खंडहर का रहस्य
खंडहर का रहस्य
यूं तो जीवन में बहुत सी घटनाएं रात को हुई हैं। शायद रात के तीन बजे भी हुई हो। चाहे वह मेरे पापा की मौत की खबर हो या मेरी बहन का फोन पर वह गुनगुनाना "मेरे घर आई एक नन्ही परी" मतलब मैं मां बन गई दीदी। या मेरा खुद का अनुभव . . .शादी के दस सालों बाद रात बारह साढ़े बारह बजे हुआ मेरा कृष्ण कन्हैया मेरी गोद में रात को तीन बजे ही आया था। पर बचपन की एक याद छोटे बच्चे की तरह उचक उचक कर कह रही है। नहीं ... मुझे लो अपनी गोद में.... मुझ पर अपनी लेखनी चलाओ।
हां तो बात मेरे बचपन की है। शायद सात या आठ साल की रही हूँगी। हम अपने मामा के घर गए थे। वह भी क्या जमाना था हम ( मतलब मुझसे डेढ़ साल छोटी मेरी बहन मेरे मामा के दो लड़के ने मिकी और सोनू, मिकी मुझसे पन्द्रह दिन छोटा और सोना मेरी बहन से तीन महीने बड़ा) हम सब पूरे मोहल्ले में लावारिसओं की तरह भटकते रहते l भूख लगती तो घर पर आ जाते। क्या सच में हमारे मां-बाप को हमारी फिक्र नहीं थी। आज तो बच्चे दो मिनट के लिए आंखों से ओझल नहीं होने दिए जाते हैं l अरे भाई जमाना इतना अच्छा था I सुबह उठकर हम चारों दिशा मैदान के लिए साथ में ही जाते। नहीं भाई ...घर पर व्यवस्था थी। पर हम शैतान चौकड़ी (जी हां यह नाम हमारे छोटे मामा ने हमें दिया था) को सब काम साथ ही करना होता था। खाना, नहाना, ब्रश करना और वह भी l तो मामा के घर के नीचे ढलान थी, खेत थे और नदी बहती थी। गर्मियों में नदी दो धाराओं में बट जाती l एक पतली सी धारा और एक मुख्यधारा। हम सुबह उठ कर चले जाते खेलते, कूदते, समय मिलता तो वह भी करते I जब ऊपर से मामा या मामी के पुकारने की आवाज आती तो भाग कर वापस आते। नहीं सुन पाते तो कोई ना कोई आ कर लिवा कर ले जाता। तो वहीं नदी के किनारे एक मंदिर था और एक खंडहर भी, थोड़ी ही दूर पर ही नदी के ऊपर रेल का पुल भी निकलता था। उस पर से ट्रेनें आती जाती रहती। हमारा आधा दिन तो ट्रेनों के डिब्बे गिनने में गुजर जाता। हमको नदी की मुख्यधारा और खंडहर की ओर जाने की सख्त मनाही थी। मंदिर में तो मम्मी मामी के साथ अक्सर जाते रहते।
खंडहर हम लोगों के लिए बहुत रहस्यमयी था। सारा दिन तो वीरान रहता पर रात को एक रोशनी सी जगमगाती दिखती। हमें कहा गया था वहां भूत है बच्चों को पकड़ लेता है I अब हमें भूत देखना था। चूंकि मैं बड़ी थी इसलिए मैं लीडर थी। मैंने कहा भूत भूत कुछ नहीं होता। पर बाल जिज्ञासा जो ना बोलो वही करने का मन करता है। तो अब हमारे दिमाग में आ गया था कि एक दिन खंडहर में जाना है। पर कैसे ... ? दिन में तो खेतों में काम करने वाले मजदूर रहते हैं l देख लेंगे तो शिकायत कर देंगे I बहुत सोच-विचार का यह तय हुआ कि सुबह सुबह जब हम दिशा मैदान के लिए जाते हैं ना तब उसी समय जाया जाए। पर तब तक तो घर में सब लोग जग जाते हैं किसी ने देख लिया तो ... ? तो यह तय हुआ कि कल सुबह थोड़ा जल्दी उठकर निकल जाएंगे। कोई पूछेगा तो बोल देंगे "आयी थी" I पर खंडहर में अंधेरा हुआ तो ..... ? उसका भी इलाज निकाला गया। मामा का घर पुराने जमाने का थाI बाथरूम बाहर था। छत पर आने के लिए सीढ़ियां बाहर से भी थी और अंदर आंगन से भी I वही बाथरूम में बाहर लालटेन धीमी करके रख दी जाती थी कि रात को किसी को जाना हुआ और लाइट नहीं हुई तो सुविधा रहेगी।
