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Bhawna Kukreti Pandey

Children Stories

4  

Bhawna Kukreti Pandey

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घर की खुशी

घर की खुशी

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जिन दीदी के घर मे मैं काम मे लगी हूँ वो काफी दिनो से बीमार हैं। बिस्तर पर पड़े-पड़े भी वो बोर नहीं होतीं, कुछ-कुछ लिखती रहती हैं। वो मुझसे क्या किसी से भी ज्यादा नही बोलती । कालोनी वाले उनसे ज्यादा उनकी सास "अम्मा जी " को जानते हैं। बिना बात किये कैसे रह लेती हैं समझ नही आता । मुझ से भी ज्यादातर उनकी सास जी ही बातचीत करती हैं। जब दीदी जी ठीक थीं तो एक बार काम बता-समझा कर कर एक कोने मे हो जाती थीं ,कभी-कभी कुछ कमी होती तो आकर धीरे से बताती थीं, मगर अम्मा जी रोज मेरे साथ-साथ काम मे लग जाती हैं, उनके अनुसार सब करना होता है , बहुत महीन तरीके से काम कराती हैं , रोज ही सारा दम निचोड़ लेती हैं। पता नही दीदी जी कैसे नौकरी और घर दोनो संभालती होंगी पर उन्ही की सास जी की वजह से ये काम भी मिला है ।


भैया, बाहर रहते हैं ।हफ्ते या महिने मे कभी कभी आते हैं। बहुत हसमुख और सुन्दर हैं।जब भी घर मे आते है घर एक दम से चहकने लगता है। दीदी भी गुलाबी सी हो जाती हैं ,बेटा खूब लाड करता है और अम्मा जी निहाल हुई रह्ती हैं।घर मे सब कहते हैं काम को लेकर बहुत जुनूनी हैं। आधी रात भी कोई खबर आये तो तुरंत अपनी टीम के साथ लग जाते हैं।दीदी बड़े दिनो से बिस्तर पर हैं, कुछ तकलीफ है, उनको चलने फिरने मे ।इसलिये उनकी की बीमारी पर मुझे कह के गये हैं " ध्यान रखना इनका। अपने लिये बहुत लापरवाह हैं मैडम जी "।


उनका जो बेटा है, थोड़ा संकोची है।पर आज कल दादी जी साथ रह कर कुछ खुल गया है।कभी-कभी दादी जी से उलझ पडता है।दादी धार्मिक,अनुशासन प्रिय और सफाई पसंद हैं और उसे बार-बार समझाती रह्ती हैं। चिढ़ जाता है, क्यूँकी इकलौता लाड दुलार से पला है, मगर दीदी की वजह से कुछ कहता नही। दीदी ने उसे यही सिखाया है कि " हमारे अपने बड़े कभी गलत नही होते, उनका तरीका अखर सकता है मगर उनकी बात मे भलाई ही होती है। " पर बच्चे तो बच्चे होते हैं ।


पिछले दिनो स्कूल मे छुट्टियाँ पड गईं , दीदी बिस्तर पर ही थीं। उस दिन दादी और पोते मे झड़प हो गई।दादी जी उसे कॉलोनी के बच्चों के साथ खेलने नही दे रहीं थी। बच्चे बार-बार खाली प्लॉट मे जा खेल रहे थे जहाँ थोड़ा कचरा बिखरा था। दादी जी ने उसे और सब बच्चों को डांट कर भगा दिया। बच्चों को ये नागवार गुजरा और दीदी के बेटे को भर दिया " तेरी दादी का रोज का है, उनको क्या ? हम जहां भी खेले। और तू मत आया कर हमारे साथ खेलने, बेकार हमारी बेज्जती होती है।" दादी जी ने उसे बालकनी से उन बच्चों के साथ खड़े हो बात करते देखा तो उसे फिर लताड़ा और घर बुलाया।उस दिन दादी-पोते के बीच झड़प होनी पक्की थी।


दीदी अपने कमरे मे थीं, दादी जी ने कमरे के बाहर से कहा " ये सब माँ की ढील का नतीजा है । कह्ना नही मानता किसी का, बड़ों की बात का कोई मान नही है, कोई संस्कार नहीं सिखाया, बस नौकरी की मस्ती में रहे सब।" दीदी शांत पड़ी रही। बेटा दन्दनाता आया ।और आते ही हाथ पैर धोने बाथरूम मे घुस गया और जोर से दरवाजा बन्द किया।दादी जी और गुस्से मे आ गई । " गुस्सा दिखा रहा है हमको, तुम देख रही हो न कैसे पटका है दरवाजा।" दीदी कुछ बोली नहीं। दादी जी का गुस्सा सातवें आसमां पर था " हां ! तुम दो बढावा, हमको क्या । चार दिन और रहेंगे जिंदा, तुम ही झेलोगी।", पोता बाहर निकल आया और मां के पास जा कर बोला,

