भाग 3... वरदान की खामोशी
भाग 3... वरदान की खामोशी
जब कोच जसविंदर वापस दिल्ली चले जाते हैं। उसके बाद से वरदान मन एक बात ठान ली थी। वो अपने खेल में ध्यान देगा और किस से भी बात नहीं करेगा जब अपने मन में यह बात जब सोच रहा था। तभी जय उसके पास आता है। और बोलता है। भाई दोस्त बनेगा तो वरदान उसे कुछ भी नहीं बोलता है। और कमरे में जाकर अपने बिस्तर पर जाकर लेट जात है। और सो जाता है। और सीधा ही अगले दिन सुबह उठता है। उठने के बाद बाथ रूम की ओर जात है। तभी जय एक बार दुबार उसे दोस्त बनने का बोलता है। तब भी उसे जवाब नही देता है। और ब्रश करने चला जाता है। और जय एक बार और निराश होता है। तभी दीगविजय पाटील का बेटा समय जय के पास आता है।और बोतल है। नया लडका कोन है। ये गूंगा है। जो बोलता नही है। जय और समय अच्छे दोस्त थे। और एक दूसरे के अच्छे प्रतियोगि थे। तभी वरदान बाथ रूम के बाहर आता है। और रूम की ओर चल देता है। ये देखकर समय नाराज हो जाता है। और जय से बोलता है। ये लडक बड़ा ही घमंडी है। ना हाय ना हेलो तभी जय समय से बोलता है। भाई समय सुनो कहानी इसकी में बताता हूं। तब जाकर समय को जय अब तक कहानी उसे सुनाता हूं। वरदान की पूरी काहानी सुनकर समय उसका बर्ताव को समझ जाता है। ये अभी उस हादसे से निकल नही पाया है। समय जवाब देता है। जय को आज हम तीनो मोल जाएंगे और मस्ती करगे इतना बोल कर समय वहा से चला जाता है। तभी दिग्विजय पाटील तीनों को बुलाते हैं। और कहते हैं। चलो अब खाना खा लो तीनों एक साथ खाने की टेबल की ओर बढ़ते हैं। खाने बैठते हैं। समय की मां खान टेबल पर लगाती है। और वरदान से बड़े प्यार से बोलती है। लो बेटा मिठाई लेकिन वरदान उसे नहीं लेता है। और ना बोलता है। और कहता है । आंटी मेरा मन नहीं है। ये बात सुनकर शिवानी वरदान से बोलती है। तुम बाद में खा लेना उधर समय अपने मन में ही बोलता है। मां ने मुझे तो कभी नहीं खिलाया एक नज़र वरदान की ओर देखता हे। वरदान रोने वाली शक्ल बनाकर उसकी और देखता है। और बोलता है। मुझे इस तरह से देखो तभी दिग्विजय पाटिल समय की ओर गुस्से देख कर बोलते हैं। दुबार इस तरह से उसे मत देखना उसको और समय खाने की टेबल छोड़कर वहां से चला जाता है। उसे जाने के बाद वरदान रोने लगता है। उसको रोता देख जय उसे चुप कराता है। और कहता है। रो मत यार तभी शिवानी बोलती है। वरदान बेटा रोओ मत समय थोड़ा गरम दिमाग का हे। वो अकसर ऐसे किया कराता है। धीमी आवाज में वरदान बोलता है। माफ करना मेरी गतली है। मुझे इस तरह की शक्ल नहीं बनाने चाहिएं थी। तभी दीगविजय पाटील बोलते हैं। वारदान बेटा तुम अगर बात चित नहीं करोगे तो केसे चलेगा तभी जय एक बार फिर दोस्ती करने की कोशिश करता है। इस बार वरदान मान जाता है। दोस्त बनने का और वरदान बोलता है। में समय से सोरी बोल दूंगा और दोस्ती करने