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Sonia Chetan kanoongo

Others

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Sonia Chetan kanoongo

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जैसी करनी वैसी भरनी

जैसी करनी वैसी भरनी

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आज तूफ़ान परवान पे था। खामोशी का मंजर आसमान में था, सोचा था शब्दों का गला घोंट दूँ, पर आज इरादा कुछ औऱ ही था । हाँ ,हिंसा हुई थी मेरे देश मे जो वो सबको नजर आ गयी थी, पर जिस हिंसा में महिलाएं घर मे तबाह हो रही थी वो दब सी गयी थी।


बड़ी शिद्दत से पूछा उन्होंने , सर पर पल्लू क्यों नहीं रखती । सुनती तो कब से आ रही थी ,पर शायद आज इंडिया जवाब माँग रहा था। पलको को उठाकर बड़ी तसल्ली की सांसें भरते हुए शब्दों का आगमन हुआ,

क्या मेरे पति ने किसी का खून किया है,रैप किया है या चोरी की है ? तो बदले में जवाब आया ,मेरा बेटा ये सब भला क्यों करने लगा बड़ा ही संस्कारी है। तो मैंने भी कह दिया ,सच कहा आपने, तो मैं क्यों अपना मुँह लोगो से छुपाऊं , मैं क्यों ना गर्व से अपना सर उठाऊ।


तभी पलट वार हुआ, कैसे संस्कार है तुम्हारे, इतना भी नहीं पता कि कोई आये बड़ा सामने तुम्हारे तो खड़ी हो जाओ। सीना छलनी हो गया संस्कार के नाम पर।

रह ना सकी कहे बिना, इसका मतलब आपने ये संस्कार अपने ख़ुद के बच्चो को नहीं दिए । देखा नहीं मैंने किसी को खड़े होते हुए, तो भला मेरे सिलेबस में ये नया चेप्टर क्यों जोड़ दिए।


जबान लड़ाती हो यही सिखाया है माँ बाप ने। उमड़ पड़ी एक ज्वाला मेरे सीने में, नहीं यह नहीं सिखाया । सिखाया था कि पहले गांधीजी के संस्कारो पर चलो, कोई एक गाल पे मारे तो दूजा आगे करदो,

पर फिर ये भी सिखाया की कोई गाँधीजी की सीख का फायदा बार- बार उठाये तो अपने आत्मसम्मान को हथियार बनालो।

आत्मसम्मान से बढ़कर कुछ नहीं है ।


शर्म नहीं आती मेरे बेटे को रसोई तक ले आयी,क्या ये मर्दो का काम है । पढ़ा लिखा है मेरा बेटा। अब बात आत्मसम्मान की थी चुप कैसे रहती । सच कहा आपने, पढ़ी- लिखी तो मैं भी हूँ, पर रसोई की एक डिग्री ज्यादा है मुझमें । शायद ये डिग्री आप अपने बेटे को दिलाना भूल गयी, इसलिए वो ताउम्र निर्भर रहेगा मुझ पर।


 सहन नहीं होता तुम्हें की मेरी बेटी की नोकरी लगी है । सच कहा आपने सहन नहीं होता मुझे, पर एक सीख आज जरूर दूँगी । मत दिखाओ अपनी बेटी को ये सपने जिसमें वो अपनी दुनिया खोजने लगे,यहाँ तो फरिश्ते हो आप उसके, ऐसा ना हो कि शादी के बाद उसे उम्मीदों के टूटने का दर्द झेलना पड़े। जरा देखो आईने में खुद को, वहाँ भी रूप यही होगा। जैसे आपके सामने खड़ी हूँ मैं, वहाँ कोई और खड़ा होगा।

ना मन मे परवाह होगी,ना ममता का वो घर होगा। जो आज सह रही हूँ मैं वो कल उसे सहना होगा, पता हैं हूक नही उठती मेरे दर्द की तुम्हारे मन में वहाँ भी दर्द यही होगा, बस मरहम नहीं होगा।


दोस्तों, ये सवाल किसी एक महिला एक घर के अंदर से नहीं उठते है । ये लगभग हर घर की हमारे समाज की मनोदशा है, किस तरह रिश्तों के नाम बदलते ही मन के भाव बदल जाते है । संस्कारो के नियम बदल जाते है। सास को समझ आ गया था कि आ बेल मुझे मार वाली हरकत आज उसी पर भारी पड़ी ।


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