गर्मियों का समय था तो सारे लोग छत पर ही सोते थे। हम सब ने छोटे-छोटे डंडे अपने हथियार के रूप में छत पर रख लिए थे। अब प्रश्न कि सुबह उठा कैसे जाएगा ... ? तो सोना बोला हम लोगों को माँ रात में बोलती है ना कि सुसु करके सोने जाओ नहीं तो रात को लगेगी l तो मैं रात को सोने से पहले ढेर सारा पानी पी लूंगा तो सुबह जल्दी नींद खुल जाएगी l विचार अच्छा था I पर अगर नहीं लगी तो... ? या फिर रात को ही लग गई तो.... ? पर दूसरा उपाय नहीं था I तय हुआ जिसको भी लगे वह उठकर मामा की घड़ी में समय देखकर बाकी सब को जगा दे। मामा की घड़ी वहीं बिस्तर के नीचे ही रखी रहती थी। हम सब ढेर सारा पानी पीकर सोने गये। सुबह मेरी नींद मिकी के जगाने से खुली l देखा तो तीनों सिपाही तैयार थे। मैं ही कुंभकरण की तरह सो रही थी I हम धीरे-धीरे सीढ़ियों से नीचे उतरे चप्पले पहनी। डंडे लिए लालटेन उठाई और चल दिए। थोडा चलने पर मेरी बहन बोली, "अभी तो रात ही लग रही है l अभी तो चांद भी चमक रहा है"l हम सब ने उसका खूब मजाक बनाया I चांद तो दिन में भी दिखता है। मिकी बोला, "मैंने समय देखा था 5:40 हुए थे"। चलो फिर हम चांद की और लालटेन की रोशनी में धीरे-धीरे पगडंडी उतरकर खेत तक पहुंचे I यही पगडंडी जो हम रोज सुबह भागकर दो मिनट में उतर जाते थे उसे उतरने में हमें शायद दस मिनट लगे। कहीं कोई आवाज ना हो जाए। कहीं हम फिसल न जाए। धीरे-धीरे खेतो को पार किया और खंडहर की ओर बढ़ने वाले ही थे कि सोना बोला, "दीदी भगवान के दर्शन कर लेते हैं। भूत भगवान से डरता है ना" I अब डर तो सबको ही लग रहा था l क्योंकि हम सबके मन में था कि कुछ तो गड़बड़ हो गई है I शायद मिनी की बात सही थी। अभी ज्यादा रात है। कुछ हो गया तो ... ? सचमुच में भूत हुआ तो... ? परिस्थिति आगे कुआं पीछे खाई वाली थी। इतना आगे आ जाने पर भूत ने वापस लौटते हुए देख लिया और पीछे से हमला कर दिया तो... ? भूत भूत कुछ नहीं होते हैं। पर . . .
मंदिर में गए धीरे से दरवाजा खोला I दरवाजा भी भुतिया फिल्मों के दरवाजों की तरह चरमराया। हम डर गए। यह क्या ... ? वैसे तो हम जब भी आते यह दरवाजा आवाज नहीं करता है I पर शायद तब दरवाजा हमेशा खुला ही मिलता था। मंदिर में तेल के अखंड दीपक के कारण उजाला था। मन तो कर रहा था कि वही रुक जाऊँ। वहां बहुत सुरक्षित लग रहा था। पर इतनी छोटी उम्र में भी इस बात का डर था कि छोटे भाई बहन बोलेंगे "दीदी डरपोक दीदी डरपोक" I तो सारी शक्ति इकट्ठा करके अपने अपने डंडे कसकर पकड़ते हुए हम आगे बढ़े l हमने खंडहर को हमेशा दूर से ही देखा था। तो जाने का रास्ता किधर से है. . ? दरवाजा किधर है. . ? कुछ भी नहीं मालूम था | और उस ओर कोई आता जाता भी नहीं था तो पगडंडी का निशान भी नहीं था। हम अटकले लगाकर ऊंची खाली जमीन को कूदते फांदते खंडहर के पास तक पहुंचे। वहां तो घूप्प अंधेरा था। तो फिर वह रोशनी जो खंडहर में चमकती दिखती है वो ..... ? तभी मेरी बहन बुदबुदाई अभी दिन होने वाला है न तो लगता है भूत सोने गया। हम सब उसकी बात पर सहमत हो गए। हम आगे बढ़े I एक दरवाजे जैसा दिखाई दिया। जिसके सामने ईटों का ढेर पड़ा था। सोचा जब भूत सो ही गया है तो अंदर जाने से क्या फायदा। चलो वापस चलते हैं। डर अपने चरम पर था। पर सोना बोला चुपचाप जाकर सोते हुए भूत को देखकर वापस आ जाएंगे। धीरे धीरे ईटों को पार कर अंदर गए। अंदर जगह-जगह पर ईंटें , पत्थर, गंदगी पड़ी थी। हम उससे बच बच कर जो दूसरा दरवाजा दिखा उस और बढ़े I उस दरवाजे से दूसरे कमरे में पहुंचे। वहाँ तो ऊपर छत ही नहीं थी। मेरी बहन दुखी हो गई। बिचारा भूत बारिश में क्या करता होगा... ? आगे बढ़े ...