दादी का गिफ्ट

दादी का गिफ्ट

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मेरी एक दादी थी और वह मुझसे बेहद प्यार करती थी.

हर महीने वह हमारे यहाँ आती और हमें खिलौने देती. ऊपर से पेस्ट्रियों की एक पूरी टोकरी भी लाती.

सारी पेस्ट्रियों में से वह मुझे अपनी पसन्द की पेस्ट्री चुनने देती.

मगर मेरी बड़ी बहन ल्योल्या को दादी उतना प्यार नहीं करती थी. उसे अपनी पसन्द की पेस्ट्री भी नहीं चुनने देती. वह ख़ुद ही उसे, जो हाथ आती, वह दे देती.

इस वजह से मेरी बहन ल्योल्या सारा गुस्सा मुझ पर उतारती, हाँ दादी से वह कुछ न कहती.

एक बार गर्मियों में दादी हमारे पास समर-कॉटेज में आई. दिन बेहद ख़ूबसूरत थ, दादी समर कॉटेज में आई और बाग से होकर घर में आने लगी. उसके एक हाथ में पेस्ट्रियों की टोकरी और दूसरे हाथ में - पर्स था.

मैं और ल्योल्या दादी के पास भागे और उसे नमस्ते किया. हमने बड़े अफ़सोस के साथ देखा कि इस बार दादी हमारे लिए पेस्ट्रियों के अलावा और कुछ नहीं लाई है.

तब मेरी बहन ल्योल्या ने दादी स, क्या सचमुच तुम पेस्ट्रियों के अलावा हमारे कुछ भी नहीं लाई हो?”

मेरी दादी को ल्योल्या पर गुस्सा आ गया और उसने उसे जवाब दिया :

“लाई हूँ. मगर बुरी लड़की को नहीं दूँगी,जो इतनी बेशर्मी से उसके बारे में पूछती है. गिफ्ट तो अच्छे बच्चे मीन्का को मिलेगा. जो अपनी समझ-बूझ वाली ख़ामोशी की वजह से दुनिया में सबसे अच्छा है.”

इतना कहकर दादी ने मुझे हाथ खोलने के लिए कहा.

और उसने मेरी हथेली पर दस-दस कोपेक के नये-नये सिक्के रख दिए.

मैं बेवकूफ़ की तरह खड़ा-खड़ा नये सिक्कों की ओर देखता रहा, जो मेरी हथेली पर पड़े थे. और ल्योल्या भी इन सिक्कों की ओर देख रही थी. वह कुछ भी नहीं कह रही थी. सिर्फ उसकी आँखों से दुष्टता झाँक रही थी.

दादी ने मेरा लाड़ किया और चाय पीने चली गई. और तब ल्योल्या ने मेरे हाथ पर ज़ोर से नीचे से ऊपर को मारा जिससे सारे सिक्के हथेली से उछलकर घास में और गड्ढों में गिर गए. मैं ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा, जिससे सब बड़े लोग भाग कर बाहर आ गए – पापा,मम्मा और दादी. सब लोग फ़ौरन झुककर मेरे गिरे हुए सिक्के ढूँढ़ने लगे.

जब एक को छोड़कर बाकी सारे सिक्के , तो दादी ने कहा :

“देखा, मैंने ठीक किया न, जो ल्योल्का को एक भी सिक्का नहीं दिया! देखो कैसी जलकुक्कड़ है ये : सोचती हैकि अगर मुझे नहीं, तो उसे भी नहीं मिलना चाहिए! ये चुडैल है कहाँ इस वक्त?”

डाँट से बचने के लिए ल्योल्या एक पेड़ पर चढ़ गई थी और वहाँ बैठे-बैठे मुझे और दादी को ज़ुबान चिढ़ा रही थी.

