भूत का ज़ुनून-13
भूत का ज़ुनून-13
इस बार कंपनी ने वेतन के साथ ही सालाना बोनस भी दे दिया। भटनागर जी की जेब भारी हो गई।
वैसे स्वामीजी के मशविरे के मुताबिक भटनागर जी को कुछ खरीदना नहीं था, केवल किसी महंगे से शोरूम में जाकर किसी बेशकीमती चीज़ का मोलभाव करके ही आना था।
चाहे हीरे का हार हो या फ़िर पन्ने का जड़ाऊ कंगन।
भाव- ताव करते समय भी ये ख़ास ध्यान रखना था कि उसका मोल इतना सा न बोल दें कि उतने में दुकानदार देने को तैयार ही हो जाए। और फिर जबरन मांगी गई चीज़ लेनी ही पड़ जाए। भटनागर जी को तो भाव- ताव करके बाहर निकल आना था। ताकि वो मायूस होकर रात को सपने में फ़िर उसी ज्वैलरी शॉप में पहुंच जाएं और फिर ख़्वाब में उसे ख़रीद लाएं तथा पत्नी को भेंट करें।
स्वामी जी का कहना था कि पत्नी यदि सचमुच किसी भूत - प्रेत की गिरफ्त में होगी तो उसे पता चल जाएगा कि उसके पतिदेव उसके लिए बेशकीमती तोहफ़ा खरीदने गए थे... बस, वो इतने भर से ही ख़ुश हो जाएगी और उसे उस वस्तु से मिलने वाली संतुष्टि वैसे ही प्राप्त हो जाएगी। हींग लगे न फिटकरी, और रंग चोखा आ जाएगा। भूत भी भाग जाएगा।
स्वामी जी ने भटनागर जी को ऐसी एक ज्वैलरी शॉप का पता भी बता दिया जहां से वो बेहतरीन सौदा देख सकते थे।
भटनागर जी ने एक ख़ूबसूरत से कंगन पसंद करके जब उनका मोल- भाव करना शुरू किया तो उनकी आशा के विपरीत दुकानदार उन्हें वो कंगन उनके मुंहमांगे दाम पर देने को तैयार हो गया। जबकि उन्होंने बताए गए दाम की लगभग एक चौथाई कीमत बोली थी।
अब अगर कोई सौदागर पचास हज़ार की चीज़ को पंद्रह हजार रुपए में देने को तैयार हो जाय तो मामला गड़बड़ ही था। या तो कंगन नकली थे या फिर दुकानदार चालाकी से अपना माल किश्तों में बेच रहा था। वह अभी पंद्रह हजार रुपए लेकर कंगन दे देता पर साथ ही ये रिक्वेस्ट करता कि शेष रकम भटनागर जी किश्तों में चुका दें।
कुछ भी हो, कंगन थे बड़े सुंदर। अब जब भटनागर जी ने अपने मुंह से उनका दाम पंद्रह हजार रुपए बोल ही दिया और दुकानदार इतने पर सहमत भी हो गया तो अब उन्हें ये लेने ही पड़ते।
भटनागर जी ने सोचा, चलो स्वामी जी की बताई हुई भूत भगाने की कोशिश अगली बार कर लेंगे, इस बार तो पत्नी को ये कंगन देकर सचमुच ख़ुश कर ही दें।
भटनागर जी पत्नी के लिए तोहफ़ा लेकर मन ही मन खुश होते हुए घर लौटे।
भटनागर जी जब घर लौटे तो पत्नी तमतमाई- ये क्या उठा लाए? पैसे ऐसे फ़ालतू में उड़ाने के लिए होते हैं क्या?
भटनागर जी की तमाम ख़ुशी काफूर हो गई। उन्होंने पत्नी को भरमाने की एक कोशिश और की। बोले- मैंने सोचा कि तुम्हारी कलाइयों पर ये कंगन बहुत सुंदर लगेंगे, इसलिए ले आया। पैसों का क्या है, ये तो आते- जाते ही रहते हैं।
- तुम्हारे बैंक अकाउंट से कुछ रुपए निकल गए थे, तुम्हें कुछ याद है? पत्नी ने कहा।
भटनागर जी बोले- याद क्यों नहीं होगा? पूरे पच्चीस हजार रूपए थे, कोई सौ- दो सौ नहीं।
- तो तुमने पता करने की कोशिश की, कि आखिर खाते से इतने पैसे कहां चले गए? पत्नी ने पूछा।
- तो क्या कुछ पता चला? भटनागर जी आशा भरी नज़रों से पत्नी को देखने लगे।
पत्नी दनदनाती हुई भीतर कमरे में गई और अलमारी में से एक छोटा सा ख़ूबसूरत डिब्बा निकाल कर ले आई। डिब्बे को खोल कर सामने रखते हुए बोली- ये देखो! ऑनलाइन ऑर्डर करके मैंने ये मंगवाए हैं।
भटनागर जी जैसे आसमान से गिरे, बोले - ओह, ये तो सेम टू सेम वही हैं, जैसे मैं लाया हूं। कितने के हैं?
- कुल नौ हज़ार के! पत्नी ने विजयी मुस्कान के साथ कहा।
नीचे मुंह करके खाना खाते हुए भटनागर जी सोच रहे थे कि देखें अब आज उन्हें सपने में क्या दिखाई देता है!
( क्रमशः)