की कोशिश करूंगा तभी जय उससे बोलता है। आज शाम को तू मैं और समय और कोच आंटी मोल जाएंगे इतना बोल कर वापस खाना खाने लगता है। और शाम को जय और वरदान और समय कोच और शिवानी और सभी शाम को छह बजे मॉल के लिए जाने की तैयारी करते हैं। सभी कार में बैठते हैं। तब समय वरदान से बात करने की कोशिश करता है। और दोस्ती करने की भी एक और वरदान सुबह के किस्से को याद करके डर जाता है। और समय से माफी मांगता है। समय उसको कहता है। तू मुझे माफ कर दे मैंने गुस्से में आकर खाने की टेबल छोड़ दी उसमें तेरी कोई गलती नहीं थी। वरदान थोड़ा रिलैक्स होकर कहता है। आई एम सॉरी क्या हम दोनों दोस्त बन सकते हैं। तभी समय कहता है। बिल्कुल यार बन सकते ना दोस्त दोनों की दोस्ती हो जाती है। तभी जय दोनों को बोलता है। भाई वरदान मैंने तुझसे बहुत कोशिश की दोस्ती करने की तूने मुझसे बात ही नहीं की वरदान हंसते हुए कहता है। यार मैं थोड़ा की एडजेस्ट होने की कोशिश कर रहा था। इसीलिए मैं तुमसे ठीक से बात नहीं कर पा रहा था। कार के अंदर का मोहनपुरा बदल चुका था। थोड़ी देर में कार सिटी सेंटर मॉल पहुंचती है। सभी कार से उतरते हैं। और मॉल में घूमने के लिए जाते हैं। मोल के सबसे आखरी वाले कोने में जहां पर गेमिंग जोन था। तीनों वहां पर जाकर अपनी-अपनी बोली कि स्पीड देख रहे थे। मशीन में सबसे तेज स्पीड वरदान की होती है। एक सो तीस किलोमीटर प्रति घंटे से जय और समय उसकी स्पीड देख कर हैरान रह जाते हैं। एक और शख्स वरदान को देख रहा था। बंसीलाल जो इस मॉल का मालिक था। वरदान की स्पीड देख कर हैरान रह जाता है। जय और समय से पूछता है। कोन है ये तभी समय बोलता है। ये हमारा नया दोस्त हे। बंसीलाल फिर से पूछता है। इसको मैंने पहले कभी नहीं देखा तभी जय कहता है। अभी अभी मुंबई आया है। और आज पहली बार मोल में हमारे साथ आया है। उधर वरदान लगातार गेद डाले जा रहा था। कभी 130 तो कभी 145 स्पीड इसकी बढ़ती जा रही थी घटती जा रही थी। सटीक यारकर भी डाल राहा था। एक सोला साल। का लड़का और इतनी स्पीड से डालता देख वो भी हेरना थे। और थोड़ी ही देर में तीनों को ढूंढते हुए दिग्विजय पाटिल भी वाह आ जाते हैं। और बोलते हैं। तुम दोनों इस्को यहां कब ले आए तभी बंसीलाल बोलता है। कैसे हो दिग्विजय बंसीलाल को देख दिग्विजय पाटिल बोलते हैं। बस बढ़िया हूं। दोनो बच्चों को बुलाते हैं। और कहते हैं चलो तभी समय कहता है। पापा वरदान अभी भी बॉलिंग की प्रैक्टिस कर रहा है। उसको तो बुला लो तभी दिग्विजय पाटिल वरदान को आवाज देकर कहते हैं। वरदान चलो बाहर आओ दिग्विजय की आवाज सुनकर वरदान बाहार आता है। और उनके साथ चल देता है। जाने से पहले मॉल के मालिक से उसे मिलाते हैं और कहते हैं। यह बंसीलाल अंकल जब भी मौल और कुछ काम हो तो इधर बता देना इतना बोल कर चारों वहां से चले जाते हैं।