" मां, दादी जी को बोलो थोडा कम बोला करे ।सारा दिन मेरे पीछे पड़ी रह्ती हैं। मेरे दोस्त भी अब मुझसे कटने लगे हैं।"

" ओके, पर ऐसे दरवाजा पटकना बहुत गलत है"

"यार...मां ", दीदी ने सख्ती से कहा तो दादी का पोता कसमसा गया।


"जाओ, तुम आंटी जी से दूध बनवा कर पीलो पहले।"

" नही आंटी जी से नहीं, दादी जी से कहता हूं वो मेरे मन मुताबिक बनाती हैं, लेकिन... "

" लेकिन क्या..?"

"..वो नाराज हैं ।"

"क्यों ? "

"अरे आपको कुछ नहीं पता , आप तो आफिस में रहते हो, दिन भर मै झेलता हूँ उनको "


पोते की आवाज़ में कडवाहट आ गई थी।मैने सब्जी काटते हुए बाहर से देखा, दीदी ने बेटे का हाथ थाम लिया था। उसका चेहरा रुआंसा हो गया।

"झेलना?!, मैं जब टोकती हूँ तो क्या तुम मेरे लिए भी ऐसा ही सोचते हो?।"

" सौरी.. माँ पर आप तो समझाते भी हो न, पर दादी जी तो नान स्टाप, किसी के भी सामने शूरू हो जाती हैं, मेरी भी तो कोई इज्जत है।"

" तुम सुनोगे ,अमल करोगे तो वो क्यूँ बोलेंगी। "

" हां आप भी उनका ही साइड लो।"

" मै साइड नहीं ले रही तुम्हे रास्ता बता रही हूँ।" "कैसा रास्ता?"

" पहले जाओ, दादी जी को सोरी बोलो।"

" नहीं, मैं नहीं बोलूंगा, गलती उनकी है कि मेरी" " गलती किसकी है ये निकालना ज्यादा जरूरी है या दादी जी?"

दीदी ने थोडा सख्त होते कहा फिर नरमाई से बोलीं

" बेटा, दादा-दादी किस्मत वालों को मिलते हैं। दादी जी हम सब में सबसे ज्यादा प्यार तुमसे करती हैं, फिक्र करती है। "

" झूठ, आप बना रहे हो।",

" भोला, आओ दूध पी लो ।" अम्मा जी ने पोते के लिए दूध तैयार कर दिया था।


दीदी ने दादी के भोले को मुस्कराहट के साथ देखा।

"देखा दादी जी का प्यार! "

"अच्छा ठीक है कहता हूँ सौरी।पर आप बोल देना दोस्तों के सामने कुछ नहीं कहेंगी ।"

" यार... दोस्तों को समझा दो भोलेनाथ कि गन्दगी में खेलेंगे तो जो देखेगा डाटेगा। मेरी दादी जी ने पहले देखा तो टोका, बस।"

" ओके-ओके ठीक है। "

" भोला, ओ भोला ....नाराज हो..?! दूध नहीं पियोगे ...?", दादी जी ने फिर आवाज लगाई।

" आया दादी जी" ।


कुछ देर बाद दादी-पोता साथ बैठकर भैया से वीडियो काॅल पर थे। दीदी अपने कमरे में बिस्तर पर थीं। मैने उनको हाॅट वाटर बोटल दी। उन्होंने अपनी कमर पर रख ली। दादी और पोता अब भी दीदी की शिकायत में लगे थे।

"हमारी हर बात पर चुप लगा जाती है। कुछ बोलती नहीं। "

"पापा ,पापा माँ बस मुझे समझाती रहतीं हैं, दादी को कुछ नही कहतीं।"

" काहे कहेगी हमको, तुम्हारी तरह नहीं है जो बहस करे बडो के सामने । "

"अरे!!!! मैने कब बहस की ?!, देखा पापा , देखा?!"

दूसरी तरफ भैया लगातार हंसें जा रहे थे।


" तू भी उसी की तरह है ,हर बात को हंसी में उड़ा देता है।" मैं दीदी की कमर पर मालिश कर रही थी। दीदी के कमरे में सब साफ सुनाई दे रहा था। मैने देखा दीदी सुनकर मुस्करा रही थी।

" अच्छा बेटा ,अबकी तुमको हाॅस्टल में डाल देता हूँ। "

" काहे हाॅस्टल में डालोगे भोला को, हमारा भोला हमारे साथ ही रहेगा, है न भोला? "

" पापा मै नहीं जाऊँगा। मै दादी जी और माँ के साथ ठीक हूँ। "

"सोच लो दोनो, शिकायत तुम दोनो को है एक दूसरे से।"

"वो तो हमारा चलता रहता है, है न दादी जी?!"

