गंगा कहे पुकार के
गंगा कहे पुकार के
पति की पोस्टिंग देहरादून हो गयी थी दूसरी बार। देहरादून की वादियां तो सम्मोहित कर ही रही थी। रह रह कर गंगा की लहरे भी मुझे पुकारती मेरा तन-मन भिजोने को आतूर सी लगी। शायद उस पावन-पवित्र लहरो की दिव्यता मुझे सम्मोहन के बाहुपाश में जकड़ रही थी।
एक महीने में अपने को व्यवस्थित कर उस दिन सवेरे ही हरिद्वार को निकल गयी। पावन नगरी हरिद्वार यानि हरि का द्वार(मोक्ष का द्वार)। बताती चलुं कि १२ वर्षा के अंतराल में होने वाले कुभं का एक भाग हरिद्वार भी है।तभी इसका एक नाम कुभं नगरी भी पड़ा।
'हर की पौड़ी' पर शीतल,पावन बयार मेरा तन-मन भिगोने लगी। मैं देर तक गंगा के तट पर बैठी रही।और महसूस होता रहा कि गंगा के पवित्र-पावन पानी के साथ मैं भी बही जा रही हूँ।
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार हरिद्वार यानि हरि का द्वार(मोक्ष का द्वार)। जहाँ गंगा माँ कष्टो को हरने वाली,पापनाशिनी, जीवनदायी रुप में जानी जाती है। और लोग हर की पौड़ी यानि गंगा के तट पर आगाध श्रृद्धा और विश्वास लिये आते है।
सुबह-शाम यहाँ माँ गंगा की भव्य आरती होती है। खासकर शाम की आरती की भव्यता मुझे निःशब्द करते गये। अनुपम दृश्य। मंत्रोच्चारण कर उपस्थित देवी-देवताओं को भव्य नमन। इसके बाद दीपदान। रात में गंगा के पानी में दूर तक तैरते ये दीप ऐसे लग रहे थे मानो आसमान ने सितारो जड़ी चादर ओढ़ रखी हो।
मुझे "हर की पौड़ी"के किनारे स्थित "बह्म कुडं" के ऐतिहासिक पहलू के विषय में रोचक तथ्य जानने को मिले। जिस स्थान को बह्म कुडं कहा जाता था,दरअसल वो एक छत्री स्थान है।जहाँ अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक राजा मानसिंह की अस्थियाँ लाई गई थी। और ये स्थान वास्तव में उनका समाधि स्थल ही था जिसे छत्री कहा गया। विवादो में घिरे रहने की वजह से अब पूर्णतः उपेक्षित रह गया।
हर की पौड़ी के दर्शन तो भव्य हुये ही,साथ में तट के किनारे बसे बाजार की रौनक भी अद्धभुत थी। तरह-तरह के नगो, मालाओं, सिंदूर, पूजन साम्रगी से बाजार अटा था। यहाँ लगातार जगह-जगह लंगर होते हैं।कहा भी जाता है कि इस पावन गंगा नगरी में जो भी आता है, कभी भूखा नहीं सोता है।
अब गंगा माँ की आरती की दो लाइन से अपनी हरिद्वार यात्रा की इति करती हूँ।
चंद्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी,वो नर तर जाता। जय गंगा मैया
