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Vimla Jain

Others

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एक इकलौते बच्चे की व्यथा

एक इकलौते बच्चे की व्यथा

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मैं सनी मेरे मां बाप का इकलौता पुत्र। जिस पर मेरे मां-बाप को नाज है। मगर उन्होंने कभी अपने बेटे से यह नहीं पूछा बच्चे तो तेरे को क्या तकलीफ है । आज मैं आपको मेरी आपबीती सुनाता हूं।


मुझे लगता है मेरे जैसे इकलौते बच्चों की आपबीती भी कुछ इसी तरह की होगी।

किसी की शायद थोड़ी अच्छी हो सकती है। जन्म से चालू करता हूं मेरे मां-बाप दोनों बहुत हाई प्रोफाइल जॉब में हैं। उन्होंने यह तय करा कि हमको बच्चा नहीं चाहिए।

मगर मेरे को तो संसार में आना ही था तो मैं संसार में आ गया। दोनों में से कोई भी मेरी जवाबदारी लेने तैयार नहीं थे। एक मेड रखी गई जो फुल टाइम मैड थी। उसी के भरोसे मेरा पालन पोषण हो रहा था। छोटा था तो पता नहीं, वह क्या करती थी। मगर थोड़ा बड़ा हुआ तो मैंने देखा मेरा दूध मेरा नाश्ता वह सब खा जाती थी और थोड़ा सा मेरे को देती थी।

और मेरे मां बाप के आने पर बहुत शिकायतें लगाती थी। और मेरी मेरे मां बाप एक नहीं सुनते थे। ऐसे करते-करते बहुत समय बीत गया ।

मेरे को वे कहीं भी अपने साथ नहीं ले जाते जैसे मैं उन पर बोझ हूं। और दोनों पूरे टाइम अपनी मस्ती में रहते। और मैं पूरे टाइम मेड के साथ बहुत कुंठित सा। मां बाप बहुत सारे खिलौने लाते कोई चीज की कमी नहीं रहने देते। मगर मुझे तो मेरे मां और पिता चाहिए थे जो मेरे पास नहीं थे। ऐसे करके मैं बड़ा हुआ कुंठित सा अपने आप में सिमटा हुआ किताबों में घुसा हुआ सनी। जिसको दीन दुनिया से कोई मतलब ही नहीं। स्कूल वाले बच्चों से भी बात नहीं करता। बस अपनी पढ़ाई और अपनी धुन में रहता हमेशा।

मन में एक ही बात यह थी कि मेरे मां-बाप मेरे पास हैं तो जो कभी मिलते ही नहीं। मुझे समझ में नहीं आता है ऐसा क्यों? फिर एक दिन उन लोगों में झगड़ा चालू हो गया झगड़े झगड़े में जब मेरा नाम आया तो मैं चौंका कमरे के बाहर दरवाजे पर कान रखकर सुन रहा था। उन लोगों को मैं बोझ लगने लगा हूं। और मैं अनवांटेड हूं। और भी बहुत सी बातें सुनी।

मेरा मन बहुत उदास हो गया । मगर मेरे सवाल का जवाब मुझे मिल गया। उस समय मैं करीब 10 साल का रहा हूंगा। मैंने मेरे मां बाप से बात करना बंद कर दिया और मेड को ही अपनी मां-बाप सब समझने लगा। ऐसे में एक दिन वह मेड थोड़ी मुझसे नाराज हुई, और उसने मेरी मां को जाकर के गुस्से में बहुत कुछ कह दिया, कि तुम्हारा बच्चा तो तुमको मां समझता ही नहीं है वह तो मुझे ही मां समझता है। और इतना प्यार भी करता है। अब अगर आपको मेरे को रखना है तो इस घर के अंदर एक कमरा दे दो। इसमें मैं अपने परिवार के साथ में आकर रह सकूं। उसकी मां एकदम चौंक जाती है और मां को गलती का एहसास हुआ। अब वह मेरे पास आकर प्यार से बोलने लगी।

मगर मेरा मन इतना छलनी था कि मुझे उनके प्यार में भी स्वार्थ नजर आने लगा। और धीरे-धीरे मैं मां-बाप के प्यार को तरसता हुआ उनसे दूर होता गया। दसवीं क्लास में मैंने उसी शहर में पढ़ने की जगह हॉस्टल में पढ़ना ज्यादा पसंद करा । अब मैं हॉस्टल में पढ़ाई कर रहा हूं तो उनके सपने मेरे ऊपर दबाव डाल रहे हैं। एक मन तो कहता है कि मैं उनसे कह दूं कि मैं उनके सपनों को पूरा नहीं करूंगा, मगर दूसरा मन कहता है कि कुछ भी हो है तो मेरे मां-बाप । भले उन्होंने अपनी परेशानी में मुझे मैड के हवाले करा।

मगर मेरे हॉस्टल पर जाने के फैसले पर भी रोए भी बहुत थे। और मेरा खर्चा भी वही उठा रहे हैं।

मैं यहां यह कहावत सार्थक करता हूं मां-बाप भले मेरे नहीं हुए मगर पुत्र कुपुत्र नहीं होगा ।

और मैं उनकी सेवा करूंगा और उनका ध्यान रखूंगा। समीक्षा देकर बताइएगा क्या मैं सही कर रहा हूं?


काल्पनिक कहानी



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