" हां, हां तुम अपने काम पर ध्यान दो।"

"ओके, भोलेनाथ की दादी जी आपकी वो चुप्पी मैडम कहाँ हैं, बात करा दो। "

" अभी अपने काम में ध्यान दो, लोग शिकायत करेंगे कि ऑफिस हावर मे लम्बा-लम्बा बतियाता है, रात को कमरे में पहुंच कर ढेर बतियाता लेना। अभी क्या बात करोगे, रखो।,"

"ओके ,प्रणाम।"

"खुश रहो"।


मुझे ये ठीक नहीं लगा,

" अम्मा जी भी न!" मैने जैसे कहा दीदी ने टोक दिया।

" क्या अम्मा जी?! कितने दिन हुए तुम्हे उन्हें जानते?"

" दीदी हम तो जो सुन-देख रहे, कह रहे।"

" ठीक है ,पर तुम्हारी नजर मे जो है वो तुम्हारी सोच से गलत होगा, लेकिन मुझे ध्यान रहता है कि वो इस परिवार की मुखिया हैं, हमेशा भला सोचेगी। आगे से इस घर में कुछ भी कहने से पहले सोचना , बेटू सुनेगा तो उस पर असर पडेगा।"

दीदी की बात में डांट भी थी और चिंता भी।मेरा मुँह बनता देख वो बोली

" बुरा मान गई क्या?"

" नहीं दीदी "

" तुम खुद को ,दादी जी की जगह रख कर देखो ,खुद समझ जाओगी।"

" आपको सच में कुछ बुरा नहीं लगता? आपको, बाबू को दिन भर कितना कहती रहती है ।"

दीदी शान्त थीं बोलीं " तुमको समझ नहीं आई न बात?! "

" समझना क्या है दीदी , हमसे तो ऐसा बर्दाश्त नही होगा।"

" सुन तेरी समझ को कहती हूँ। मैं बच्चो को तो समझा सकती हूँ , खुद को भी ढाल सकती हूँ , पर बड़ों को पलट कर कहना ठीक नहीं लगता मुझे, अभी उनके जितनी दुनिया नही देखी मैने । बाकी मुझे, मेरे अहम से ज्यादा इस घर की खुशी जरुरी लगती है।"


रात हो गयी थी , मेरे पति देव ने फोन करके कहा" आज वहीँ रूक जाओ, मैं सुबह पहुचुगा। " ये , ट्रैवल एजेंसी में काम करते हैं। दीदी भी बोली रूक जाओ कोई दिक्कत नहीं है। अम्मा जी भी राजी थी।


रात में दादी ने पोते को अपने साथ सुला लिया।मैं दीदी के पास फोल्डिंग बैड पर सोने की तैयारी कर रही थी। अम्मा जी ने आवाज लगाई " धानी,ओ धानी ,जरा पैर दाब दो हमारा बिटिया।" मैं अम्मा के पास आई,अम्मा मुझे फोन दे कर बोलीं " दीदी को दे आ, भैया का नम्बर लगाये हैं, जा जल्दी जा और आ।"

दीदी-भैया बात कर रहे थे। अम्मा बोली "दरवाजा भेड दो, आराम से बतिया लेगी।", मैंने उठ कर दरवाजा बंद कर दिया, और अम्मा के पैर दबाने लगी।नींद में जाते-जाते अम्मा बोलीं, " धानी.....तुम अच्छा कस के दबाती हो पर.. भोला की मां के हाथ मे दुलार होता है .. उसके हाथ की बात ही कुछ और है। " मेरे सामने अब अम्मा का दुसरा ही स्वरूप आ रहा था , दीदी शायद इसिलिए शाम को मुझे समझा रहीं थीं।अम्मा बुदबुदा रहीं थीं , " बेचारी बडे कष्ट में है.. हमारे हाथ मे भी तो नहीं कुछ.. अब बस जल्दी ठीक कर दे भगवान उसको..।"

अम्मा जी सो गईं, दीदी भी भैया से बात करके सो गईं। पूरे घर मे दीदी के कमरे से आती गुलाब की भीनी खुशबू फैल कर घर के माहौल को बेहद शान्त और सुकून भरा बना रही थी।


अमूमन मुझे दूसरों के घर जल्दी नींद नही आती मगर अम्मा के घर में उस रात बड़ी गहरी नींद आई।



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