आगे एक बड़ा सा खाली कमरा था। उसकी छत व दीवारें सब लगभग गिरे हुए थे। वहां से मंदिर साफ दिख रहा था। सामने एक आले में एक बड़ा सा आईना रखा था। खंडहर से निकलती रोशनी का रहस्य हमारे समझ में आ गया I मंदिर के दीए की रोशनी उस आईने पर पड़ती थी I वही रोशनी सामने वाली दीवार पर पड़ती थी तो पूरा खंडहर चमकता था। यह सब देखकर मैंने बहादुर बनते हुए बोला, "देखा भूत भूत कुछ नहीं होता"। मेरे इतना कहते ही सामने की दीवार पर एक साया उभरा... चीते जैसा। हम सब डर गए I भूत ने क्या चीते का रुप बना लिया है ? हम जोर से चिल्लाए इसके साथ ही म्याऊं की आवाज करके कुछ कूदा और भाग गया। हम सब भी भागे I भागकर सीधे मंदिर पहुंचे कि भूत मंदिर में नहीं आ सकता। वहां एक बिल्ली दिखी I उसे देखकर पूरी बात समझ में आई कि शायद लालटेन की रोशनी में बिल्ली का प्रतिबिंब ही बड़ा होकर हमें चीते जैसा लग रहा था। हम सब अपनी मूर्खता पर खूब हंसे। हमारा मिशन खंडहर का रहस्य पूरा हो चुका था। हम सब घर की ओर वापस चले l आकाश में चांद अभी तक चमक रहा था I हां तारों की संख्या कुछ कम हो गई थी I पर अभी भी सुबह होनी शुरू नहीं हुई थी। ऐसा कैसे .... ?.जब हम पॉच चालीस पर घर से निकले थे तो अभी तक सुबह क्यों नहीं हुई . . . ? मिकी बोला भूत ने समय को रोक दिया होगा। ऐसे ही धीमे-धीमे बातें करते करते हम घर पहुंचे। लालटेन बाथरूम के पास रखी I सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गए तो ऊपर कोई नहीं। सब लोग कहां गए.... ? तभी बहन बोली, "जब हम सब वहां गए थे तो लगता है भूत यहां आकर सब को उठा ले गया।" इतना सुनते ही हम सब को रोना आ गया हमारा डर हमारी रूलाई बनकर फूट पड़ा। हमारी रोने की आवाज सुनकर सब लोग ऊपर आ गए। हमें गले से लगा लिया। हम समझ नहीं पाए कि यह क्या हुआ। मामी मम्मी सब रो रहे थे और हम भी रो रहे थे। आखिर हमसे पूछा गया तुम सब रात तीन बजे से कहां गायब हो ? हम सब ने एक-दूसरे का मुंह देखा तीन... ? तो क्या तब पाँच चालीस नहीं तीन बजे थे... ? हमने घड़ी उलटी देखी थी ... ? हमारे पास तो कोई जवाब था नहीं। सच बोलने पर उस दिन जीवित बचने की कोई उम्मीद नहीं थी I तो बस बोल दिया "आयी थी"। सब ने सिर पर हाथ रख लिया रात को तीन बजे . . ? वह भी तुम चारों को एक साथ . . . ? और हम मुस्कुरा कर अपनी अपनी मां की गोद में दुबक गए। छोटे मामा मुस्कुरा कर बोले, "शैतान चौकड़ी कुछ तो गड़बड़ कर के आई है। ठीक है जब तुम लोगों को अच्छा लगे बता देना। तुम सब कहां गायब थे।
हम चारों ने एक दूसरे का मुंह देख कर कसम खाई हम जीते जी कभी इस घटना का जिक्र अपने घरवालों से नहीं करेंगे। पर मेरी शादी के बाद जब हम सब मामा के घर में इकट्ठे हुए थे। तो मैंने बोला यह खंडहर अभी भी है। छोटे मामा मुस्कुराते हुए बोले, "क्यों एक और मिशन खंडहर करना है . . "? हम चारों एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। आखिर यह राज खोला किसने . ? मामा मुस्कुराते हुए बोले, "बेटा मैं तुम सब का बाप हूँ। तुम नहीं बताओगे तो क्या पता नहीं चलेगा कि शैतान चौकड़ी क्या करके आई थी।
पाठकों के अनुरोध पर कि मामा को कैसे पता चला?
तो जब हम सब छत पर खड़े थे हमने मामा का मुंह देखा मामा ने हमको अपने पास बुलाया और सामने देखने के लिए कहा तब हमारे समझ में आया की बचपन की हमारी कद की लंबाई से हमें भले ही छत से नदी या मंदिर तक का रास्ता ना दिखता हो पर बड़ों की ऊंचाई से (कद की लंबाई) सामने मैदान खंडहर और मंदिर तक जाने वाला रास्ता सब एकदम साफ साफ दिख रहा था। तो मामा ने उस रात हम चारों को लालटेन हाथ में लेकर के खंडहर से बाहर आते हुए देखा था।
