लकीर
लकीर
उसने सुना था साथ की लकीरें भाग्य बताती हैं, जब भी वह अपने हाथ को देखती तो अकसर सोचती कि कौन सी रेखा
हैं जो भाग्य को दर्शाती है । वो भी स्कूल जाना चाहती थी
बाकि लड़कियों को विद्यालय जाते देखती तो उसका बड़ा मन करता कि बसता लेकर वोभी इस गेट को पार कर अंदर
जाए। मां होती तो शायद वो जिद कर उसे मना लेती,पर वो तो इतनी दूर जा चुकी है कि उसकी आवाज चाहकर भी वहां तक पहुंच नहीं सकती। पिता के साथ खेत पर काम में हाथ बंटाती ।
उसनेे पिता से कहा भी था कि वो पढ़ने के साथ उनके काम
में भी हाथ बंटायेगी,पर पिता ने मना कर दिया था,और कहा न बेटी तेरे हाथ में पढ़ाई की रेखा ही नहीं। यह सुनकर उसे बड़ा दुख हुआ और जब समय मिलता वो ध्यान से अपने हाथ देखती और यह ढूंढने की कोशिश करती कि आखिर वो कौन सी रेखा है।एक दिन दोपहर को पिता के पास ही बैठी थी,पिता थोड़ा आराम कर रहे थे। गर्मी भी काफी थी, पेड़ की घनी छांव बड़ी सुकून दे रही थी । जाने उसे एकाएक क्या सूझा थोड़ी दूरी पर इक पत्थर पड़ा था उसनेे
झट से उसे उठाया और हाथ पर रेखा खींचने लगी दर्द हुआ,पर वो बार बार खींचती गई। पत्थर से उसके कोमल
हाथों में से खून निकलने लगा, तब पिता को जगाया, पिता उसका खून से भरा हाथ देखकर घबरा गये और तुरंत गमछा ले उसका हाथ पोंछने लगे,तभी प्यारी से आवाज में
उसने पिता से कहा कि अब तो उसनेे अपने हाथ में पढ़ाई की रेखा खींच ली है , क्या अब उसे स्कूल जाने दिया जायेगा। पिता ने उसे गले से लगा लिया और उनकी आंखों से आंसू बह निकले और ढेरों आशीष उनके मुख से बरसते रहे। मेरी लाडो के हाथ में खूब लंबी लकीरें हैं पढ़ने की।
