ग्रैण्डमास्टर की हैट
ग्रैण्डमास्टर की हैट
लेखक : विक्टर द्रागून्स्की
अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
उस दिन मैंने सुबह-सुबह जल्दी से होम वर्क कर लिया, क्योंकि वो बिल्कुल कठिन नहीं था.
सबसे पहले मैंने बाबा-ईगा (रूसी लोक कथाओं की डायन) के घर का चित्र बनाया, जिसमें वो खिड़की के पास बैठकर अख़बार पढ़ रही है. फिर “हमने शेड बनाया” इस वाक्य की रचना की. बस, इसके अलावा कुछ और था ही नहीं. तो, मैंने ओवरकोट पहना, ताज़े ब्रेड का एक टुकड़ा लिया और घूमने निकल पड़ा. दोनों ओर पेड़ोंवाली हमारी सड़क के बीचोंबीच एक तालाब है, और तालाब में हँस, कलहँस और बत्तख़ें तैरती रहती हैं.
उस दिन ख़ूब तेज़ हवा चल रही थी. पेड़ों की सारी पत्तियाँ एकदम उलटी हो रही थीं, और तालाब भी पूरा ऊपर-नीचे हो रहा था, जैसे हवा के कारण खुरदुरा-खुरदुरा हो गया हो.
जैसे ही मैं सड़क पर आया, मैंने देखा कि आज वहाँ क़रीब-क़रीब कोई भी नहीं है, बस, सिर्फ दो अनजान लड़के सड़क पर भाग रहे हैं, और बेंच पर एक अंकल बैठकर अपने आप से ही शतरंज खेल रहे हैं. वो बेंच पर तिरछे बैठे हैं, और उनके पीछे पड़ी है उनकी हैट.
तभी अचानक खूब ज़ोर की हवा चली, और अंकल की हैट हवा में उड़ने लगी. शतरंज के खिलाड़ी का ध्यान ही नहीं गया, वो बस बैठे हैं और अपने खेल में मगन हैं. शायद वो अपने खेल में पूरी तरह डूब गए थे, और दुनिया की हर चीज़ के बारे में भूल गए थे. मैं भी, जब पापा के साथ शतरंज खेलता हूँ, तो अपने चारों ओर की किसी भी चीज़ पर ध्यान नहीं देता, क्योंकि जीतने की धुन जो सवार रहती है! और ये हैट तो ऊपर उड़ने के बाद धीरे-धीरे नीचे उतरने लगी, और वो ठीक उन अनजान लड़कों के सामने उतरी जो सड़क पर खेल रहे थे. उन्होंने फ़ौरन उसकी ओर हाथ बढ़ाए. मगर बात तो कुछ और ही हुई, क्योंकि हवा जो चल रही थी! हैट ऊपर की ओर ऐसे उछली, मानो वो ज़िन्दा हो, इन लड़कों के सिरों के ऊपर से उड़ते हुए बड़ी ख़ूबसूरती से तालाब पर उतर गई! मगर वो पानी में नहीं गिरी, बल्कि सीधे एक हँस के सिर पर जाकर बैठ गई. बत्तखें तो खूब डर गईं, और कलहँस भी डर गए. वो हैट के डर से एकदम तितर-बितर हो गए. मगर हँसों को तो उल्टे मज़ा आ रहा था, कि ये क्या अजीब बात हो गई है, और वे सब हैट वाले हँस की ओर लपके. वो अपनी पूरी ताक़त से सिर हिलाए जा रहा था, जिससे हैट को दूर फेंक सके, मगर वो वहाँ से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी. सारे हँस इस विचित्र चीज़ को देख-देखकर आश्चर्यचकित हो रहे थे.
तब किनारे पर खड़े अनजान लड़के हँसों को अपनी ओर बुलाने लगे. वे सीटी बजाने लगे :
”फ्यू-फ्यू-फ्यू!”
जैसे कि हँस-कुत्ता हो!
मैंने कहा :
“अब मैं ब्रेड फेंककर उन्हें अपनी ओर बुलाऊँगा, और तुम लोग कोई लम्बा डंडा ढूँढ़कर ले आओ. हैट तो उस शतरंज के खिलाड़ी को देना ही चाहिए. हो सकता है, कि वो ग्रैण्डमास्टर हो...”
