बसंती की बसंत पंचमी- 22
बसंती की बसंत पंचमी- 22
कहानी कुछ इस तरह थी- बसंती एक काम वाली बाई है जो कई घरों में काम करती है। वह गरीब है इसलिए मेहनत में कोई कोताही नहीं करना चाहती।
मोहल्ले भर के अधिकांश घरों में वह काम करती है। वह बेहद फुर्तीली भी है जो काम से कभी थकती नहीं। आसपास की लगभग सभी गृहिणियां उस पर किसी न किसी रूप में अवलंबित हैं। वह उनके छोटे - मोटे कामों के लिए समायोजन करती हुई फिरकी की तरह मोहल्ले में नाचती है।
ये कहानी सुन कर सभी महिलाएं भीतर तक अभिभूत हो गईं। श्रीमती चंदू ने तो मन ही मन ये कल्पना भी कर डाली कि काश उन्हें भी ऐसी ही बाई मिले।
श्रीमती वीर का ध्यान तो यहां तक चला गया कि उन्हें फ़िल्म में कोई रोल मिले या न मिले, वो ये फ़िल्म देखेंगी ज़रूर और इतना ही नहीं बल्कि हो सका तो अपनी बाई को भी दिखाएंगी।
पर श्रीमती कुनकुनवाला की उम्मीदों पर तो कुठाराघात ही हो गया। हो न हो, फ़िल्म की नायिका तो ये बसंती ही होगी। अर्थात हीरोइन के रोल का मतलब है फ़िल्म में काम वाली बाई बनना।
चलो, फ़िल्म तो आख़िर फ़िल्म है, हीरोइन को स्क्रीन पर ही तो काम वाली बाई बनना पड़ेगा, पर इसकी तो शूटिंग में भी लगातार फटे - पुराने कपड़े पहन कर बर्तन ही घिसने पड़ेंगे कैमरे के सामने। हीरोइन वाले ग्लैमर की तो कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं।
हां, कभी किसी मालकिन के शहर से बाहर शादी - ब्याह में जाने पर अचानक मिली छुट्टी में डायरेक्टर किसी बाग़- बगीचे में कोई गाना - वाना फिल्मा ले तो बात अलग है।
अरे, श्रीमती कुनकुनवाला भी कल्पना में ही कहां से कहां पहुंच गईं। पहले कहानी तो पूरी हो। फ़िर नसीब अच्छा हुआ तो प्रोड्यूसर साहब सलेक्ट करें... अभी से कहां ज़मीन -आसमान के कुलाबे मिलाने लगीं?