हरि शंकर गोयल

Children Stories Inspirational

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हरि शंकर गोयल

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हीरे मोतियों से पेट नहीं भरता

हीरे मोतियों से पेट नहीं भरता

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19. हीरे मोतियों से पेट नहीं भरता है 

यह कहानी "अपनी पगड़ी अपने हाथ" मुहावरे का प्रयोग कर लिखी गई है । 


पेट तो भोजन से ही भरता है । सोना, चांदी, हीरे, मोती चाहे जितना जोड़ लें, मगर ये कीमती धातु लालच का पेट तो भर सकती हैं लेकिन किसी इंसान का पेट नहीं भर सकतीं । फिर पता नहीं लोग क्यों इनके पीछे दौड़ते हैं । इन्हें पाने के लिए चोरी, डकैती, हत्या और अत्याचार करते हैं । हमारे शास्त्रों में भी धन संग्रह करने को उचित नहीं माना अपितु दान पुण्य की महिमा गाई है । पर लोग हैं कि मानते नहीं । आइए आज एक शिक्षाप्रद कहानी से रूबरू होते हैं । 


एक बार एक राजा था । उसे सोना चांदी, हीरे मोतियों से बहुत अनुराग था । वह चाहता था कि वह विश्व का सबसे अमीर व्यक्ति बन जाये । उसका खजाना कीमती धातुओं से भर जाए । उसकी आंखें हीरे मोती और जवाहरातों की चमक से चौंधिया जाये । वह हरदम इनके खयालों में डूबा रहता था । राज्य का खजाना इनसे कैसे भरे , वह इसी उधेड़बुन में लगा रहता था । 


उसका एक मंत्री था जो कि उसका विश्वास पात्र था । राजा और मंत्री दोनों खजाना भरने की योजना बनाते रहते थे । राज्य में लगान की जो व्यवस्था थी उससे इतना ही लगान वसूल होता था जिससे राज काज चल सके । लेकिन राजा की सोने चांदी की भूख इससे मिट नहीं सकती थी । अत : उसने लगान दोगुना करने का फरमान जारी कर दिया । 


दोगुना लगान देना किसानों के वश में नहीं था क्योंकि खेतों से उपज बहुत ज्यादा नहीं होती थी । किसानों ने राजा से बहुत विनती की कि लगान पहले जितना ही कर दें, मगर राजा पर तो लोभ का परदा पड़ा हुआ था इसलिए वह टस से मस नहीं हुआ । बढे हुए लगान को उसने सख्ती से वसूलना प्रारंभ कर दिया । जो भी व्यक्ति लगान नहीं दे सकता था उसकी पिटाई बीच चौराहे पर की जाने लगी । पीटते पीटते खून निकल आता था मगर इससे जालिम राजा का हृदय जरा भी नहीं पिघलता था । 


इतने जुल्म ढाकर भी राजा का न तो खजाना भरा और न पेट । तब उसने एक और फरमान जारी कर दिया कि जनता को सोने चांदी हीरे मोती और जवाहरात रखने का कोई अधिकार नहीं होगा । जिसके पास ये धातु होंगी उसे मृत्यु दंड दिया जायेगा । इस फरमान से समूचे राज्य में अफरा तफरी मच गई । लोग डर कर सोना, चांदी, हीरे , मोती और दूसरे जवाहरात राजा को देने लगे । प्रजा राजा को बद दुआऐं देने लगीं । राजा का सम्मान तो पहले भी नहीं था मगर अब राजा घृणा का पात्र बन गया था । सम्मान कोई बाजार में बिकने वाली चीज नहीं है अपितु यह अपने कार्य और व्यवहार से अर्जित किया जाता है । अगर अपना सम्मान चाहते हो तो पहले दूसरे का सम्मान करना होगा । "अपनी पगड़ी अपने हाथ" मुहावरा लागू होता है यहां पर । 

राजा के अत्याचार बढते जा रहे थे मगर उसी अनुपात में उसका खजाना भी बढता जा रहा था । एक दिन ऐसा आया जब उसका खजाना पूरा भर गया । तब राजा को चिंता हुई कि अब आने वाले हीरे मोतियों को कहां रखेंगे ? उसने मंत्री से गुप्त मंत्रणा की । मंत्री ने सुझाव दिया कि जमीन के अंदर सुरंग खोदकर एक तहखाना बनाया जाये। उसमें सारा खजाना भर दिया जाये । राजा को यह सुझाव पसंद आ गया । 