और मैंने अपनी जेब से ब्रेड बाहर निकाली और उसके बारीक-बारीक टुकड़े करके पानी में फेंकने लगा.
तालाब में जितने भी हँस थे, और कलहँस थे, और बत्तखें थीं, सब तैरते हुए मेरी तरफ़ आने लगे. किनारे के पास वो धक्कामुक्की और भीड़-भड़क्का हो गया कि पूछो मत. जैसे पंछियों का बाज़ार लगा हो! हैट वाला हँस भी धक्के मारते हुए आया और उसने ब्रेड के लिए अपना सिर झुकाया, और आख़िरकार, हैट उसके सिर से फिसल ही गई!
वो हमारे काफ़ी पास तैर रही थी. तभी वे अनजान लड़के भी आ गए. वे कहीं से मोटा-सा खंभा उठा लाए थे, और खंभे के सिरे पर थी एक कील. लड़के फ़ौरन उस हैट को हिलगाने लगे. मगर बस थोड़े में ही रह गए. तब उन्होंने एक दूसरे का हाथ पकड़ा, और एक ‘चेन’ बन गई; और वो, जिसके हाथ में खंभा था, हैट को हिलगाने लगा.
मैंने उससे कहा :
“तू कील को ठीक बीचोंबीच गड़ाने की कोशिश कर! और फिर उसे खींच ले, जैसे मछली को खींचता है, समझा?”
मगर वो बोला :
“अरे, मैं तो, तालाब में, बस गिरने ही वाला हूँ क्योंकि इसने मुझे कसके नहीं पकड़ा है.”
मगर मैंने कहा :
“चल, हट मैं करता हूँ!”
“दूर हट! वर्ना मैं धड़ाम से गिर ही जाऊँगा!”
“तुम दोनों मुझे ओवरकोट की बेल्ट से पकड़ो!”
वे मुझे पकड़े रहे. और मैंने दोनों हाथों से खम्भे को पकड़ा, पूरा का पूरा आगे को झुका, और ऐसे ज़ोर से हाथों को घुमाया, मगर धम् से मुँह के बल गिर पड़ा! ये तो अच्छा हुआ कि ज़ोर से नहीं लगी, क्योंकि वहाँ कीचड़ था, इसलिए ज़्यादा दर्द नहीं हुआ.
मैंने कहा :
“ये कैसे
पकड़ा तुम लोगों ने? अगर आता नहीं है, तो करो मत!”
वे बोले :
“नहीं, हमने अच्छा ही पकड़ा था! ये तो तेरी बेल्ट उखड़ गई. कपड़े समेत.”
मैंने कहा :
“उसे मेरी जेब में रख दो, और तुम ख़ुद मुझे कोट से पकड़ो, बिल्कुल किनारे से. ओवरकोट तो नहीं न फटेगा! चलो!”
मैं फिर से खंभे समेत हैट की ओर झुका. मैंने कुछ देर इंतज़ार किया, जिससे हवा उसे मेरे और पास धकेल दे. मैं पूरे समय खंभे को चप्पू जैसे घुमाकर उसे अपनी ओर खींच रहा था. शतरंज के खिलाड़ी को उसकी हैट लौटाने की खूब जल्दी हो रही थी. हो सकता है कि वो वाक़ई में ग्रैण्डमास्टर हो? ये भी हो सकता है कि वो ख़ुद बोत्विन्निक हो! बस, यूँ ही घूमने निकल पड़ा हो, और बस. ज़िन्दगी में ऐसे भी किस्से हो जाते हैं! मैं उसे हैट दूँगा, और वो कहेगा, “थैन्क्यू, डेनिस!”
इसके बाद मैं उसके साथ फोटो खिंचवाऊँगा और सब को दिखाया करूँगा...
ये भी हो सकता है कि वो मेरे साथ एक ‘गेम’ खेलने के लिए तैयार हो जाए? और, मान लो, अचानक, मैं जीत जाऊँ? ऐसी घटनाएँ भी हो जाती हैं!”
अब हैट तैरते हुए कुछ और पास आ गई थी, मैंने लपककर ठीक सिर वाली जगह पे कील चुभा दी. अनजान लड़के चिल्लाए :
“हुर्रे!”
