दाल-पकवान

दाल-पकवान

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वैसे मुझे लगभग हर प्रकार का भोजन पसंद है पर मेरी भाभी ( माँ ) के हाथ के बने दाल-पकवान बहुत ही पसंद है। मेरी भाभी दाल-पकवान बहुत अच्छे बनाती है। हम बहनें जब छुट्टियों में घर आती तब दो-तीन बार तो भाभी से ज़रूर है बनवाती, हमारे शहर बाड़मेर में देसी घी की जलेबी और दाल-पकवान नाश्ते के रूप में बहुत प्रचलित है और उससे भी अधिक प्रसिद्ध है - ' दल्लूजी की कचौरी ' इतनी प्रसिद्ध है कि ' दल्लूजी की कचौरी ' बनाम बाड़मेर। लेकिन मैं दाल-पकवान की कुछ ज्यादा ही रसिया हूं।

भाभी ने दो कनस्तर भरके पकवान बनाए थे कि कल भी शौक पूरा कर लेंगे सो दाल बना देंगे, लेकिन हुआ क्या? अरे भाई , कुछ न पूछो, अरे यार, हम पांच बहन-भाईयों ने दोनों कनस्तर चट कर दिए और भाभी को बाकी सबके लिए दोबारा बनाने पड़े, हम पांचों को डांटती गई और बनाती गई। सच में दाल-पकवान खाने का इतना मज़ा तो कभी नहीं आया था जितना कि आज। 

अजी जनाब, स्वाद-स्वाद में खा तो लिए थे लेकिन अब कमबख्त पेट दुश्मन बन गया था, सांस ही नहीं लेने दे रहा था। ऊपर से काकाजी (पिताजी) और चिढ़ाते - बेटा, एक पकवान तो और खा लो और फिर वो ठहाका मारते कि सबको हँसी आ जाती...आती तो हमें भी लेकिन खिसियानी-सी ! सच में वो पकवान-प्रसंग तो बड़ा कमाल का है। आज भी आँखों के आगे जस का तस घूम रहा है... साथ ही पकवान बनाती हुई मेरी भाभी। इतने में पकवान जैसे कहीं से आकर मुंह चिढ़ाने लगते हैं - और करो हमारा शिकार...बस जी, खुद-ब-खुद होंठ मुस्कराने लगते हैं, दिल खिलखिलाने लगता है।

                     


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