दिल की आवाज

दिल की आवाज

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"किस्मत वाली है हमारी रजनी। पूरी बिरादरी में इतना पढ़ा लिखा परिवार , इतना अच्छा खानदान दो दो बेटे । सबसे बड़ी बात राजेंद्र हर बात मानता है इसकी और पैसों की कोई कमी ही नहीं है। दोनों कमाते हैं भई।"

"सही कह रहे हो जी। रजनी एक बार जो मुंह से कह दे तो मजाल है, हमारे जमाई राजा उसे पूरा ना करें। कभी ऊंची आवाज में इससे बात करते नहीं सुना हमने उन्हें इतने सालों में। कभी रजनी ने अपने ससुराल वालों की बुराई नहीं की अपने मुंह से।"

" अरे कुछ कमी हो तो करे ना और छोटे मोटे झगड़े तो घर गृहस्थी में लगे रहते हैं। दिल के तो इतने अच्छे हैं कि हर वक्त हमारी मदद को तैयार खड़े रहते हैं।"

अपने माता-पिता की ये बातें रजनी के सीने में नश्तर की तरह चुभ रही थी। उन्हें इतने सालों से अपने जमाई की अच्छाइयां दिख रही थी। अपनी बेटी की आंखों में झलकता दुख नहीं या अपने स्वार्थवश उसे अनदेखा कर रहे थे। कितनी बार उसने बताने की कोशिश की लेकिन हर बार बस एक ही जवाब "आदमी है! अगर थोड़ा बहुत कह भी दिया तो क्या! पढ़ लिख गई हो इसका मतलब यह नहीं कि तुम उसकी बराबरी करो। अपनी हद में रहना सीखो। औरत हो तुम। एक चुप से दोनों घरों की इज्जत बनी रहेगी।"

बार-बार ऐसी बातें सुन, उसने चुप्पी साध ली और दुनिया को दिखाने के लिए अपने चेहरे पर खुशी का झूठा नकाब ओढ़ लिया। लेकिन आज भी उसका अंतर्मन चीख चीखकर बस यही सवाल करता है कि 'कोई है जो उसके दिल की आवाज को सुनेगा या समझेगा' और कहीं से कोई जवाब ना पा ये शोर ,मौन में परिवर्तित हो जाता है।



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