
बालू को रुआंसा होते देख पिंकू ने कसम खाते हुए कहा।
"हे राम! माँ की कसम खा ली!"
बालू ने दांये हाथ से कानों को हाथ लगाते हुए कहा तो इतनी देर से चुप बैठा राजू पिंकू को डपट कर बोला-
"तुझे पता है किसी की झूठी कसम खाओ तो वो मर जाता है!"
"इसे माँ की कदर जो नहीं! मुझसे पूछ.... बिन माँ के रहना क्या होता है!" बालू के चेहरे पर दो बूँद आँसू ढुलक आये ।
पिंकू ने बालू की ओर देखा और सिर झुका लिया। इतने में छुट्टी की घंटी बजी और सब अपना अपना बैग उठा भाग लिये ।
पिंकू घर पहुंचा तो घर में कोहराम मचा था। पिताजी बदहवास से फोन पर बात कर रहे थे। पिंकू घबराकर दादी से लिपट गया।
"दादी, क्या हुआ!" "अरे ! चिंता न कर, बस भगवान से दुआ कर!"
सुबकते हुए दादी ने झट उसे सीने से लगा लिया ।
"दुआ !"
"तेरी माँ छत पर कपड़े सूखने डालने गई थी। अचानक सीढ़ियों से उतरते हुए लड़खड़ा कर गिर गई, तब से बेहोश है!"
बताते हुए दादी की हिचकियाँ बंध गई ।
"माँ.... बेहोश.... है!"
बोलते-बोलते जुबान लड़खड़ा गई पिंकू की ।
दादी भगवान का जाप करने लगी । पिंकू तेजी से उठा और बैग से पेन निकाल रोते रोते बालू के घर की ओर दौड़ पड़ा!