लॉकडॉउन और गोलू
लॉकडॉउन और गोलू


लॉकडॉउन का समय था लोग सब घर के अंदर थे लेकिन कुछ मजबुर लोग घर की ओर पहुंचने की चाहत में थे उसी दौरान गोलू को अपने मांँ - बाप के पास बिहार जाना था न कोई बस,
न कोई रेल बस पैदल ही रास्ता पार करके जाना था रास्ते में बहुत सी कठिनाई भी थी गोलू जिसके पास जेब में कुल ३०-40 रूपए ही थे वह चल दिया अपने बिहार दिल्ली से बिहार पहुंचने में तकरीबन सात दिन लगते है वह चलता गया बस पांच रुपए के बिस्कुट के पैकेट खरीद कर अपने बैग में रख दिए।
और सात दिन बिस्कुट को चलाया और उसकी मेहनत रंग लाई वह अपने घर पहुंच गया लेकिन गोलू की मुसीबत यहां खत्म नहीं हुई घर वालो के अंदर डर का भाव उमड़ने लगा।
क्योंकि वह दिल्ली में फंसे covid-19 की जगह से आया है सब गावँ वालों ने मिलकर उसको भगा दिया और गोलू का दूसरा सफर भी भारी पड़ गया गोलू की चुटकी बहन चाव से खाना रही थी माँ का लला अपने घर की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए दिल्ली के सफर के लिए रवाना हुआ लेकिन इस महामारी ने उसका सब कुछ बदल दिया ऐसे ही गोलू की तरह कितने लोग बेघरों की तरह घूम रहे है न छत है न कोई सहारा हम लॉकडॉउन का पालन भी करेगे और किसी को कोई परेशानी न हो आदर भी करेंगे।