भोज
भोज
आज से ठीक चार दिनों बाद पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण कथा व भोज का आयोजन करने का निर्णय लेकर सुनीता तैयारियों में जुट गई ।
सब को न्योता भिजवा दिया गया अपनी कामवाली महादेवी को भी सुनीता ने भोज में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया ।
पूर्णिमा के दिन सुनीता ने महादेवी को सबके साथ बैठकर भोजन करने के लिए कहा और सुनीता ने ही सबको परोसा ।
भोज के अंत में बहुत बर्तन देख महादेवी पूछने लगी "क्या मैं बर्तन धो लूं ? इस पर सुनीता ने कहा, "आज तुम्हें छुट्टी है, कल काम के लिए आना।" यह सुन महादेवी की आंखों में आंसू आ गए और कहने लगी "दीदी मुझे लगा था कि, आज काम ज्यादा होगा इसलिए आपने मुझे भोज में शामिल होने के लिए कहा होगा। लेकिन आज आपने मुझे जो सम्मान दिया है उसे मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी।"