लॉक डाउन खत्म हुआ
लॉक डाउन खत्म हुआ


सौरभ बेचैन है।परेशान है।ऐसा भी कभी होता है? इक्कीस दिन तक कोई घर से नहीं निकलेगा।मम्मी पापा कहते हैं कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं देखा।यहां तक कि दादी ने भी ऐसा अपने जीवन में कभी नहीं देखा।जाने कब तक ऐसा चलेगा ! वो बाहर जाना चाहता है।पार्क में जाकर दोस्तों के साथ मस्ती करना चाहता है।ग्राउंड में क्रिकेट खेलना चाहता है।आज़ाद रहना चाहता है।भला बंधन में रहना भी कोई ज़िन्दगी हुई!
न मॉल जा सकते है, न मूवी देखने थिएटर ! सब बंद पड़े हैं।और अभी तो बारह दिन हुए हैं।कैसे रहूंगा इतने दिन चारदीवारी में ?
"मेरा दम घुट जाएगा", सौरभ चिल्लाया।कहते कहते नज़र बरामदे में पड़े पिंजरे पर अटक गई।मिट्ठू चुपचाप बैठा था। पापा से कितनी ज़िद कर कर के इसे हासिल किया था।
मिट्ठू की वेदना आज समझ आयी।सौरभ तड़प गया।चुपचाप जा कर पिंजरे का मुँह खोल दिया।मिट्ठू उड़ चला... उन्मुक्त गगन की ओर।सौरभ के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी।आसमान की तरफ हाथ हिलाता बोला" जाओ दोस्त ! तुम्हारा लॉक डाउन खत्म हुआ!"