भोग

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पूस का महीना ,ठंड की मार ,तिस पर रात भर पानी पानी बरसता रहा।सुबह घना कोहरा ।पूरा घर रजाई मे दुबका पड़ा।दरवाजे की घंटी बजी।दरवाजा सतीश ने खोला।"कौन है"मैने बिस्तर पर से ही सतीश से पूछा ।जवाब मिला---" रम्या है" इस ठंड मे जब अधिकांश काम वाली बाइयाँ बहाना बना छुट्टी किये है,रम्या शाल मे दुबकी हुई सामने आकर खड़ी हो गई । शाल को एक तरफ रख काम पर लग गई ।किचिन साफ कर ,सबके लिये अदरक की कड़क चाय और गरम गरम पराठे सेंक कर सबको नाश्ता कराया।फिर मुझ्से पूछा --"आँटी खाना क्या बनेगा।" "बेटा तुमने सबको नाश्ता करा दिया,अब जा तुझे और जगह भी जाना होगा काम पर ।मै धीरे धीरे कर लूंगी।" "मै इतनी जल्दी इसीलिये तो आई।आप बुखार मे काम करोगे? बता दो मेरे को,नई तो जो मेरे समझ आयेगा मै पका दूँगी" उसकी ज़िद से हार कर मैने उसे क्या पकाना है बता दिया। सारा काम निपटा कर वो , सरसो का तेल एक कटोरी मे गरम कर ,ले के मेरे पास आई"आँटी जी,बुखार अभी भी हैआपको?लाओ मै आपके पैरो मे तेल मल देती हूं " मेरे तमाम इन्कार के बावजूद वो मेरे पैरो मे तेल मलती रही। सतीश मेरे पति ,अस्थमा के मरीज,ठंड मे उन्हे अधिक परेशानी होती है,बिटिया बी कॉम फाइनल मे।बेटा इन्जीनियरिंग मे।घर के काम मे मेरी सहयोगी एकमात्र रम्या। करीब चौबीस पच्चीस साल की दो छोटे बच्चो की माँ ।झाडू कट्का,बरतन,सब्जी काट छांट करना ये काम बड़ी मुस्तैदी से करती ।अब चाहे आप उसे मेरी सहयोगी समझे,या कामवाली बाई ,या मेरी सहेली।हंसमुख,अपनी सास की हमेशा तारीफ करती,बताती "मेरे बच्चे तो अपनी दादी के पास ही रहते।वो उनको बहुत प्यार करती।तभी मै बाहर काम कर पाती" ।पति किसी गाड़ी मे क्लीनर का काम करता है।हमेशा उसके लिये कोई न कोई गिफ्ट लाता है।कुल मिलाकर अपने परिवार के प्रति उसका सकारात्मक भाव रहता। पिछले पांच साल से मेरे घर मे वो काम कर रही है।सुबह जब मै घर मे सब लोगो के लिये नाश्ता तैयार करती ,रम्या के लिये भी चाय नाश्ता निकाल कर रखती।बच्चे तो मेरा अक्सर मज़ाक बनाते "मम्मी तो रम्या का नाश्ता चाय पहिले से अलग निकाल कर रखती जैसे भगवान का भोग निकाल कर रख रही हों। हर सर्दी मे उसे अपना कोई पुराना स्वेटर,एक शाल उसे देती,सर्दियों मे एक जोड़ स्लीपर भी उसे देती ताकि फर्श पर नंगे पैर काम न करे।उसकी बड़ी लड़की जो किसी प्राईवेट स्कूल मे केजी मे पढ़ रही थी।उसकी फीस ,कॉपी किताब का खर्च मै देती,अपनी घर खर्च की,की हुई बचत से। मेरे पैर मे तेल लगा कर बोली"आँटी आराम करना आप। बुखार ने तो तोड़ कर रख दिया आपको।मै शाम का खाना भी बना दिया करुँगी,जब तक आप अच्छी नही होती,घर के काम मे हाथ मत डालना।मै हूँ न।" "तुझे इतनी चिंता है मेरी"स्नेह से भीग गई मै। "आप भी तो मेरा -------"कहकर जाने क्यों चुप हो गई ।फिर मेरा हाथ अपने हाथ मे ले बोली---आप मेरे को केवल काम वाली बाई समझते क्या?" अथाह ममता उमड़ पड़ी उसपर,मैने कहा--नही रम्या,तू तो मेरी माँ,बहिन ,बेटी ,सहेली सबकुछ है" अचानक झटके से वो उठ खड़ी हुई,शायद पराये से मिला इतना अपनत्व संभाल नही पायी ।बोली"शाम को आऊंगी,और रोज सुबह इतनीजल्दी आया करुँगी,जब तक आप अच्छी नहीं हो जाती"



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