तब महल के अंदर से एक सुरंग खोदकर एक तहखाना बनाया गया और उसमें समस्त सोना, चांदी, हीरे, मोती, नीलम, माणिक आदि आदि कीमती धातु और गहने उस तहखाने में रखवा दिये गये । उस तहखाने की जानकारी केवल राजा और मंत्री को ही थी, अन्य किसी को नहीं । तहखाने की चाबी भी दोनों के पास ही थी । मंत्री उसमें माल भरने के लिए आता था और राजा उसे देखने । गाहे बगाहे राजा तहखाने में आ जाता था और उस अनमोल खजाने को देखकर बहुत खुश होता था । वह सोचता कि वह संसार का सबसे अमीर और भाग्यशाली व्यक्ति है जिसके पास अकूत धन दौलत है । खुशी के मारे वह फूला नहीं समाता था । 


एक बार राज्य में भीषण अकाल पड़ा । कुछ भी पैदा नहीं हुआ लेकिन लगान पूरा जमा कराने का फरमान जारी हो गया । लोग भूख प्यास से मरने लगे । कुछ लोग लगान नहीं देने के कारण पिटाई से मरने लगे पर इससे राजा के अत्याचार कम नहीं हुए । जनता राजा को सरेआम गाली देने लगी । विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हो गई थी । राजा ने शक्ति का प्रयोग कर विद्रोह को दबा दिया । 


एक रात राजा को नींद नहीं आई । वह खजाना देखना चाहता था । वह सुरंग के रास्ते तहखाने में चला गया और तहखाना खोलकर खजाना देखने लगा । खजाना देखकर उसे चैन मिला । वह हीरे मोतियों का पलंग बनाकर उस पर लेट गया और उसे नींद आ गई । वह घोड़े बेचकर सो गया था । 


रात में ही मंत्री को सपना आया कि डाकुओं ने हमला कर दिया है और वे खजाना लूटकर ले गये हैं । वह घबरा कर उठा और सीधा खजाने की ओर भागा । तहखाने का द्वार खुला हुआ था । वह घबरा गया । वह तहखाने के अंदर गया तो उसने हीरे मोतियों के पलंग पर राजा को सोते देखा तो उसके मन में एक षड्यंत्र पनपने लगा । वह चुपचाप तहखाने से बाहर आ गया और दरवाजा बंद करके ताला लगाकर आ गया । 


राजा की जब नींद खुली तो उसने देखा कि दिन बहुत चढ गया था । वह हड़बड़ाहट में उठा और दरवाजे की ओर भागा लेकिन दरवाजा तो बंद था । उसने दरवाजा बहुत खटखटाया । तेज आवाजें भी दी मगर वहां कोई हो तो उसकी आवाज कोई सुनता ? 


उधर , मंत्री ने सभा में घोषणा कर दी कि राजा ने सन्यास ले लिया है और वे हिमालय की कंदराओं में तपस्या करने चले गये हैं । लोग तो राजा से वैसे ही परेशान थे इसलिए इस समाचार पर उन्होंने बहुत प्रसन्नता व्यक्त की । मंत्री ने देखा कि राजा की अनुपस्थिति से जनता खुश है तो उसने राजा के उत्तराधिकारियों को मारना शुरू कर दिया और स्वयं को राजा घोषित कर दिया । तहखाने के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था इसलिए सब लोगों ने मंत्री की बात मान ली । 


उधर राजा भूख और प्यास से बेहाल था । तहखाने में खाने को सोना चांदी और पीने को हीरे, मोती, जवाहरात थे । मगर इनसे क्या इंसान की भूख प्यास मिट सकती है ? बिल्कुल नहीं । और एक दिन राजा भूखा प्यासा ही तड़प तड़प कर मर गया । जिस तरह राजा ने प्रजा को भूख प्यास से तड़पा तड़पा कर मार डाला उसी तरह भूख प्यास ने राजा को तड़पा तड़पा कर मार डाला । प्रजा की हाय भी बहुत बुरी लगती है । 


साथियो, इस कहानी से दो शिक्षा मिलती है । पहली तो यह कि लोभ लालच के जंजाल में नहीं फंसना है । सारे दुखों के मूल में लोभ लालच ही होता है । दूसरी यह कि किसी पर भी आंख मूंदकर विश्वास मत करो, जैसा राजा ने अपने मंत्री पर किया था । उसी मंत्री ने राजा को तिल तिल सड़ कर मरने के लिए विवश कर दिया था । प्रजा और राजा का संबंध पुत्र और पिता की तरह होता है । राजा का दायित्व है कि वह अपने पुत्र के सदृश अपनी प्रजा की देखभाल करे । नहीं तो इस राजा की तरह दुर्गति होगी ही । इसमें कोई संदेह नहीं है । 



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