Babita Kushwaha

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4.3  

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लॉकडाउन का पहला दिन

लॉकडाउन का पहला दिन

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डियर डायरी,

आज पूरी दुनिया में बस एक ही चर्चा है कोरोना कोरोना। इस वायरस की गंभीरता को देखते हुए हमारी सरकार ने भी देश मे 21 दिन का लॉकडाउन कर दिया है। मतलब सभी को घर मे लॉक रहना है। वैसे तो परिवार के साथ हर कोई रहना चाहता है पर ये किसी ने नहीं सोचा होगा कि परिवार का साथ देश में विषम परिस्थिति के बदले में मिलेगा। खैर अब घर पर रहना मजबूरी कह लो या कोरोना से बचने के लिए जरूरत। 


पहला दिन

लॉकडाउन का पहला दिन हर महिला के लिए चिंता और आशंका के साथ ही शुरू हुआ होगा। प्रधानमंत्री जी ने पूरी तरह लॉकडाउन बोला है तो काम वाली बाई भी शायद न आये। अरे! शायद पतिदेव का अखबार भी नहीं आया। अब जिसका दिन बिना अखबार के शुरू ही न होता हो वो क्या करे अखबार के इंतजार में अंदर बाहर करते हुए जाने कितने चक्कर लगा डाले चलो कोई बात नहीं इसी बहाने घर में ही वॉक हो गई। चलो काम वाली और अखबार के बिना तो जैसे तैसे काम चल भी जाएगा मगर घर में राशन....? 


पता नहीं कुछ अब मिलेगा भी या नही अब इंसान खाना पीना तो बंद कर नहीं सकता इस चिंता में मैं घर का सामान टटोलने लगी। कहीं कोई जरुरत का सामना न हो तो पतिदेव से जाकर मंगवा लेती हूं। किचन में शोर सुनकर स्वामी जी भी आ गए। उनको देखते ही मैंने सामान की लिस्ट थमा दी और हर सामान एक्स्ट्रा में लाने को कहा।


"अरे! इतना सारा सामान एक्स्ट्रा में लाने ली क्या जरूरत है" पतिदेव ने झुंझलाते हुए कहा।

"क्यों जरूरत नहीं 21 दिन के पहले कुछ खत्म हो गया तो?"

"मगर इतना सब जो तुमने एक्स्ट्रा में लिखा है ये पूरा 2-3 महीने का राशन है" इस बार उनकी आवाज़ में गुस्सा था।


इतने में बेटे की रोने की आवाज़ आई। शायद हम दोनों का शोर सुनकर जाग गया। उसके रोने से याद आया ओह! अब दूध वाला आएगा कि नहीं ? बाकी सब तो ठीक लेकिन दो साल के बेटे के लिए दूध तो जरूरी है दूध बिना तो उसका पेट भरता ही नहीं। तभी दूध वाला..आवाज़ कानों में पड़ी। उसकी आवाज़ सुन राहत की सांस ली मन से उसके लिए दुआ भी निकली की इस दशा में भी वो दूध देने आया है। दूधवाले को देखकर मैंने सोचा दो-तीन दिन का दूध एक साथ आज ही ले लेती हूं कहीं कल न आया तो.??? 


फिर दूधवाले ने कहा "दीदी जरूरी सामान की सप्लाई बंद नहीं होगी आपको एक्स्ट्रा में कुछ भी ज्यादा स्टोर करने की जरूरत नहीं। सिर्फ 21 दिन की ही तो बात है और सरकार ने जरूरी सामान के लिए घर से निकलने की ढील भी तो दी है तभी तो मैं भी आ पाया दूध देने"


दूध वाले कि बात तो सही थी बेवजह सामान को स्टोर करके रखना भी तो गलत है। मुझसे ज्यादा समझदार तो ये दूध वाला है। कल ही तो समाचार में साफ साफ कहा था कि खानपान की जरूरी चीजें कोई एक व्यक्ति जा कर ला सकता है जरूरत का सामान बंद नही किया जाएगा। इस बंद बंद की टेंशन में मैंने तो ये ध्यान ही नही दिया। 


उस दूधवाले ने मेरे पढ़े लिखे और समझदार होने के अभिमान को आज दूर कर दिया था। हमारे बेवजह स्टोर करने से शायद कोई जरूरतमंद भूखा रह जाये। इस संकट की घड़ी में देश की सहायता करनी है न कि बेवजह महीनों का सामान स्टोर करके देश के संकट को और बढ़ाना है?


ये तो था मेरे पहले दिन का अनुभव दूसरा दिन कैसा रहा मिलते है अगले अंक मे।



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