खुशी का अंत
खुशी का अंत
एक दोस्तों का दल जिसमें चार दोस्त शामिल थे उनका नाम क्रमश : - नरेश , जीतेन्द्र , विजय और कैलाश था पिकनिक मनाने गाँव के पास के वाटरफॉल
( जलप्रपात ) गये हुए थे सब अपने - अपने घरों से टिफिन पैक करवा कर ले गये थे उन्होंने जंगल जाकर अनेक मनोरम दृश्यों का आनन्द लिया व जलप्रपात को देखकर चारों का खुशी का ठिकाना न रहा मोर , बन्दर , सुअर विभिन्न प्रकार के पक्षियों की सुन्दरता व उनकी अदायें
( भावभंगिमा ) से चारों दोस्तों का रोम - रोम पुलकित हो रहा था बीच - बीच में सभी दोस्त हल्का - फुल्का नाश्ता भी करते जा रहे थे सभी दोस्त खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे वे चारों अट्टहास करके जंगल को गुंजायमानः कर रहे थे उनके चेहरे पर खुशी बार - बार आकर नाच रही थी सभी दोस्त बहुत ही आनन्दित थे । सभी मित्रों ने अब जलप्रपात में जाकर नहाने की सोची । नरेश और जीतेन्द्र विजय और कैलाश के मना करने के बाद भी खतरनाक पाइन्टों पर जा जाकर सैल्फी लेने लगे और अपनी शेखी बघारने लगे विजय और कैलाश को डरपोक - डरपोक कहीं के कहकर चिढ़ाने लगे । अचानक हुआ ये कि मनोरंजन के अतिरेक में नरेश और जीतेन्द्र पहाड़ की उँचाई से गिरकर गहरे पानी में जा गिरे दोनों बचाओ - बचाओ चिल्लाकर आवाजें देने लगे विजय और कैलाश ने भरसक प्रयास किया पर वह अपने प्रिय दोस्तों नरेश और जीतेन्द्र को नहीं बचा सके दोनों की मृत्यु डूबने से हो गई । सभी दोस्तों की भारी खुशी का एक पल में अंत हो गया । शिक्षायें ( 1 ) मजे में आकर मौत को नहीं भूलना चाहिए ।
