गुलाब जामुन

गुलाब जामुन

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   रामू चला जा रहा था, और अपनी खाली मुठ्ठी को देखता जा रहा था ।

   इतने कम मिलेंगे उसने सोचा नही था, मगर ठेकेदार ने इतने ही दिये थे , उसने हफ्ते भर की मजदूरी में से भी दो दिन के काट लिये थे,और बनिये ने पिछले हफ्ते का उधार काट लिया । अब हाथ मे कुछ पैसा नही बचा । दुलारी भी बीमारी की वजह से काम पर नही जा पा रही है । घर मे भूखे की नोबत आ गयी है, और, छोटू वह छोटा सा बच्चा , कितना कुछ सीख गया है हालात देखकर । मगर आज पहली बार उसने मुझसे कुछ मांगा था ,उसने सुबह निकलते ही कहाँ था , "बापू आज मेरा जन्मदिन है मेरे लिये मिठाई ले आना, मुझे गुलाब जामुन बहुत पसंद है वही ले आना "। अब किस मुँह से घर जाऊ । रामु सोच रहा था।

   इसी उधेड़बुन में रामु घर के रास्ते ना जाकर समुद्र किनारे चला जाता है । वहाँ का तो नजारा ही अलग है बड़े बड़े समूह में लोग नया साल का जश्न मनाने की तैयारी कर रहे है । वह भी उन्हें देखने लगा , शाम गहराने लगी और उत्सव चालू हो गया । बहुत सारा खाना,मिठाइयां, केक,शराब की बोतलें खुल रही है लोग मस्ती में सराबोर हो रहे है , खाने की खुशबू चल रही थी , रामु की आतें कुलबुलाने लगी , उसे याद आया कि उसने भी सुबह से कुछ नही खाया है । "शायद रात के ग्यारह बज गये अब घर चलना चाहिये । दुलारी भी रास्ता देख रही होगी "। रामु ने अपने आपसे कहा। और घर जाने के लिये खड़ा हुआ, इतने में उसे डस्टबिन में पड़े दो गुलाब जामुन दिखे, रामु उन्हें देखकर ठिठक गया , उसने एक मिनिट सोचा , और तुरन्त दोनो को उठाकर वहाँ पड़े कागज में लपेटकर अपने कुर्ते की जेब मे रखा व अपने घर की राह चल पड़ा । 




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