दो बहनें
दो बहनें
नैना और सुनैना दो बहनें थीं। नैना आंखों से दिव्यांग थीं। बसंत ऋतु का मौसम था। नैना और सुनैना दोनों छुट्टी के बाद वापस घर को लौट रही थीं। कुहू-कुहू की मधुर आवाज सुनकर नैना ने कहा- " दी, ये चिड़िया कितना अच्छा गाती है ना! जितनी अच्छी इसकी आवाज है उतनी ही अच्छी यह दिखने की भी होगी ना ?
सुनैना ने कहा- "बैनी, ये कोयल है। गाती मीठा है, लेकिन दिखने में काली होती है।"
"अच्छा ! मैं दिखने में कैसी हूँ ?" नैना ने पूछा।
" तुम सुंदर हो।"
"नहीं। तुम झूठ बोल रही हो। पिताजी तो हमसे नाराज रहते हैं। कहते हैं अंधी, काली-कलूटी...।"
"पिताजी दुखी रहते हैं क्योंकि उनका कोई बेटा नहीं है ना !"
"अच्छा, क्या मैं उनका बेटा नहीं बन सकती ?"
"पागल ! तुम कैसे बनोगी ? तुम तो लड़की हो ।"
"लड़के क्या करते हैं ?"
" पैसा कमाते हैं।"
" मैं भी बड़ी होकर पैसे कमाऊंगी।"
"तुम कैसे पैसे कमाओगी ? तुम तो देख नहीं सकती।"
"हाँ मैं देख नहीं सकती, लेकिन मैं मेहनत करूंगी। पढ़ूगी-लिखूंगी और वो सब करूंगी जो एक बेटा अपने मम्मी-पापा के लिए करता है। मैं बोझ नहीं बनूंगी किसी पर।"
"अच्छा !"
"हाँ। और तू मेरी मदद करेगी ना ?"
"हाँ, जरूर करूंगी।"
यूँ ही बातचीत करते-करते दोनों बहनें अपने घर की ओर चल दीं।