और मैंने हैट को कील से निकाला. वो एकदम गीली और भारी हो गई थी. मैंने कहा :
“इसे निचोड़ना पड़ेगा!”
उनमें से एक लड़के ने एक तरफ़ से हैट का किनारा पकड़ा और उसे बाईं ओर घुमाने लगा. और मैं इसके विपरीत, दूसरी ओर से दाईं तरफ़ घुमाने लगा. हैट में से पानी बाहर निकलने लगा..
हमने खूब ज़ोर लगाकर उसे निचोड़ा, वो बिल्कुल बीचोंबीच टूट भी गई. और वो लड़का, जो कुछ नहीं कर रहा था, बोला :
“अब सब ठीक है. इधर लाओ. मैं उसे अंकल को दे दूंगा.”
मैंने कहा :
“ये भी ख़ूब रही! मैं ख़ुद ही दूँगा.”
तब वो हैट को अपनी ओर खींचने लगा, और दूसरा लड़का अपनी ओर. और मैं अपनी ओर. हमारे बीच झगड़ा होने लगा. उन्होंने हैट का अस्तर बाहर निकाल दिया. और पूरी हैट मेरे हाथ से छीन ली.
मैंने कहा :
“मैंने ब्रेड के लालच से हँसों को अपनी तरफ़ खींचा था, मैं ही इसे वापस लौटाऊँगा!”
वे बोले :
“कील वाला खंभा कौन लाया था?”
मैंने कहा :
“और बेल्ट किसके ओवरकोट की फटी थी?”
तब उनमें से एक ने कहा :
”ठीक है, इसे छोड़ देते हैं, मार्कूश्का! घर में बेल्ट के लिए तो इसकी ख़बर ली ही जाएगी!”
मार्कूश्का ने कहा :
”ले, रख ले अपनी मनहूस हैट,” और उसने गेंद की तरह पैर से मेरी ओर हैट फेंक दी.
मैंने हैट को उठाया और फ़ौरन सड़क के आख़िरी छोर की ओर भागा जहाँ शतरंज का खिलाड़ी बैठा था. मैं भागकर उसके पास गया और बोला :
“अंकल, ये रही आपकी हैट!”
“कहाँ?” उसने पूछा.
“ये,” मैंने कहा और हैट उसकी ओर बढ़ा दी.
“तू गलत कह रहा है, बच्चे! मेरी हैट यहीं है.” और उसने मुड़कर पीछे देखा.
वहाँ तो, ज़ाहिर है, कुछ था ही नहीं.
तब वो चीख़ा:
“ये क्या है? मेरी हैट कहाँ है, मैं तुझसे पूछ रहा हूँ?”
मैं थोड़ा दूर हट कर बोला :
“ये रही. ये. क्या आप देख नहीं रहे हैं?”
अंकल की तो मानो साँस ही रुक गई :
“ये भयानक मालपुए जैसी चीज़ तू क्यों मेरी नाक में घुसेड़ रहा है? मेरी हैट एकदम नई थी, वो कहाँ है? फ़ौरन जवाब दे!”
मैंने उनसे कहा :
“आपकी हैट को हवा उड़ाकर ले गई, और वो तालाब में गिर गई. मगर मैंने कील से हिलगा लिया. फिर हमने उसे निचोड़ा और पानी बाहर निकाल दिया. ये रही वो. लीजिए...और ये रहा उसका अस्तर!”
उसने कहा :
“मैं अभ्भी तुझे तेरे माँ-बाप के पास ले जाता हूँ!!!”
“मम्मा इन्स्टीट्यूट में है. पापा फैक्टरी में. आप, इत्तेफ़ाक से, कहीं बोत्विन्निक तो नहीं हैं?”
वो पूरी तरह तैश में आ गया :
“भाग जा, लड़के! मेरी आँखों के सामने से दूर हो जा! वर्ना मैं तेरी धुलाई कर दूँगा!”
मैं कुछ और पीछे सरका और बोला:
“क्या हम शतरंज खेलें?”
उसने पहली बार ध्यान से मेरी ओर देखा.
“क्या तुझे खेलना आता है?”
मैंने कहा :
“हुँ!”
तब उसने गहरी साँस लेकर कहा :
“अच्छा, चल बैठ!”
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