भाग्य विधाता

भाग्य विधाता

2 mins
517


अभी रसोई में फैले हुए दूध पर उसने पोछा किया ही था कि दोनों भाई वहां फिर से झगड़ते हुए आए। बड़े ने छोटे को जोर से एक थप्पड़ मार दिया। बदले में छोटे ने उसके हाथ पर काट लिया। बड़ा वहीं खड़ा जोर जोर से दहाड़ मारकर रोने लगा और छोटा भागकर बाहर के कमरे में चला गया।


"इससे अच्छा तो यह होता कि आज स्कूल भेज दिया होता तुम दोनों को। तीन घंटे ही सही, कम से कम चैन से घर का काम तो निपटा पाती। अब खड़ा खड़ा रो क्या रहा है. चल दफा यहां से।" गुस्से से वह उस पर उबल पड़ी।


रसोई से लगे हुए बाहर के कमरे में सोफे पर पैर पसार कर टीवी देख रहे बच्चों के पापा को पत्नी और बच्चों के शोरगुल में कुछ ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था।


‘मेरे प्यारे देशवासियों! आज पन्द्रह अगस्त की पावन...’ सहसा टीवी के तेज हुए वोल्यूम में बड़े बेटे के रोने का स्वर दब गया। दनदनाती हुई उसे पकड़कर वह बाहर के कमरे में आई।


"अब तुम ही बाकी रह गए थे. बंद करों ये टीवी और बच्चों को सम्हालो। बड़े बेशर्म और बदमाश हो गए हैं दोनों।" खीजते हुए बड़े को उसकी तरफ धकेलते हुए वह चिल्लाई। धक्का लगने से बड़ा पास ही बैठे छोटे पर गिर पड़ा। दोनों में फिर से हाथापाई होने लगी।


"बिल्कुल भी भाईचारा न है दोनों में। ऐसे ही आपस में लड़ते रहे तो जरुर बड़े होकर गुण्डे बनेंगे।" उन्हें उनके हाल पर छोड़कर बड़बड़ाती हुई वह वापस रसोई में आ गई।


तभी अचानक से दोनों बच्चों के लड़ने और रोने की आवाजें बिल्कुल ही सुनाई देना बंद हो गई। उसने राहत की सांस ली और रसोई से बाहर के कमरे में झांका। दोनों बच्चे चुपचाप खड़े थे। टीवी से एक सुमधुर स्वर बाहर आ रहा था।


"जन गण मन अधिनायक जय है। 

भारत भाग्य विधाता… … … ... ...।



Rate this content
Log in