कयूंकि लडकें रोते नही

कयूंकि लडकें रोते नही

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लोग कहते हैं मर्दों को दर्द नहीं होता ,मर्दों को, लड़कों को रोना नहीं आता ,ईश्वर की कलाकृति है नर और नारी । नारी सुकोमल दिखती है और अंदर से कठोर बनी है ,एक बालक बालिका को जन्म देती है । पुरुष को ईश्वर ने कृषक, कठोर ,और एक बीज सम बनाया है नवसृजन और भार उठाने को गृहस्थ का पालनहार बनाया ।

नवल एक नवयुवक था । पडो़स की नीलम को चाहता था और नीलम भी। हमेशा छत पर इशारे ईशारों मे प्यार का इजहार हुआ।कभी मिले भी नहीं बस एक झलक और दीवानगी ।खत भी नहीं दिये एक दूसरे को आवाज भी नहीं सुनी बस प्यार एक झलक ।आखिरी बार नीलम छत पर आई उस दिन एक उड़ता हुआ चुम्बन हथेलियों को उठाकर नीलम का नवल की ओर एक आखिरी बाय बाय ।नवल उस छत पर निहारता देखता रोज कि नीलम आऐगी, नीलम विदा हो गई एक नये जीवनसाथी के साथ!

और नवल पागलख़ाने में रोया नहीं बस एक टकटकी नजर कि नीलम आयेगी।कुछ तो था ,एक चुप्पी भरा प्यार ।इस दर्द की कोई दवा नहीं। रोते हैं लड़के दिल में ,और मंजनू बन जाते हैं ।आज बस खेल है प्यार नहीं ।

"गुजर गये वो जमाने ,वो लैला मजनू ,शीरीं फरहाद के जमाने ,खेल है बस तन का ,इश्क़ की इबादत अब कोई न जाने।"


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