पड़ोस के बच्चे पाव्लिक ने ल्योल्या को पेड़ से उतारने के लिए उस पर गुलेल चलाना चाहा. मगर दादी ने उसे ऐसा करने की इजाज़त नहीं दी, क्योंकि ल्योल्या नीचे गिर सकती थी और उसका पैर टूट सकता था. दादी को ऐसा ख़तरनाक काम नहीं करना था और वह बच्चे से उसकी गुलेल भी छीनने लगी. तब बच्चे को सभी पर गुस्सा आ गया और दादी पर भी. और उसने दूर से उस पर गुलेल चला दी. दादीआह-आह” करते हुए बोली :

“आपको ये सब कैसा लग रहा है? इस चुडैल की वजह से मुझ पर गुलेल चलाई गई. नहीं, मैं अब दुबारा तुम्हारे यहाँ नहीं आऊँगी, जिससे इस तरह के नाटक न हों. बेहतर है, कि आप मेरे पास मेरे अच्छे बच्चे मीन्का को लाएँ. और हर बार ल्योल्का को चिढ़ाने के लिए मैं उसे गिफ्ट्स देती रहूँगी.”

पापा ने कहा :

“अच्छी बात. मैं ऐसा ही करूँगा. मगर मम्मा आप ना बेकार ही मीन्का की तारीफ़ कर रही हैं! बेशक,ल्योल्या ने अच्छा बर्ताव नहीं किया. मगर मीन्का भी दुनिया भर के सबसे अच्छे बच्चों में से नहीं है. दुनिया में अच्छा बच्चा वो ही होगा, जो ये देखकर, कि बहन के पास कुछ नहीं है, उसे भी कुछ सिक्के देता. इससे वह अपनी बहन को गुस्सा नहीं दिलाता और ना ही उसे जलन होती.

अपने पेड़ पर बैठी हुई ल्योल्या ने कहा :

“और दुनिया की सबसे अच्छी दादी वो है, जो सभी बच्चों को कुछ न कुछ देती है, न कि सिर्फ मीन्का को, जो अपनी बेवकूफ़ी या चालाकी की वजह से चुपचाप रहता है और इसीलिए उसे पेस्ट्रियाँ और गिफ्ट्स मिलते हैं.

दादी का और ज़्यादा बाग में रुकने का मन नहीं हुआ.

और सारे बड़े लोग चाय पीने के लिए बाल्कनी में चले गए.

तब मैंने ल्योल्या से कहा, "पेड़ से नीचे आ जा! मैं तुझे दो सिक्के दूँगा.”

ल्योल्या पेड़ से नीचे उतरी, और मैंने उसे दो सिक्के दिए. और अच्छे मूड में बाल्कनी में गया और बड़ों से बोला दादी ने ठीक कहा था. मैं दुनिया का सबसे अच्छा लड़का हूँ – मैंने अभी ल्योल्या को दो सिक्के दिए हैं.”

दादी जोश में चीख़ी. और मम्मा भी चीखी. मगर पापा नाक-भौंह चढ़ाकर बोले दुनिया का सबसे अच्छा बच्चा वो होता है, जो कोई अच्छा काम करता है, और फिर शेखी नहीं मारता.”

तब मैं भाग कर बाग में गया, अपनी बहन को ढूँढ़ा और उसे एक और सिक्का दिया. इस बारे में मैंने बड़ों को कुछ भी नहीं बताया.

इस तरह ल्योल्का के पास तीन सिक्के हो गए, और चौथा सिक्का उसे घास में मिल गया, जहाँ उसने मेरे हाथ पर मारा था.

इन चार सिक्कों से ल्योल्का ने आईस्क्रीम खरीदी. और दो घण्टे उसे खाती रही, जी भर के खाया, मगर फिर भी थोड़ी सी आईस्क्रीम बच ही गई.

शाम को उसके पेट में दर्द होने लगा, और ल्योल्का पूरे हफ़्ते बिस्तर में पड़ी रही.

बच्चों, तब से काफ़ी साल बीत गए.

मगर मुझे आज तक पापा के शब्द याद ह, शायद, मैं बहुत अच्छा नहीं बन पाया. ये बहुत मुश्किल है. मगर बच्चों मैं हमेशा कोशिश करता रहा.

ये भी अच्छी बात है.



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